आपातकाल में विनोबा का अनुशासन पर्व ? आज के परिप्रेक्ष्य में समझना आवश्यक : सुश्री रेखा बहन
विनोबा विचार प्रवाह अंतर्राष्ट्रीय संगीति
लखनऊ (विनोबा भवन) 29 अगस्त। 1975 में आपातकाल के दौरान जब लोक नायक जय प्रकाश नारायण समेत लाखों लोग जेल में बंद थे, आचार्य विनोबा भावे ने इमरजेंसी को अनुशासन पर्व का नाम दिया था. देश में अनुशासन पर्व ? को लेकर बहुत विवाद चला। पर इससे विनोबा जी के सत्य दर्शन पर कोई असर नहीं हुआ। उनका संपूर्ण चिंतन और प्रयास अप्रतिकार की शक्ति अर्थात शुद्ध अहिंसा विकसित करने कहा रहा। यह रास्ता ही ऐसा है कि गंतव्य का दर्शन एकदम नहीं हो सकता। वैसा ही तब हुआ। यह इमरजेंसी का प्रतिशब्द नहीं था, क्योंकि अनुशासन पर्व ? के आगे प्रश्नचिह्न लगा था। लेकिन अब कइयों के मुख से उद्गार सुनने को मिलते हैं कि हां, विनोबा जी का कहना सही था, अब ध्यान में आता है।
उक्त विचार सत्य सत्र की वक्ता ब्रह्मविद्या मंदिर पवनार की अंतेवासी सुश्री रेखा बहन ने विनोबा जी की 125 जयंती पर विनोबा विचार प्रवाह द्वारा फेसबुक माध्यम पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगीति में व्यक्त किए।
सुश्री रेखा बहन ने कहा कि आश्रम की वरिष्ठ सेविका सुश्री कुसुम देशपांडे ने विनोबा जी के अंतिम दिनों के आठ वर्ष की घटनाओं का संकलन विनोबा: अंतिम पर्व में किया है। सन् 1973 से लेकर 1980 तक के बारह वर्ष देश और सर्वोदय विचार की दृष्टि से कठिन समय था।
इस कालखंड मंें विनोबा जी का स्थितप्रज्ञ व्यक्तित्व उभरकर सामने आया। तूफान के बीच भी विनोबा जी चट्टान के समान अडिग थे। अनुशासन पर्व को लेकर जो वातावरण देश में बना, उसका रत्तिमात्र भी प्रभाव विनोबा जी पर नहीं हुआ। इस संबंध में विनोबा जी ने किसी प्रकार का स्पष्टीकरण भी नहीं दिया। सुश्री रेखा बहन ने कहा कि उन्हें सरकारी संत भी कहा गया। यह शब्द उनके साथियों को चुभने वाला था। विनोबा जी ने जीवनभर दिलों को जोड़ने का काम किया। उनके सामने अखंडित मानवता हमेशा खड़ी रहती थी। सुश्री रेखा बहन ने कहा कि जब विनोबा जी का महाप्रयाण हुआ, तब उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान से करने का प्रस्ताव आया। तब ब्रह्मविद्या मंदिर की बहनों ने इसे नम्रता से अस्वीकार कर दिया और विनोबा जी का अंतिम संस्कार सामान्य रीति-नीति से आश्रम की वरिष्ठ सेविका सुश्री महादेवी ताई के हाथों से संपन्न हुआ। विनोबा जी जनता के बीच के व्यक्ति थे। आम जनता के बीच उनका अंतिम संस्कार हुआ।
आज उस वक्त के अनेक युवकों को यह महसूस होता है कि उस वक्त विनोबा जी की भूमिका समझने में उनसे भूल हुई। उन्होंने कहा कि विनोबा जी व्यक्ति के स्तर पर जाकर उसके प्रश्नों का जवाब देकर संतोष प्रदान करते थे। विनोबा जी ने अपने जीवन में कभी डायरी नहीं लिखी। पूर्वी पाकिस्तान की यात्रा के दौरान सोलह दिनों की डायरी सुश्री कालिंदी ताई ने लिखी। लेकिन जब वहां से विदा हो रहे थे तब वह डायरी विनोबा जी ने कार्यकर्ता चारूचंद्र जी को दे दी। उसकी कोई प्रतिलिप अपने पास नहीं रखी।
प्रेम सत्र के द्वितीय वक्ता नरकटियागंज बिहार में गरीब बच्चों के बीच काम कर रहे श्री शत्रुघ्न भाई ने कहा कि विनोबा जी का विचार आगामी युग की आधारशिला है। अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने का इससे उचित माध्यम और कोई नहीं है। इस विचार में किसी का विरोध नहीं है। श्री शत्रुघ्न भाई ने उनके द्वारा नरकटियागंज में किए जा रहे प्रयोगों की जानकारी दी।
करुणा सत्र की वक्ता ब्रह्मविद्या मंदिर की सुश्री मनोरमा बहन ने कहा कि ऋषियों की वाणी पुरातन काल से मनुष्य कोbप्रेरणा देते आयी है।विनोबा जी ने कहा है कि सत्य तो पुराना ही होता है उस पर युगानुकूल नये शब्द की कलम लगाना चाहिए। मन से ऊपर उठने के लिए
सामूहिक चित्त को बनाने का प्रयत्न करना चाहिए। विज्ञान युग में मन की भूमिका छोड़े बिना नहीं चलेगा। सत्याग्रह के पहले सत्यग्राही बनने की आवश्यकता है।
प्रारंभ में डाॅ.पुष्पेंद्र दुबे ने वक्ताओं का परिचय दिया।संचालन श्री संजय राॅय ने किया। आभार श्री रमेश भैया ने माना।
डाॅ.पुष्पेंद्र दुबे