कविता: विचार नहीं करते हैं

कवि स्वामी दास’ 

विचार नहीं करते हैं
 
 
मातृभूमि पर गर्व करते हैं
मातृभाषा से प्रेम करते हैं
पर विडम्बना है स्थित जहां है मातृभूमि
उस नानी मां पृथ्वी का विचार नहीं करते हैंडायनोसोर युग में मानव जाति ही नहीं थी
कोई धर्म नहीं था कोई भाषा भी नहीं थी
लेकिन तब भी सब कुछ चल रहा था
भगवान अपना काम कर रहा था
लगा के लकीरें मान कर बनाई हुई धारणाएं
जो सत्य था और है उसको स्वीकार नहीं करते हैं
भगवान से प्रेम भी इक शर्त पर करते हैं
कि सारी महत्वकांक्षाएं पूरी करे,
भगवान को भगवान समझकर प्रेम नहीं करते हैं
अगर भगवान हो जाए तेरी तरह स्वार्थी
ओ मानव ! तेरा तो खेल खत्म समझो
बिना शर्त के सांसें देता असीम कृपा समझो
प्रत्यक्ष पाकर सुलभ सांसें
फिर भी संदेह भगवान पे करते हैंलड़ाई से ही अगर होना था
तो अब तक तो सब ठीक हो गया होता
रोशनी की जरूरत नहीं होती
अंधेरे से ही अंधेरा मर गया होता
आइंस्टाइन ने उसे पागल करार दिया
जो एक ही काम को बार बार करता
और नतीजा विभिन्न चाहता….!!
इतिहास लड़ाईयों का किस लिए रखा
देखकर भी बेगुनाहों की मौतें
फिर भी विश्वास लड़ाईयों पे किया करते हैं।मातृभूमि पर गर्व करते हैं
मातृभाषा से प्रेम करते हैं
पर विडम्बना है जो मातृभूमि भाईचारा
सिखाती उस पर विचार नहीं करते हैं।

 

(यह कवि के कलम नाम से प्रकाशित रचना है)

 

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