जब मैं कांग्रेस में था

—प्रद्योत माणिक्य बिक्रम देबरमा 

अभी एक वर्ष पूर्व की बात है जब कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष ने अपने पद से इस्तीफा देते हुए कहा था कि उन्हें ऐसा महसूस होता है कि जो लोग उनके साथ खड़े नहीं हैं, वह उन्हें नीचा दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। ये सर्वविदित है कि राहुल गांधी ने एक खुला पत्र लिखकर कहा था कि कई वरिष्ठ नेता, मुख्यमंत्री व अन्य नेता अपने बच्चों के लोकसभा नॉमिनेशन में ज्यादा रुचि ले रहे थे और यही वजह रही कि कांग्रेस कांग्रेस और मध्य प्रदेश की 54 सीटों में से मात्र एक सीट ही बचा पाई। वरिष्ठ नेता कमलनाथ के पुत्र ने ही जीत हासिल की थी।

आज, इसी पार्टी के वरिष्ठ नेता युवा नेताओं पर अतिमहत्वाकांक्षी होने का आरोप लगा रहे हैं। ये बेहद सोचनीय विषय है कि यदि पार्टी के नेता महत्वकांक्षी न हों तो पार्टी की क्या स्थिति होगी। महत्वाकांक्षा की कमी के कारण ही कांग्रेस की यह स्थिति हुई है। पार्टी में पुराना निर्णायक मंडल ही फैसले करता है, जिसके चलते कांग्रेस का ह्रास हुआ है। इनमें से अधिकतर नेता दिल्ली से हैं और उनकी कोई खास क्षेत्रीय पहचान भी नहीं है लेकिन फिर भी वह पार्टी के भविष्य को तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं। कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने बस यथास्थिति बरकरार रखी है जिससे उनका महत्व बना रहे।

यह बेहद दुःख का विषय है कि मणि शंकर अय्यर जैसे वरिष्ठ नेता कांग्रेस में लोकतंत्र की बात करते हैं, उन्हें यह याद रखना चाहिए कि यह वही पार्टी है जिसने गुजरात चुनाव से पूर्व बिना कारण बताओ नोटिस के पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। ये सिद्धांतों की बात करते हैं लेकिन यह वही पार्टी है जिसने महाराष्ट्र में सरकार ऐसे लोगों के साथ गठबंधन करके बनाई है जो गर्व से बाबरी विध्वंस में अपनी भूमिका स्वीकार करते हैं। ये एक विडंबना है कि हम चुनाव पूर्व ऐसे नेताओं को पार्टी में स्थान देते हैं जो भ्रष्ट और आपराधिक छवि वाले हों, जिससे चुनाव में उनसे वित्तीय मदद ली जा सके।

मैं मानता हूँ कि ये चुनाव में जितना आवश्यक है लेकिन आखिर किस मूल्य पर? मैं मानता हूँ कि कई निर्णय कठिन होते हैं लेकिन आज के युग मे जब पब्लिक सब जानती है आप इस तरह से सिद्धांतों का ढिंढोरा नहीं पीट सकते। कभी भी झगड़ा युवा और वरिष्ठ नेताओं का नहीं था बल्कि उपयोगिता का था। कट इंदिरा गांधी ने अपने पिता नेहरू की पार्टी को तोड़कर कांग्रेस नहीं बनाई? क्या 90 के दशक में मणि शंकर अय्यर ने अन्य नेताओं की तरह कांग्रेस का दामन छोड़कर ममता बनर्जी का दामन नहीं थामा था? यादें धूमिल हो सकती हैं लेकिन जब कोई दूसरों को नसीहत दे तो पहले खुद के गिरेबां में झांक ले।

