राजाओं की घाटी में भावनाओं का पुरातत्व : पिरामिड बनाने वाले कवि-मजदूर
— पंकज प्रसून
मिस्र में राजाओं की घाटी है जहां पिरामिडों में फिरऔन दफ़न हैं . उसके बाहरी इलाके में दायर कर -मदीना नामक गांव है. वहां खुदाई हुई तो मज़दूरों का गांव निकल आया .वे पिरामिड बनाने वाले मज़दूर थे. तूतनखामन का पिरामिड भी उन्होंने ही बनाया था .उन शिल्पी मज़दूरों में कुछ कवि भी थे . वे दिन में पिरामिड बनाते ,रात में अपने बसेरे की दीवारों, ठीकरों और पपीरस पर अपनी कविताएं लिखते .
उस जमाने में चित्र लिपि थी. लेकिन उसका संक्षिप्त रूप ही ज्यादा लोकप्रिय था .दिलचस्प बात यह थी कि उन कवि-मज़दूरों ने अधिकतर प्रेम कविताएं लिखीं . उनमें वहीं भाव,वहीं अंदाज़ थे जो आज भी प्रचलित हैं .
ब्रिटिश म्यूज़ियम , लंदन में प्राचीन कविताओं के विशेषज्ञ रिचर्ड पार्किनसन का कहना है कि वे कविताएं भावनाओं का पुरातत्व और प्राचीन मिस्र की बिसरी हुई धरोहर हैं .
कई कविताएं ईपू. 1538 से भी पुरानी हैं..उन कलाकारों में सिर्फ कवि ही नहीं थे उनमें कवयित्रियां भी थीं.उन अनाम प्रतिभाओं के सम्मान में पेश हैं उनकी चुनिंदा रचनायें .
प्यार की मदिरा
स्वर्ग में मृतकों के गाने के लिये मिस्र की क़ब्रों में दफन तीन हजार वर्ष पुराना प्रेम गीत
हाय ! जब मेरी सजनी आती है
देखता हूँ प्यार से उसको
ले जाता हूँ उसे
अपने धडकते दिल तक
अपनी बाँहों में भर् लेता हूँ उसे
मेरा दिल भर जाता है
किसी दिव्य आनंद से
मैं उसका हूँ
वह मेरी है
हाय उसका नर्म आलिंगन
मेरे प्यार को करता है पूरा
अपनी खुशबू
और मिठास का लेप
लगा देती है मेरे बदन पर
और जब वह अपने अधरों से
मेरे अधरों को दबाती है
मैं नशे में चूर हो जाता हूँ
फिर जरूरत नहीं होती शराब की
चाहता हूँ
चाहता हूँ मैं होता तुम्हारा आईना
फिर देखती रहती हमेशा मुझ को तुम
चाहता हूँ मैं होता तुम्हारा लिबास
फिर हमेशा पहन लेती मुझ को तुम
चाहता हूँ मैं तुम्हारा होता वह पानी
जो तुम्हारे बदन को धोता रहता
चाहता हूँ मैं वो ठंडा बाम होता
ओ सुन्दरी
तुम्हारे बदन पर लेप लग जाता
और होता तुम्हारे वक्ष से लिपटा वो फीता
तुम्हारी ग्रीवा के चारों ओर लगे मनके
चाहता हूँ मैं तुम्हारी जूतियाँ बन जाऊँ
और चढ़ो तुम मेरे ऊपर
दरिया में चला जाऊँगा
तुम्हारी बातों में नशा
ज्यों अनार की सुरा
सुनते ही मिलती मुझे ज़िंदगी
क्या हर नज़र में
मैं देख सकता हूँ तुम्हें केवल
खाने पीने से भी बेहतर
वो होगा मेरे लिये
तुम्हारे लिये मैं दरिया में चला जाऊँगा
फिर वापस आऊँगा
तुम्हारे पास
एक लाल मछली हाथों में लेकर
प्यार का बुखार
बुखार में तड़पता और बेहोश
पड़ा रहूँगा बिस्तर पर दिन भर
दोस्त चले आयेंगे मेरे पास
उनमें वह भी तो आयेगी मेरे पास
शर्मा देगी वह चारागरों को भी
जो आयेंगे मेरा इलाज़ करने को
है वही अकेली ,मेरी प्यारी
जो मेरा रोग जानती
दिल बीमार हो गया
सात दिन से जब उसे मैंने नहीं देखा
मेरा दिल बीमार हो गया
हाथ पैर हो गये कमजोर
बदन गिर गया
हकीम आये
मेरे दिल ने दवा लेने से
कर दिया इनकार
प्यार कितना अच्छा है
यह प्यार कितना अच्छा है
जैसे कंठ के लिये तेल और शहद
जैसे बदन के लिये श्रौम वस्त्र
जैसे देवताओं के लिये महीन लिबास
जैसे मन्दिर आने वाले भक्तों को
लोबान की खुशबू
जैसे मेरी अँगुलियों में छोटी -सी मुहरबंद अंगूठी
यही है मर्द के हाथ में पकी नाशपाती
यही है वो खजूर जिसे
हम मिलाते अपनी शराब में
यही है वो बीज जिसे मिलाता
नानबाई रोटी में
हम रहेंगे साथ तब तक
जब बुढ़ापा आ जायेगी
बीच के दिनों में
रखा होगा हमारे सामने
भोजन तैयार
खजूर और शहद,रोटी और शराब