“सात सामाजिक पाप” — गांधी का वह संदेश जो आज और भी प्रासंगिक है

(संदर्भ: Indian Express, Sheffield Independent, Young India 1925)

आज जब राजनीति, व्यवसाय और समाज में नैतिक मूल्यों का संकट गहराता जा रहा है,

महात्मा गांधी के बताए हुए “सात सामाजिक पाप” पहले से कहीं अधिक अर्थपूर्ण लगते हैं।

दिलचस्प बात यह है कि गांधीजी ने यह सूची लंदन के वेस्टमिंस्टर ऐबी के एक कैनन डॉनल्डसन के उपदेश से ली थी।

कहानी की शुरुआत लंदन से

साल 1925 में वेस्टमिंस्टर ऐबी, लंदन में कैनन फ्रेडरिक लुईस डॉनल्डसन ने एक उपदेश दिया।

उसमें उन्होंने आधुनिक समाज के सात सबसे बड़े अपराध या “Social Evils” गिनाए —

1. Politics without principle — सिद्धांतहीन राजनीति

2. Wealth without work — परिश्रम बिना धन

3. Pleasure without conscience — विवेकहीन भोग

4. Knowledge without character — चरित्रहीन ज्ञान

5. Commerce without morality — नैतिकता विहीन व्यापार

6. Science without humanity — मानवता रहित विज्ञान

7. Worship without sacrifice — त्याग बिना पूजा

1 अप्रैल 1925 के Sheffield Independent अख़बार में यह रिपोर्ट प्रकाशित हुई,

और उसी वर्ष महात्मा गांधी ने इसे Young India (22 अक्टूबर 1925) में उद्धृत किया,

यह कहते हुए कि किसी पाठक ने उन्हें यह सूची भेजी है।

गांधीजी ने इसे नया रूप दिया — “सात सामाजिक पाप”

जो अब उनकी नैतिक शिक्षाओं का अमर हिस्सा बन चुके हैं।

आज के भारत में क्यों ज़रूरी है यह स्मरण

गांधीजी की यह सूची आज के भारत और विश्व दोनों पर सीधा सवाल उठाती है।

राजनीति बिना सिद्धांत के आज भी चुनावी जोड़तोड़, नफ़रत और सत्ता-लोलुपता से ग्रस्त है।

धन बिना परिश्रम के — भ्रष्टाचार, त्वरित अमीरी, और दिखावे की संस्कृति बढ़ रही है।

ज्ञान बिना चरित्र के — शिक्षित समाज होते हुए भी नैतिकता का पतन दिख रहा है।

विज्ञान बिना मानवता के — तकनीक और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के युग में संवेदना घट रही है।

उद्योग और व्यापार बिना नैतिकता के — पर्यावरण, मज़दूर और उपभोक्ता हितों की अनदेखी आम बात हो गई है।

पूजा बिना त्याग के — धर्म प्रदर्शन का साधन बनता जा रहा है, आत्मशुद्धि का नहीं।

गांधीजी ने चेताया था कि अगर समाज इन सात पापों में फँस गया,

तो उसका आत्मा से जुड़ाव खत्म हो जाएगा 

और यही खतरा आज हमें सबसे ज़्यादा घेरे हुए है।

गांधी का संदेश, मानवता का मार्ग

महात्मा गांधी ने डॉनल्डसन की सूची को केवल दोहराया नहीं,

बल्कि उसे भारतीय संदर्भ में जीया।

उनके लिए राजनीति सेवा थी,

धन सादगी का साधन था,

ज्ञान आत्मबल का प्रतीक था,

और पूजा – आत्मबलिदान का मार्ग।

आज जब विश्व युद्ध, जलवायु संकट, असमानता और हिंसा से जूझ रहा है,

तो यह सूची हमें याद दिलाती है कि

प्रगति का अर्थ केवल आर्थिक नहीं, नैतिक भी है

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