अमर साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद
यथार्थवाद और सामाजिक मूल्यों को सामने रख अपनी बात रखने वाले साहित्यकार धनपत राय
–बृजेश सिंह
हिन्दी साहित्य का वह सितारा जिसे विश्व का कोई भी साहित्य प्रेमी जिसने भी उनके उपन्यास, कहानियां आदि लेखन को पढा है, भुला नहीं सकता।वह यथार्थवाद और सामाजिक मूल्यों को सामने रख अपनी बात रखने वाले साहित्यकार थे इसीलिये उनकी रचनाओं के पात्रों और वातावरण में झलक मिल जाती है।
मुंशी प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय था, ऐसा भी माना जाता है कि नवाब के नाम से भी पुकारा जाता था। धनपत राय का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस के पासलमहीं नामक गांव में हुआ था, पिता अजायब लाल डाकखाने के मुंशी तथा माता आनन्दी देवी गृहणी थी।
इनका जीवन संघर्षपूर्ण रहा, जिसकी झलक उनकी रचनाओं में अकसर दिख जाती है। सन 1936 में साहित्य का यह सितारा अपनी अमर कृतियों को छोड इस धरा से विदा हो गया।
उनकी अमर रचनाओं में गोदान, गबन, सेवासदन, मानसरोवर, शतरंज के खिलाडी आदि प्रमुख है. इनकी कई कहानियों को पाठयक्रम में शामिल किया गया। ईदगाह नामक कहानी के प्रमुख चरित्र चार पांच साल के बच्चे हामिद और उसकी दादी अमीना को कौन भूल सकता है. कहानी का अंत भावनात्मक रूप से चिमटे को लेकर होता है, जिसमें हामिद अपनी दादी अमीना के हाथ खाना बनाते समय जलने से बचाने के लिये अपनी इच्छा के विपरीत खिलौनों को न लेकर चिमटे को खरीदता है।
इसी प्रकार पंचलैट (पंचलाइट) कहानी के पात्रों और ग्रामीण आंचल के चित्रण को कौन भूल सकता है। नमक का दरोगा में सरकारी नौकरी के चरित्र चित्रण को भुलाना भी आसान नहीं है। मजदूर नाम की फिल्म से उनका नाम जुडा हुआ है, जो 1934 में प्रदर्शित की गयी तथा मिल मजदूरों की जिंदगी पर आधारित थी, हांलाकि उनके उपन्यासों पर बाद में फिल्में बनीं।
अमर साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद के बारे में जितना लिखा जाये कम ही है, साहित्य के सूरज को दिये दिखाने जैसी बात है।अमर साहित्यकार को बारम्बार नमन और पुष्पांजली ।
बृजेश सिंह