होम्योपैथी विधा इस देश के सामाजिक आर्थिक परिवेश के सर्वथा अनुकूल

–डॉ चंद्र गोपाल पाण्डेय

चिकित्सा की होम्योपैथिक विधा इस देश के सामाजिक आर्थिक परिवेश के सर्वथा अनुकूल है .कभी कभी इसके चमत्कारिक परिणाम मिलते हैं . मेडिकल कॉलेज का एक वाकया है . मेरे चेहरे पर छोटा सा वार्ट था ।मेरे आदरणीय गुरु डॉ सीपी गोयल ने उसे हाथ से छुआ और ओपीडी में ले जाकर जीभ पर एक खुराक दवा डाल दी .सख्त हिदायत दी कि कम से कम एक घंटे तक कुछ नहीं लेना . लगभग 15 दिन में वह गिर गया । वह दवा कास्टिकम- 10 एम थी।एक अन्य चमत्कार उन्ही दिनों प्रसिद्ध ई एन टी सर्जन डॉ सी वी पांडेय सर की क्लीनिक पर देखा . एक ग्रामीण महिला को उसका पति नाक के उपचार के लिए लाया था. उसी दौरान पूछ बैठा की दाहिने स्तन की कठोर गांठ का उपचार किससे कराएं । सर ने मुझसे उसकी जबान पर कोनियम मैक -10 एम की एक बूंद डलवायी और तीन गोली 15 दिन बाद खाने को दिया । दो महीने के बाद उसके पति ने बताया कि गांठ पूरी तरह से गायब हो गयी .


गर्मी की सुबह थी. एक होटल की भठ्ठी के करीब बिच्छू के डंक से व्यग्र व्यक्ति बार बार अपनी उंगली सेंक रहा था .पूंछने पर बताया कि सेंकने से उसके जलन के दर्द में आराम मिलता है. उसे क्लीनिक पर ले जाकर आर्सेनिक एल्ब -30 एक ड्राम दी और आधा घन्टा अंतराल पर लेने को कहा . महीनों बाद मिलने पर बताया कि इससे उसे बड़ा आराम मिला .

अयोध्या (फैजाबाद )की तैनाती के दौरान मेरे अवकाश के दिन एक अध्यापक पेट में असहनीय दर्द की शिकायत लेकर चिकित्सालय पहुंचे .उन्होंने बताया की पीछे झुकने से उनकेपेट के असहनीय दर्द में थोड़ा आराम मिलता है. चिकित्सालय के एक कर्मचारी ने उन्हें डायोस्कोरिया -30 की कुछ खुराक देकर अगले दिन आने को कहा . आते ही कहा कि मुझे कल वाली दवा दिलवा दे । एक ही खुराक से दर्द गायब हो गया था ।

बाबूगंज ,सुल्तानपुर की तैनाती के दौरान एक वकील साहब ने फोन पर पूंछा, क्या आप गैंग्रीन का इलाज करते हैं ? मेरा जवाब था कि मैं गैंग्रीन वाले व्यक्ति का इलाज करता हूं ।वह आधे घंटे में अपने भाई को लेकर अस्पताल पहुंच गए. मुंबई में रह रहे रोगी के एक अन्य भाई सर्जन से समय ले चुके थे। सर्जन ने उनका केस सुनने के बाद गैंग्रीन वाले पैर की उंगलियों को काटने की बात कही थी । वह मेरी दवा लेकर अगले दिन मुंबई चले गए। रास्ते में उन्हें असहनीय जलन में बहुत आराम था . सर्जन ने पैर की उंगलियों को ऑपरेट करने के बजाए थोड़े दिन और होम्योपैथिक उपचार पर बने रहने का की राय दी. और अंत में उनकी उंगलियां कटने से बच गई. इस रोगी को दवा के रूप में लैकेसिस – 1000 की तीन खुराक दी गई थी ।

ऐसी तमाम तमाम उदाहरण जहां होम्योपैथी मीठी की गोलियों ने रोगियों को लाभ पहुंचाया है.जर्मनी में जन्मी होम्योपैथिक का भारत में बड़े पैमाने पर प्रचार प्रसार हुआ .इसके मेडिकल कॉलेज और चिकित्सालय बड़ी संख्या में खोले गये है . मेरी ओपीडी में मरीजों की भीड़ लगती थी . प्रतिदिन औसतन 200 से अधिक रोगियों का उपचार किया जाता था. रौनाही अयोध्या में तैनाती के दौरान यह संख्या 300 से 400 के बीच भी पहुंच जाती थी.वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अयोध्या को यहां कार्यरत 4200 पुलिस कर्मियों को कोरोना के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए आयुष मंत्रालय की एडवाइजरी के अनुसार आर्सेनिक एल्बम -30 निशुल्क उपलब्ध कराया है . ईश्वर के प्रति शुक्रिया अदा करना चाहूंगा कि दिन रात कर्तव्य पथ पर जूझ रहे इस जिले के किसी भी पुलिस कार्मिक को कोरोना का संक्रमण नहीं हुआ है .महामारी के समय रोगियों के लक्षणों का विश्लेषण कर जीनस इपिडीमिकस खोजने का विमर्श पहले भी कारगर साबित हुआ है और आज भी कारगर है। 1799 की ग्रीष्म ऋतु में कोनिग्सलुटर मे स्कारलेट फीवर की महामारी फैली डॉ हैनिमैन ने बेलाडोना को प्रतिरोधक आषधि के रूप में प्रयोग किया और उन्हें महामारी के नियंत्रण व उपचार में बड़ी कामयाबी मिली। उनकी इस सफलता से पेशागत विरोधी सक्रिय हुए और उन्हें शहर छोड़ना। यहां से निर्वासित होने पर हमबर्ग के लिये निकले । सड़क दुर्घटना में उन्होंने नवजात पुत्र को खोया ।