मैं त्रिपुरा में कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष था। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सर्वाधिक वोट प्रतिशत त्रिपुरा से ही मिला था। लेकिन राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद सब कुछ बदल गया। त्रिपुरा में कांग्रेस का महासचिव का 8-8 घन्टे का दौरा हुआ लेकिन हमें निर्णय लेने की आज़ादी रही। सीपी जोशी और फ़ैलेरियो जैसे नेताओं की वजह से कांग्रेस पूर्वोत्तर में जिंदा रही। वरना पूर्वोत्तर कॉंग्रेस मुक्त हो जाता।

सीएए को लेकर मेरा विरोध एक निर्णायक कदम साबित हुआ, जब कांग्रेस महासचिव ने कहा कि हमें क्षेत्रीय जनता के वोट बैंक का भी ध्यान रखना है। अपने क्षेत्र के लोगों के साथ दग़ाबाज़ी जी कल्पना करना कठिन था जब हम एक राज्य में असम और मेघालय में कुछ और कहते हैं और त्रिपुरा में दूसरी लाइन पर काम करते हैं। मैंने इस्तीफा दे दिया लेकिन बीजेपी ज्वाइन नहीं की। मेरा मानना है कि राष्ट्रीय पार्टियों ने क्षेत्र विशेष के लिए सोंचना बन्द कर दिया है। मैंने ये इस्तीफा इसलिए नहीं दिया क्योंकि अगर मैं ऐसा नहीं करता तो अपने ही लोगों के साथ किये धोखे के लिए खुद को कभी माफ नहीं कर पाता। मैंने उन समय सही निर्णय लिया और आज कह सकता हूँ कि बीजेपी के लिए हम राज्य में एक मजबूत विपक्ष हैं।

इस देश को एक ऐसे विपक्ष की जरूरत है जो जुनून के साथ मौजूदा राजनीतिक दलों के खिलाफ संघर्ष कर सके और देश चला सके। मेरा सीधा सवाल है- क्या ये काम उन लोगों के माध्यम से किया जा सकता है जो सत्ता का सुख भोग रहे हैं? लोग अक्सर कहते हैं कि हमें पार्टी के भीतर रहकर संघर्ष करना चाहिए लेकिन मेरा मानना है कि नेतृत्वविहीन पार्टी किसी स्थाई कप्तान के बिना दिशाहीन ही रहती है। संस्था की समस्याओं के निवारण के लिए भी एक इकाई होनी चाहिये।

कई ऐसे नेता हैं जो कांग्रेस को सफल होते देखना चाहते हैं लेकिन उसके लिए एक स्थाई नेतृत्व और ओवरहालिंग की आवश्यकता है। दुःखद यह है कि जो नेता युवा नेताओं को पार्टी छोड़ने के लिए दोषी मानते हुए तंज कस रहे हैं उन्हें पहले अपने अंतर्मन में झांकने की आवश्यकता है। पार्टी है तो लोग आएंगे और जाएंगे, चाहे वह सचिन पायलट हों, ज्योतिरादित्य सिंधिया हों, अजय कुमार हों, प्रद्योत हों, हेमन्त बिस्वास हों या जगन रेड्डी हों। महत्वपूर्ण ये है कि जो लोग जा रहे हैं उनके पीछे के कारणों पर मंथन किया जाए।

अगर कांग्रेस को अपना खोया सम्मान दुबारा प्राप्त करना है तो उसे पूरे देश की आवाज़ को सुनना होगा। उन्हें केवल दिल्ली तक सीमित नहीं रहना होगा। पार्टी के आलाकमान को वरिष्ठ नेताओं से यह अवश्य पूछना चाहिए कि पार्टी का भूतकाल भविष्य से अधिक अच्छा प्रतीत होता है। मणि शंकर अय्यर को आत्मपरीक्षण की आवश्यकता है।

(लेखक इन्डीजीनियस प्रोग्रेसिव रीजनल गठबंधन के चेयरमैन हैं)

(इसका अनुवाद सुधांशु सक्सेना द्वारा किया गया है . इंडियन एक्सप्रेस से साभार)

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