आधुनिक अर्थशास्त्र – अंतरराष्ट्रीय व्यापार आत्मनिर्भरता का कारण है या उसका निषेध?
अखिलेश श्रीवास्तव
क्या अंतरराष्ट्रीय व्यापार आत्मनिर्भरता का कारण है या उसका निषेध? इस पर लौटने से पहले अंतरराष्ट्रीय व्यापार को जरा और ठीक से समझ लें। डेविड रेकार्डों की परिभाषा को समझने के लिए हम मिसाल के तौर पर एक कृषि आधारित और एक पूरी तरह शहरी औधोगिक देश जैसे इंग्लैंड है, को लेते हैं। अब जब ऐसे दो देश अंतरराष्ट्रीय व्यापार शुरू करेंगे तो स्वाभाविक है एक कृषि उत्पाद बेचेगा और दूसरा औधोगिक उत्पाद। पर वह कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाला देश इंग्लैंड जैसे देश से क्या खरीदेगा? वह शायद सबसे पहले कृषि कार्य से जुड़े कुछ मशीनों को खरीदेगा ताकि वह अपनी दक्षता कृषि कार्य में बढ़ा सके। बाद में अगर उसे यह लगे कि वह कुछ औधोगिक उत्पादों का भी निर्माण कर सकता है तो वह खुद को औधोगिक देश बनाने की भी कोशिश करेगा।
भारत में भी ऐसा ही हुआ है। हम सब जानते हैं कि अंग्रेजी राज में भारत के कुटीर उधोगों, हैंड लूम, हैंड लूम आदि का समूल नाश हो गया और हम मैन्चेस्टर की कपड़ा मिलों को रूई (कच्चा माल) भेजने लगे और मैन्चेस्टर में बना कपड़ा पहनने लगे। तब अंग्रेजों को यह स्थिति बनाये रखने के लिए भारत की किसी कंपनी को कपड़ा मिलों की तकनीक और मशीनें नहीं बेचनी थी। पर ऐसा नहीं हुआ। भारत में पहला कपड़ा मिल बॉम्बे स्पिनिंग एंड वीविंग कंपनी को एक अंग्रेज सर विलियम फेयरबेम ने डिजाइन किया था और अंग्रेज इंजीनियरों ने उसे कमीशन कर 7 फरवरी 1856 को उस मिल में कपड़े का उत्पादन आरंभ किया था।
अब हम एक और पक्ष देंखे। दुनिया में सबसे अधिक खाद पदार्थों का आयात करने वाले देश अमेरिका, चीन, जर्मनी, जापान और इंग्लैंड हैं पर ये खाद्य पदार्थों के मामले में आत्मनिर्भर हैं और अगर आयात न भी करें तो भूखे नहीं मरेंगे। पर इस दुनिया के 34 ऐसे देश हैं जो पानी और उपजाऊ भूमि की कमी की वजह से अपनी खाद्य जरूरतों के लिए दुनिया के बाकी देशों पर निर्भर हैं। इनमें अफगानिस्तान और दर्जनों अफ्रीकी देश शामिल हैं। यहाँ तक कि पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर अपने लिए अपनी जरूरतों का केवल 30-40% खाद्य पदार्थ ही पैदा कर सकता है बाकी के लिए दुनिया के दूसरे देशों पर आश्रित है। हालांकि पाकिस्तान उसकी ये जरूरतें लगभग पूरी कर देता है। अब हम सोचें अगर इन 34 देशों का किसी से सीमा विवाद हो या ये किसी विश्व युद्ध का हिस्सा हो जायें और यह मांग हो दूसरे पक्ष के देशों का कि उनसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार सम्बन्ध तोड़ लेने चाहिए तो इन देशों के लोग तो भूखों मर जायेंगे।
गांधी जी ने जब कहा कि मैन्चेस्टर के बजाय बम्बई की मिलों का बना कपड़ा पहनना चाहिए तब गांधी जी तो यह जानते थे कि बम्बई की उन कपड़ा मिलों को इंग्लैंड की मशीनें बनाने वाली कंपनियों ने कमीशन किया था और तकनीक बेची थी। गांधी जी ने इस तकनीक के स्थानांतरण और फैक्ट्रियों के कमीशन पर तो कुछ नहीं कहा!
अब आत्मनिर्भरता का मतलब उस समय अगर यह लगाया जाता कि भारत कपड़े की अपनी मिलें खुद लगा ले और अपने कपड़े खुद बना ले, बगैर किसी अंतरराष्ट्रीय व्यापार के और तकनीक स्थनांतरण के, तो भारत आज तक आत्मनिर्भर नहीं होता। हाँ गांधी की मूल बात भारत पकड़ कर चलता तो और बात थी। अब वे 34 देश भोजन पर आत्मनिर्भर हैं इसलिए कि वे अंतरराष्ट्रीय व्यापार करते हैं। अगर अंतरराष्ट्रीय व्यापार नहीं होता तो ये अपने भोजन की जरूरतों के लिए केवल अपने देश की प्रकृति पदत्त अनुदानों की बिना पर कभी आत्मनिर्भर नहीं हो सकते थे और वैसी स्थिति में उन्हें भूख से मरना होता।
अतः प्रकृति द्वारा दिये अनुदानों के आधार पर आत्मनिर्भरता का सिद्धांत अमानवीय, अन्यायी और प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध है।
भारत आधुनिक अर्थशास्त्र के आधार पर आत्मनिर्भर कैसे होगा? आधुनिक अर्थशास्त्र और गांधी के अर्थशास्त्र में मूलभूत अंतर क्या है? क्या आधुनिक अर्थशास्त्र के आधार पर दुनिया या दुनिया का कोई देश आत्मनिर्भर हो सकता है? गांधी के अर्थशास्त्र के अनुसार आत्मनिर्भरता क्या है?