1831-32 मे रूस में कॉलरा के उपचार के अमानवीय तरीके का विरोध किया । रोगी का खून बहकर(ब्लड लेटिंग ) कालरा का उपचार किया जाता था।

होम्योपैथिक विधा से कालरा के उपचार में रब, हंगरी के होम्योपैथ डॉक्टर बकोड़ी को एलोपैथ की तुलना में भारी सफलता मिली । एलोपैथिक से उपचारित 1501 रोगियों में से 640 बचाया नही जा सका जबकि डॉक्टर बकोडी के उपचार से 154 में से केवल 6 रोगियों की मृत्यु हुई ।
1980 के स्पेनिश फ्लू और 2007 में क्यूबा के लेप्टोस्पेरेसिस के उपचार में होम्योपैथिक विधा कारगर सिद्ध हो चुकी है। इतना नही मुजफ्फरनगर जिले में तत्कालीन जिलाधिकारी राजीव शर्मा ने जुलाई 2018 से सितंबर 2018 के मध्य पूरे जिले में बुखार से बचाव की प्रतिरोधक इंफ्लूजिनम दवा सभी को अनिवार्य रूप से बंटवाई थी . इसका परिणाम यह रहा कि विगत वर्ष के इसी अवधि के तुलना में बुखार के रोगियों की संख्या में 40 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई थी.

आज कोरोना रोगियों में होम्योपैथी की आर्सेनिक अल्बम 30 प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिये दी जा रही है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कोरोना के उपचार में होम्योपैथी की इंडीकेटेड मेडिसिन सहायक सिद्ध हो रही है .
भारत में होम्योपैथी एक स्थापित विधा है . इसके करोड़ो चाहने वालों में प्रबुद्ध वर्ग के लोगों की संख्या बहुतायत है .रोग निवारण क्षमता में अचूक होते हुए भी, इसके मेडिकल कालेजों, चिकित्सालयों को दूसरी विधा के की भांति सुविधा व संसाधन प्राप्त नहीं है .शोध की सुविधा नगण्य सी है .इस सरकार में आयुष मंत्रालय अलग से बनाए जाने से थोड़ा आशा की किरण जगी थी लेकिन अभी कुछ उल्लेखनीय नहीं हो सका है, जिससे होम्योपैथिक चिकित्सा विधा को वह स्थान हासिल हो सके जिसकी वह वास्तव में हकदार है .

होम्योपैथी के आविष्कारक डॉ हैनिमैन एक प्रतिभाशाली ऐलोपैथ चिकिसक थे ।उन्होंने 24 वर्ष की आयु में एम डी की उपाधि प्राप्त कर ली थी ।10 वर्ष तक एलोपैथिक चिकित्सा करने के बाद उन्हें यह पद्धति दोषपूर्ण लगी और उपचार का कार्य छोड़ दिया ।घर गृहस्थी चलाने के लिए भाषाविद होने के नाते कुलेन लिखित अंग्रेजी मटेरिया मेडिका का जर्मन भाषा में अनुवाद कर रहे थे ।उन्हें इस पुस्तक में सिनकोना के मलेरिया ज्वर के निवारण का गुण लिखा मिला। इस औषधि का काढ़ा बनाकर उन्होंने पिया और उन्हें मलेरिया सदृश्य जाडा लगकर बुखार आया । इस परीक्षण से उन्हें यह समझ में आया कि किसी स्वस्थ व्यक्ति में औषधि जिन लक्षणों को उत्पन्न करती है, वही औषधि अस्वस्थ व्यक्ति में उन लक्षणों के उत्पन्न होने पर उन्हें दूर कर देती है। इस विचार को लेकर उन्होंने परीक्षण शुरू किया। अंततः उन्होंने उपचार की नई विधा होम्योपैथी की नींव रखी।

कई प्रसिद्ध एलोपैथ अपने रोगों के निवारण से निराश होने पर होम्योपैथी के शरण में आए और स्वस्थ होकर स्वयं विख्यात होम्योपैथ बने। इसमें जर्मन डॉ फ्रीहर वान बोनिनघाउसन , अमेरिकन डॉ कांसटेनटाइन हेरिंग, कॉर्ल डनहम और अंग्रेज डॉ कॉम्प्टन बर्नेट मुख्य हैं।
डॉ बोनिनघाउसन (1785-1865) क्षय रोग से पीड़ित थे। उन्होंने अपने मित्रों को पत्र लिखा कि वह सदा के लिए संसार से विदा होने वाले हैं, उनका रोग ठीक नहीं हो रहा है । पत्र लिखने वाले मित्रों में एक होम्योपैथ डॉ वीहे थे ।उन्होंने होम्योपैथिक औषधि से उपचार किया । वे स्वस्थ होकर 80 वर्ष तक जीवित रहे। उन्होंने होम्योपैथी पर ‘ लेसर राइटिंग्स’ ‘थेराप्यूटिक पॉकेट बुक’ तथा ‘हूपिंग कफ ‘ पुस्तक लिखी ।

