कोरोना काल खाद्य सुरक्षा की गम्भीर चुनौती
-डॉ दीपक कोहली-
कोविड -19 संक्रमण के दौरान भारत स्वास्थ्य चुनौतियों के अतिरिक्त जिन चुनौतियों का सामना कर रहा है, उनमें से खाद्य सुरक्षा की चुनौती सबसे प्रमुख चुनौतियों में से एक है। तेज़ी से बढ़ती हुई जनसंख्या, बढ़ते खाद्य मूल्य और जलवायु परिवर्तन का खतरा ऐसी चुनौतियाँ है जिनसे युद्ध स्तर पर निपटे जाने की आवश्यकता है।
स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि ‘‘जो व्यक्ति अपना पेट भरने के लिये जूझ रहा हो उसे दर्शन नहीं समझाया जा सकता है।” यदि भारत को विकसित राष्ट्रों की सूची में शामिल होना है, तो उसे अपनी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण वर्ष 2030 तक शून्य भुखमरी के लक्ष्य को प्राप्त करना कठिन प्रतीत हो रहा है। ऐसे में सतत विकास लक्ष्य-2 (भुखमरी का अंत, खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण तथा सतत् कृषि को प्रोत्साहन) को प्राप्त करने में भी बाधाएँ उत्पन्न होंगी।
वैश्विक महामारी कोविड -19 के कारण आई आर्थिक मंदी से विश्वभर में लगभग 8-13 करोड़ अन्य लोगों के इस वर्ष भुखमरी के कगार पर पहुँचने की संभावना व्यक्त की गई है। रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्ष 2014-16 में भारत की 27.8 प्रतिशत आबादी मध्यम या गंभीर खाद्य असुरक्षा से पीड़ित थी, जबकि वर्ष 2017-19 में यह अनुपात बढ़कर 31.6 प्रतिशत हो गया है। वर्ष 2014-16 में खाद्य असुरक्षित लोगों की संख्या 42.65 करोड़ से बढ़कर वर्ष 2017-19 में 48.86 करोड़ हो गई है।
स्वतंत्रता के बाद से ही खाद्यान्न उत्पादन और खाद्य सुरक्षा देश के लिये बड़ी चुनौती रही है।भारत में खाद्य सुरक्षा से संबंधित चिंताओं का इतिहास वर्ष 1943 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान हुए बंगाल अकाल में देखा जा सकता है, जिसके दौरान भुखमरी के कारण लगभग 2 मिलियन से 3 मिलियन लोगों की मृत्यु हो गई थी।
भारत में 1960 के दशक के अंत और 1970 के दशक की शुरुआत में हरित क्रांति ने दस्तक दी, जिससे देश के खाद्यान्न उत्पादन में काफी सुधार आया। हरित क्रांति की सफलता के बावजूद भी इसकी यह कहकर आलोचना की गई कि इसमें केवल गेहूँ और चावल पर अधिक ध्यान दिया गया था।
आँकड़ों के अनुसार, भारत में वर्ष 2019 में सबसे अधिक कुपोषित लोग मौजूद थे। खाद्य एवं कृषि संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की तकरीबन 14.8 प्रतिशत जनसंख्या कुपोषित है। वर्तमान समय में भारत में खाद्यान्न सुरक्षा की दृष्टि से सबसे बड़ी समस्या गरीबी है। वर्तमान समय में भारत की लगभग एक चौथाई जनता गरीबी से जूझ रही है। ऐसे में ये आर्थिक कमी के कारण पोषण-युक्त भोजन खरीद नहीं पाते और कुपोषण का शिकार होते हैं। भारत में पारंपरिक रूप से गुणवत्तापूर्ण खाने के स्थान पर अधिक भोजन खाने को महत्त्व दिया जाता है, ऐसे लोगों में संतुलित भोजन के स्थान पर अनाज को ग्रहण करने की प्रवृत्ति अधिक पाई जाती है। इससे प्रोटीन तथा अन्य पोषक पदार्थों की कमी हो जाती है।
इसके अलावा धार्मिक रुझानों के कारण मांसाहार के प्रति नकारात्मक प्रवृत्ति भी कुपोषण का एक कारण है। अंडा जैसे उत्पाद अपेक्षाकृत कम कीमत में प्रोटीन के अच्छे स्रोत है। हमारी सरकार की न्यूनतम समर्थन मूल्य की नीति भी अनाजों के पक्ष में है। इससे कृषक प्रोटीन युक्त पदार्थों के स्थान पर अनाजों की खेती को अधिक महत्त्व देते हैं और हमारी खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है। विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण अवस्था संबंधी रिपोर्ट के नवीनतम संस्करण के अनुसार, भारत सबसे बड़ी खाद्य असुरक्षित आबादी वाला देश है। खाद्य और कृषि संगठन तथा अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के सहयोग से जारी की जाने वाली इस रिपोर्ट में प्रस्तुत अनुमान बताते हैं कि वर्ष 2014 से 2019 तक खाद्य असुरक्षा का दायरा 3.8 प्रतिशत तक बढ़ गया है। वर्ष 2014 के सापेक्ष वर्ष 2019 तक 6.2 करोड़ अन्य लोग भी खाद्य असुरक्षा के दायरे में आ गए हैं।
