अयोध्या में मस्जिद के लिए सुनी वक़्फ़ बोर्ड ने ट्रस्ट बनाया
अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जगह नई मस्जिद बनाने के लिए उत्तर प्रदेश सुनी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड ने एक ट्रस्ट का गठन कर दिया है. बोर्ड के चेयरमैन ज़ुफ़र अहमद फ़ारूक़ी ने एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि ट्रस्ट का नाम इंडो इस्लामिक कल्चरल फ़ाउंडेशन होगा.
विज्ञप्ति में कहा गया है कि ट्रस्ट का गठन बाबरी मस्जिद के मामले में सुप्रीम कोर्ट जजमेंट का अनुपालन में किया गया है. उत्तर प्रदेश सरकार ने इसके लिए अयोध्या के धानीपुर गाँव में पाँच एकड़ ज़मीन आबँटित की है, जिसे सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने स्वीकार कर लिया है.
ट्रस्ट में कुल पंद्रह मेम्बर होंगे. लेकिन अभी वक़्फ़ बोर्ड समेत केवल नौ सदस्य रखे गए हैं. ज़ुफ़र अहमद फ़ारूक़ी अध्यक्ष, अदनान फ़ारूख शाह उपाध्यक्ष, अतहर हुसेन सचिव, फ़ैज़ आफ़ताब कोषाध्यक्ष और मोहम्मद जुनैद सिद्दीक़ी , शेख़ सऊद उज्जमा, मोहम्मद राशिद , इमराम अहमद ट्रस्टी मेम्बर बनाए गए हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवम्बर के अपने सर्वसम्मत फ़ैसले में माना था कि छह दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद गिराना गैर कानूनी था. इसका आपराधिक मुक़दमा अभी चल रहा है. छह दिसम्बर को भारतीय जनता पार्टी, विश्व हिंदू परिषद और संघ परिवार के तमाम संगठनो ने वहाँ लाखों सांकेतिक कारसेवा के लिए लाखों लोगों की भीड़ जुटायी थी. उस समय उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी. संघ परिवार के बड़े नेताओं – अशोक सिंघल, लाल कृष्ण आडवाणी, डा मुरली मनोहर जोशी आदि की उपस्थिति में मस्जिद गिरा दी गयी थी. इसके बाद कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री के पद से त्यागपत्र दे दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने मोटे तौर पर अयोध्या विवाद के अपने फ़ैसले में आवदित स्थल को राम जन्म भूमि घोषित करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के जजमेंट का अनुमोदन किया था. साथ ही साथ 1993 में केन्द्र सरकार द्वारा अयोध्या में ज़मीन अधिग्रहण क़ानून की स्कीम के मुताबिक़ विवाद के निपटारे का निर्देश दिया . इस क़ानून के मुताबिक़ मंदिर और मस्जिद दोनों का निर्माण अधिग्रहीत 67 एकड़ क्षेत्र में होना था.
कोर्ट ने क़रीब डेढ़ सौ साल से राम मंदिर के लिए संघर्ष कर रहे निर्मोही अखाड़ा का दावा भी ख़ारिज कर दिया है. लेकिन संविधान के अनुच्छेद 142 में अपने विशेषा धिकार का इस्तेमाल करते हुए केन्द्र सरकार को निर्देश दिया है कि परिसर में निर्मोही अखाड़ा की ऐतिहासिक भूमिका को देखते हुए उसे मंदिर निर्माण के लिए बनने वाले ट्रस्ट के मैनेजमेंट में उचित स्थान दिया जाए.
कोर्ट ने कहा था कि यह कार्य योजना 1993 में बने अधिग्रहण क़ानून की धारा छह और सात के अंतर्गत होगी. धारा छह में मंदिर निर्माण के लिए एक ट्रस्ट गठित करने की बात है, जिसके संचालन के लिए एक बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज़ होगा.इसी ट्रस्ट को मंदिर के निर्माण और आसपास ज़रूरी व्यवस्थाएं करने का अधिकार दिया गया .
जजमेंट में यह भी कहा गया है कि सबसे पहला मुक़दमा दायर करने वाले हिन्दू महासभा के नेता राम गोपाल विशारद को मंदिर में पूजा का अधिकार होगा. उन्होंने सन 1949 में मस्जिद में मूर्तियां रखे जाने के बाद यह अधिकार मांगा था. विशारद अब इस दुनिया में नहीं रहे और उनके उत्तराधिकारी मुक़दमे में पक्षकार थे .
कोर्ट ने भगवान राम लला विराजमान का दावा मंज़ूर करते हुए केन्द्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह जजमेंट के तीन महीने के अंदर मंदिर निर्माण के लिए एक कार्य योजना प्रस्तुत करे. इसके तहत केंद्र सरकार ने राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन किया और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम मंदिर के शिलान्यास/ भूमि पूजन के लिए पाँच अगस्त को अयोध्या आने वाले हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फ़ैसले को पलट दिया ,जिसमें सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के मुक़दमे को मियाद के बाहर बताया गया था.सुप्रीम कोर्ट ने संविधान में अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को नई मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ ज़मीन आवंटित करने का आदेश दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केन्द्र सरकार 1993 में अधिग्रहीत 67 एकड़ ज़मीन में से सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को आवंटित करेगी अथवा राज्य सरकार अयोध्या के किसी उपयुक्त और प्रमुख स्थान पर यह ज़मीन आवंटित करेगी.
कोर्ट ने यह भी कहा है कि सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड इस ज़मीन पर मस्जिद बनाने के लिए ज़रूरी क़दम उठाने को स्वतंत्र होगा अर्थात उस पर कोई बाधा नहीं डाली जाएगी.