दिनेश गर्ग पुराने कुएँ में क्यों उतर गए ?
दिनेश कुमार गर्ग, पूरबशरीरा , कौशाम्बी, इलाहाबाद
वैदिक मंत्र है ” शं नो वरूणः ” , भारतीय समाज वरुण देवता का समाज है , वह अपने वरुण देवता को नदी, तालाब , समुद्र, नारियल आदि प्राकृतिक स्रोतों के अलावा स्वयंकृत स्रोतों यथा कूप, कलश और जलपात्र में भी रखता है।
जल के बिना जीवन कहां ?और इसीकारण वरुण का महत्व जीवन में अतुलनीय है । इसीलिए मनुष्य ने कूप और कलश का आविष्कार किया । भारतीय समाज जो सीधे भारतीय संस्कृति से स्रोतस्वित होता है , वह अपने सभी शुभ कार्य में वरुण पूजा को सम्मिलित करता है। वरुण यानी जीवन , तो जीवन के अनंत विस्तार की इच्छा से भारतीय समाज जल स्रोतों को देवता की तरह पूजता है । हम देवता बनाने वाले समाज हैं ।
वर्ष 1917 में ब्रिटिश इण्डिया के यूनिइटेड प्राविंस के प्रशासनिक केन्द्र इलाहाबाद (अब प्रयागराज ) के परगना अथरवन ( आथर्वण क्षेत्र ) में ग्राम पूरब शरीरा में जमींदार शिवशंकर मिश्र की तृतीय कनिष्ठ पत्नी जो मिश्र जी के गोलोकवासी होने के बाद खुद जमींदारी संभाल रहीं थीं , उन्होने अपने और पडो़सी अनुसूचित जाति के परिवारों की सुविधा के लिए वरुण मंदिर यानी कुंए का निर्माण कराया था ।103 वर्ष पुराना कुंआ।
वर्ष 2017 में अल्पजल शेष कुंआ 2018 में सूख गया और 2020 तक वह मलवा फेंकने की जगह बन गया । देवता वरुण के घर को बिगाड़ने और अपमानित करने का कार्य देव पूजक हमारे परिवार के हम लोगों के हाथों होने लगा । कुंआ से लगा भगवान शंकर का शिवालय भी है। विराजमान शिवलिंग नर्मदेश्वर लिंग हैं और लोगों का अनुभव है कि वह जागृत लिंग हैं ।
उनकी प्रेरणा से वरुण मन्दिर यानी कुंए की सफाई जिसे लोकल में ओगरनी बोलते हैं का काम शुरू हुआ । चार दिन में कचडा़, कीच, वेस्ट मैटीरियल के साथ मिट्टी के घडो़ं के टुकडो़ का अंबार निकल आया । 100 वर्षों में हजारों घडे़ टूटे होंगे पानी भरने के प्रयास में । 6 फीट तक खोदने के बाद एक छोटे ट्रक भर घडो़ के कीचड़युक्त टुकडे़ निकले और अकल्पनीय यह हुआ की पानी भी फूट पडा़ , कुंए में अभी डेढ़ फीट पानी भर आया है ।
मैंने आज कुंए में 75 फुट नीचे जाकर पानी के नीचे की सतह का निरीक्षण किया तो पाया कि अभी भी 5 से 6 फीट नीचे तक घडों के टुकडो़ं ही होंगे। उंगलियों की मदद से करीब हाथ भर नीचे तक हाथ डालकर देखा तो केवल घडो़ के टुकडे़ ही अनुभूत हुए । बहरहाल सबसे खुशी इस बात की है कि पानी फूट आया । वरुण देवता की कृपा मिली।
अब कल टुल्लू की मदद से पानी उलीचकर खुदाई-सफाई कराने का प्रयास होगा । जो भी जहां तक सफलतापूर्वक हो ओगरनी जारी रहेगी। सौभाग्य होगा हम सब का कि हम कुंए के आधार गूलर की हरी लकडी़ की बनी नेवार का दर्शन कर पायें , कोशिश इसी बात की होगी।
आज कुएं की ओगरनी के मलबे में लोहे के बाल्टियों के अवशेष , साइकिल टायर-ट्यूब के अवशेष , पीतल का 50 वर्ष पुराना लोटा , सरौती , भाला का टुकडा़ आदि निकले । एक घडा़ ऐसा मिला जो पूरी तरह ठीक था और पानी भरा था । सबको सहेज कर रख लिया गया है ताकि अपनी अगली पीढी़ को दिखा सकें , जब भी वे अपनी मातृ-पितृभूमि या जन्मस्थान पर आ सकें ।
अधिकांश बच्चे शिक्षा , रोजी-रोटी के लिए 500 से 1000 किलोमीटर की दूरी पर सेटल हो गये हैं पर विशिष्ट अवसरों पर आते हैं।
जय शिवभोले।
(दिनेश गर्ग उत्तर प्रदेश सूचना विभाग से अवकाश प्राप्त उप निदेशक हैं. वह पत्रकार और अध्यापक भी रह चुके हैं.)
Kafi interesting tha padne me
Aacha article hain.