वस्तुतः खाद्य सुरक्षा के सामान्य सिद्धांत के अंतर्गत तीन प्रमुख आयामों यथा – पहुँच, उपलब्धता, और उपयोग को शामिल किया जाता है। सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणापत्र और आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध के सदस्य के रूप में भारत पर भूख से मुक्त होने और पर्याप्त भोजन के अधिकार को सुनिश्चित करने का दायित्व है। खाद्य असुरक्षा को धन अथवा अन्य संसाधनों के अभाव में पौष्टिक और पर्याप्त भोजन तक अनियमित पहुँच के रूप में परिभाषित किया जाता है।
खाद्य असुरक्षा के दौरान लोगों को भुखमरी का सामना करना पड़ता है। खाद्य असुरक्षा को मुख्यतः दो भागों में विभाजित किया जा सकता है: 1.मध्यम स्तरीय खाद्य असुरक्षा: मध्यम स्तरीय खाद्य संकट से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें लोगों को कभी-कभी खाद्य की अनियमित उपलब्धता का सामना करना पड़ता है और उन्हें भोजन की मात्रा एवं गुणवत्ता के साथ भी समझौता करना पड़ता है। 2.गंभीर खाद्य संकट: गंभीर खाद्य संकट का अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें लोग कई दिनों तक भोजन से वंचित रहते हैं और उन्हें पौष्टिक एवं पर्याप्त आहार उपलब्ध नहीं हो पाता है। लंबे समय तक यथावत बने रहने पर यह स्थिति भूख की समस्या का रूप धारण कर लेती है।
इसके अलावा गरीबों की उचित पहचान नहीं हो पाने के कारण वे कई सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले पाते और खाद्य असुरक्षा का शिकार हो जाते हैं।विश्व व्यापार संगठन जनता के लिये व्यापार की सुगमता के नाम पर खाद्यान्नों पर सब्सिडी कम करने का दबाव बना रहा है। इससे भारत सरकार गरीबों को कम कीमत पर अनाज उपलब्ध नहीं कर पाएगी जिससे भारत में कुपोषण की संख्या और बढ़ेगी। इसके अलावा अवसंरचना के अभाव से भी खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है।
उदाहरण के लिये भंडारगृहों के कमी से लगभग 25 प्रतिशत अनाज बर्बाद हो जाता है जिससे शेष अनाज की कीमत में वृद्धि हो जाती है। उसी प्रकार सड़क जैसी अवसंरचना के अभाव के कारण खाद्य वस्तुओं की पहुँच कमजोर होती है। संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने आगाह किया कि विश्व की 7 अरब 80 करोड़ आबादी का पेट भरने के लिये दुनिया में पर्याप्त भोजन उपलब्ध है लेकिन इसके बावजूद 82 करोड़ से अधिक लोग भुखमरी का शिकार हैं।
इस वर्ष कोविड -19 संकट के कारण 4 करोड़ 90 लाख अतिरिक्त लोग अत्यधिक गरीबी का शिकार हो सकते हैं और पोषणयुक्त भोजन की कमी के शिकार लोगों की संख्या में तेज़ी से बढ़ोत्तरी होने की आशंका है।यहाँ तक कि जिन देशों में प्रचुर मात्रा में भोजन उपलब्ध है, वहाँ भी खाद्य आपूर्ति शृंखला में व्यवधान पैदा होने का जोखिम दिखाई दे रहा है। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की त्रिविमीय अवधारणा बाज़ार में खाद्यान्न की उपलब्धता: सर्वप्रथम बाज़ार में खाद्यान्न की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। इसके लिये कृषि विपणन स्थलों में सुधार करने की आवश्यकता है। सरकार द्वारा पूर्व में कई महत्त्वपूर्ण सुधार किये गए हैं, जो इस प्रकार हैं- 1.