डॉक्टर हेरिंग हैनिमैन के समकालीन थे। लिपजिग के सर्जन डॉ रब्बी ने होम्योपैथी उपहास करने के लिए एक पुस्तक का अनुवाद करने के लिए दिया। डॉ हेरिंग पुस्तक को पढ़ने के बाद आषधि का परीक्षण करते समय इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि औषधियां जितनी सूक्ष्म होती जाती है ,उनकी रोग निवारण की शक्ति बढ़ती जाती है। इन परीक्षणों से प्रभावित डर हेरिंग होम्योपैथ बने और ‘दी गाइडिंग सिम्टम्स आफ अवर मेटरिया मेडिका ‘ की महत्वपूर्ण पुस्तक होम्योपैथी को दी ।उन्होंने सर्प विष से तैयार होने वाली औषधि लैकेसिस की प्रूविंग भी की।

डॉ डनहम कोलंबिया कॉलेज आफ फिजिशियंस एंड सर्जनस से 1850 में एम डी की उपाधि प्राप्त की थी । डॉ हेरिंग ने उनका कार्डियक रूमेटिज्म लिलियम कार कार्ब नामक औषधि से ठीक किया था ।उनके प्रभाव में आकर वे अल्पायु में होम्योपैथ बने। ‘दी साइंस ऑफ थेराप्यूटिक्स’ तथा ‘लेक्चर आन मेटरिया मेडिका’ लिखा।

डॉ बर्नेट (1850-1901)की प्लूरिसी का उपचार होम्योपैथी से हुआ । उन्होंने ‘फिफ्टी रीजंस फार बीइंग ए होम्योपैथ ‘ में विस्तार से होम्योपैथ बनने का कारण लिखा है ।

डॉ थामसन सिकनर स्त्री रोग विशेषज्ञ थे . होम्योपैथी के बड़े आलोचक थे। उनके मानसिक अवसाद का उपचार होम्योपैथ डॉक्टर बेरीज ने सल्फर की उच्च शक्ति की दवा से की । अंततः वे भी होम्योपैथ बने ।उन्होंने स्त्री रोगों पर ‘होम्योपैथी एंड गायनाकलोजी ‘ नामक प्रतिनिधि पुस्तक लिखी । लन्दन के वे ख्यातिप्राप्त स्त्रीरोग विशेषज्ञ थे .बर्लिन के डा ऑगस्ट बीएर व अमेरिका डॉ जार्ज रॉयल भी ऐलोपैथ थे , जो बाद में होम्योपैथ बने .

यहां यह उल्लेख करना समीचीन होगा कि एलोपैथिक प्रैक्टिस छोड़कर जीवनयापन के लिये पहले रसायनज्ञ , फिर अनुवादक बने डॉ हैनिमैन को एक वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति के रूप में होम्योपैथी का आविष्कार करने की भारी कीमत चुकानी पड़ी थी। उन्हें आजीवन सत्य बात कहने के लिए तरह-तरह की मुसीबतें उठानी पड़ी ।कई बार अपना ठिकाना बदला और और दो गज जमीन भी उन्हें अपने वतन जर्मनी के बजाय पेरिस में नसीब हुई . मृत्यु दो जुलाई 1843 को प्रातः पांच हुई थी लेकिन अंतिम संस्कार 9 दिन बाद 11 जुलाई को बहुत ही सादगी से या यूं कहें गुपचुप तरीके से किया गया था।

6:00 बजे के आसपास डॉ हैनिमैन की शव यात्रा पेरिस की गलियों से मांटमारट्रे कब्रिस्तान की ओर प्रस्थान की थी। शववाहन के साथ गिनती के चार पांच लोग थे। पार्थिव शरीर साधारण से ताबूत में रखा गया था। डॉ हैनिमैन के सुपौत्र डॉ सस हैनिमैन के अनुसार अंतिम
संस्कार के समय शोकाकुल लोगों में वे , उनकी मां , दिवंगत की पत्नी मेरी मैलानी, पुत्री अमाली और डॉ लेथीरे के अतिरिक्त घरेलू नौकर थे ।
अप्रसिद्ध अंत्येष्टि डॉ हैनिमैन की इच्छानुरूप हुई थी । उन्हें भय था कि वहां भी दुर्भावनापूर्ण हमला हो सकता है ।

Dr Chandra Prakash Pandey

 

 

डॉ चंद्र गोपाल पाण्डेय
लेखक प्रान्तीय होम्योपैथिक चिकित्सा सेवा संघ उत्तर प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष है।

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