सत्ता से अभिसार
डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज
हे धर्मदर्शन के तत्ववेत्ता
समता समानता के भाष्यकार
बंधुता के चिंतक अखंडता के पोषक
जब सत्ता के शिखर तक पहुँचने के लिए
राजनीति के महारथी
मूल्यों के विशाल तरुओं को
काट काट अपने रास्ते बना रहे थे
आप सब प्रमादग्रस्त
पाखंड और रूढ़ियों के मोदक
लोक को प्रसाद के रूप में
बाँट रहे थे
सत्ता की महत्वाकांक्षा में
इन्ही राहों पर
दम्भ और अहंकार के
उन्मत अश्वों पर सवार हो
विचारों के लहलहाते फसलों को
रौंदते हुए विजयी सेना घोष करते
सिहासन की और बढ़ी है
साहित्य कला संस्कृति
धर्म अध्यात्म के साधकों के कन्धों पर
राजनीति ने सत्ता से अभिसार
हेतु अपनी पालकी उठवाई है
निःशब्दता ऐसी छाई है
शाप भी मुरझाई है