मॉडल एग्रीकल्चर लैंड लीसिंग एक्ट 2016 राज्यों को जारी किया गया, जो कृषि सुधारों के संदर्भ में अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण कदम है जिसके माध्यम से न सिर्फ भू-धारकों वरन लीज़ प्राप्तकर्त्ता की ज़रूरतों का भी ख्याल रखा गया है। राष्ट्रीय कृषि मंडी स्कीम (ई-नाम) के तहत बेहतर मूल्य सुनिश्चित करके, पारदर्शिता और प्रतियोगिता के माध्यम से कृषि मंडियों में क्रांति लाने की एक नवाचारी मंडी प्रक्रिया प्रारंभ की गई। 2.सरकार ने मॉडल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एंड सर्विसेज एक्ट 2018 जारी किया है जिसमें पहली बार देश के अन्नदाता किसानों तथा कृषि आधारित उद्योगों को जोड़ा गया है। लोगों की खाद्यान्न तक पहुँच सुनिश्चित करना खाद्यान्न तक पहुँच बेहतर क्रय शक्ति पर निर्भर करती है। कृषक के अतिरिक्त प्रत्येक को बाज़ार से खाद्यान्न क्रय करना पड़ता है।
इस वैश्विक महामारी के दौरान आर्थिक गतिविधियाँ बाधित होने से लोगों की पास धन का संकट है, परंतु मनरेगा जैसी योजना के कारण लाखों लोगों को रोज़गार प्राप्त हुआ है जिससे उनकी पहुँच खाद्यान्न तक सुनिश्चित हो पाई है। इस संकट के दौरान सरकार के द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से ज़रूरतमंद प्रत्येक व्यक्ति को अतिरिक्त राशन भी उपलब्ध कराया गया है।राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम व सार्वजनिक वितरण प्रणाली में निर्धारित खाद्य उत्पादों के अतिरिक्त बाजरा, दाल व तेल जैसे अन्य खाद्य उत्पादों को भी शामिल करना चाहिये.
खाद्य सब्सिडी योजना के अंतर्गत खाद्य सुरक्षा के लिये सरकार समय-समय पर खाद्य सब्सिडी जारी करती है ताकि खाद्य संकट पैदा न हो। खाद्य सुरक्षा का तीसरा आयाम है शरीर में भोजन का अवशोषण तथा उसका समुचित उपयोग।भोजन का अवशोषण और उपयोग सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं सहित स्वच्छता, पीने योग्य जल और अन्य गैर-खाद्य कारकों पर महत्त्वपूर्ण ढंग से निर्भर है। कोविड -19 संक्रमण के कारण बार-बार हाथों को धुलने से ग्रामीण व शहरी दोनों ही क्षेत्रों में स्वच्छ पीने योग्य जल की कमी महसूस की जा रही है।
खाद्य सुरक्षा की वैकल्पिक विधियाँ: 1.खाद्यान्न कूपन प्रणाली- सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाने के लिये निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले प्रत्येक परिवार को खाद्यान्न कूपन देकर उसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानों पर मुद्रा के स्थान पर स्वीकार किया जाना चाहिये। ऐसी दुकानों पर गेंहूँ-चावल की बिक्री प्रचलित बाज़ार मूल्य पर होनी चाहिये, परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार की संभावना कम होगी। इस कूपन प्रणाली में सही सफलता तभी प्राप्त होगी जबकि निर्धनों की पहचान के लिये विशिष्ट पहचान संख्या लागू की जाए। 2.बहु-उपयोगी स्मार्ट कार्ड- प्रौद्योगिकी विकास के साथ-साथ बहु-उपयोगी स्मार्ट कार्ड व्यवस्था अस्तित्व में आई है। इन कार्डों के माध्यम से विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन को सरल बनाया जा सकता है। इस प्रकार यदि सभी अर्ह परिवारों की पहचान, अधिकृत लेन-देन की जानकारी तथा प्राप्त खाद्यान्न की मात्रा आदि का विवरण ऑन-लाइन उपलब्ध हो तो खाद्यान्न के निर्गम के समय इसकी पुष्टि की जा सकती है। विवरण की जानकारी भी ऑन-लाइन हो जाने से कार्यक्रम की प्रगति भी आसान हो जाएगी। 3.बफर स्टॉक बढ़ाना अत्यावश्यक- सार्वजनिक वितरण प्रणाली में खाद्यान्नों, दालों, चीनी इत्यादि वस्तुओं के भंडारण व आयात का पूर्वानुमान लगाकर बफर स्टॉक बनाए जाने की रणनीति तैयार की जानी चाहिये जिससे भ्रष्टाचार और जमाखोरी को रोका जा सके। ____