लखनऊ में एक कोरोना पीड़ित आई ए एस अफ़सर का दर्द और आपबीती
होम आइसोलेशन में कॉरॉना मरीजों की न कोई सुध लेता है और न दवा इलाज होता है
हरीश चन्द्र आईएएस (अव प्रा)
मै आप सभी को कॉरोना काल के अपने संस्मरण सुनाने जा रहा हूं। आखिर यूपी में कोरोना पीड़ित अस्पताल पहुंचते ही मृत्यु के गाल में क्यों समा जाते हैं?
मुझे खाने का स्वाद और सुगंध की महक बिल्कुल नहीं आ रही थी। मैंने अपने मित्र डॉक्टर के परामर्श से एक सज्जन एवं संवेदन शील सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के सहयोग से कोरोनां की 31जुलाई 2020 को अपराह्न जांच कराई। जांच मैंने घर में साथ रह रहे और संपर्क में रहे साथी की भी कराई।
मुझे 2 अगस्त 2020 को अपराह्न कॉल सेंटर से सूचित किया गया कि मै कारोना ग्रसित हूं। ऐसे में दिल की धड़कन तेज होना स्वाभाविक है।आनन फानन में अपने को एक कमरे में कैद कर लिया। उस कमरे की मै झाड़ू लगाता , बिस्तर लगाता , खाना खाता, अपने बर्तन धोता साथ में संबद्ध बाथ रूम का प्रयोग करता।
मैने उसके बाद दो तीन डॉक्टर मित्रो से राय मशविरा लिया , आखिर प्रश्न था जीवन मरण का?इसके बाद सरकारी रेस्पॉन्स की कहानी बहुत रोचक है। पता नहीं यूपी सरकार के कितने कॉल सेंटर है, धड़ाधड़ टेलीफोन पर टेलीफोन आने लगे। इलाज के लिए नहीं !
आप का क्या नाम है? आप हरीश चन्द्र है ? आप को कॉराना हुआ है।
फिर दूसरे जगह से फिर टेलीफोन आता है, वहीं बातें पूछी जा रही।
फिर तीसरे जगह से। यह सेंटर भूल जाते हैं कि मै मरीज हूं।
किसी ने नहीं पूछा कि आप क्या दवा ले रहे हैं ? क्या खा रहे हैं, किसी डॉक्टर ने आप से संपर्क किया या नहीं?यह सभी कार्यवाही प्रधान मंत्री उर्फ़ प्रधान सेवक , उर्फ़ प्रधान चौकीदार के” मन की बात” की तरह हो रही है,आप उधर से केवल बात सुन सकते हैं , आप अपनी बीमारी या कठिनाई के बारे मे बता नही सकते।
फिर एक टेलीफोन आता है – आप कौन बोल रहे हैं ? आप हरीश चन्द्र बोल रहे हैं ? मैंने पूछा, भैया आप कौन बोल रहे हैं? उधर से जबाब आया , मैं एम्बुलेंस का ड्राइवर बोल रहा हूं ? आप को रेलवे अस्पताल जाना हैं , क्यों ,किस लिए, किसके आदेश से ।
मैंने यूपी सरकार की आईएएस में नौकरी की है ? मैंने पीजीआई, केजीएमयू ,लोहिया इंस्टीट्यूट देखा है, रेलवे अस्पताल ? मुझसे से तो किसी ने कोई बात नहीं की। इस अवधि में डॉक्टर मित्रों का भी कोई अता पता नहीं!
इस अवधि में पत्नी बदहवास , बेटे बेटी की चिंता बेशुमार। हर घंटे पर टेलीफोन ।बेटा परेशान हो कर घर में ऑक्सीजन सिलिंडर मंगाने पर बार बार जोर दे रहा है और जर्मनी से 25000रू भी आरटीजीएस भेज देता है। लेकिन सरकार के कान पर जू तक नहीं रेंगी।
आखिरकार मै थक हार और हैरान हो कर 10 दिन बाद 9 अगस्त को अपर मुख्य सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य को इस दयनीय एवं भयावह स्थिति की योर ध्यान आकर्षित करते हुए टेलीफोन पर बात की और व्हाट्स ऐप पर संदेश भेजा । तब जा कर डॉक्टर ने वीडियो कॉल कर मेरे स्वास्थ्य की जानकारी कर परामर्श दिया ।
अब आप सरकार की चिंता और मरीजों की किस लगन निष्ठा से देखभाल की जा रही है, सोच सकते हैं ?
होता यह है कि होम आइसोलेशन में कॉरॉना मरीजों की न कोई सुध लेता है और न दवा इलाज होता।
आखिर में मरणासन्न अवस्था में परिवार के लोग मरीज को आनन फानन में लेकर अस्पताल पहुंचते हैं, मरीज अस्पताल पहुंचते ही दम तोड़ देता है , जिसके लिए सरकार पूरी तरह जिम्मेदार है।
आप को जानकर अति प्रसन्नता होगी कि पत्नी श्रीमती चंद्रा की अहर्निश सेवा और बेटे बेटी की भावनात्मक समर्थन और प्यार और आप लोगों के शुभ कामना से मै पूरी तरह स्वस्थ और प्रसन्न चित्त हूं।
यह एक रामराज्य की झांकी है आगे देखिए सरकार क्या गुल खिलाती है?