JPNIC विवाद: जेपी स्मारक पर ताले, अखिलेश यादव और योगी क्यों आमने-सामने?
लोकनायक जयप्रकाश नारायण इंटरनेशनल सेंटर (JPNIC) लखनऊ में सिर्फ एक स्मारक या संग्रहालय नहीं है, बल्कि यह राजनीति, प्रशासन और सांस्कृतिक विरासत के परस्पर टकराव का प्रतीक बन गया है। आज, जेपी जयंती के दिन, परिसर पर ताले और पुलिस पहरा, और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का प्रवेश न कर पाना, इस विवाद को और उभार रहा है। यह लेख JPNIC के इतिहास, निर्माण और विवादों का निष्पक्ष विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
JPNIC की शुरुआत और उद्देश्य
JPNIC की घोषणा 2012–13 में समाजवादी पार्टी की सरकार द्वारा की गई थी। इसका उद्देश्य लोकनायक जयप्रकाश नारायण की स्मृति को संरक्षित करना और युवा पीढ़ी में उनके आदर्शों को जीवित रखना था। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसका निर्माण शुरू किया और परियोजना का एक बड़ा हिस्सा पूरा भी हुआ।
स्मारक में सभागार, संग्रहालय और सांस्कृतिक केंद्र शामिल था। प्रशासन और समाजवादी नेताओं ने इसे “युवा शिक्षा और लोकतांत्रिक चेतना का केंद्र” बताया।
सत्ता परिवर्तन और निर्माण में रुकावट
2017 में जब यूपी में बीजेपी सरकार आई, तो JPNIC के निर्माण कार्य धीरे-धीरे रुक गए। सरकार ने सुरक्षा, लागत और निर्माण की अधूरी स्थिति को कारण बताया। इसके अलावा, प्रोजेक्ट के खर्च और पारदर्शिता पर सवाल उठाए गए।
• राज्य कैबिनेट ने 2025 में निर्णय लिया कि JPNIC का प्रबंधन Lucknow Development Authority (LDA) को सौंपा जाए।
• सरकार ने कहा कि इससे परियोजना को व्यवस्थित तरीके से पूरा किया जा सकेगा और सार्वजनिक उपयोग के लिए खोला जा सकेगा।
इस कदम को समाजवादी पार्टी ने “स्मारक को कमर्शियल या राजनीतिक हितों के लिए सौंपना” करार दिया।
विवाद के दो पहलू
राजनीतिक प्रतीकवाद
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी के नेताओं का कहना है कि JPNIC उनके प्रयास का परिणाम है। उनका आरोप है कि इसे रोकना या LDA को सौंपना लोकनायक की स्मृति का अपमान है।
प्रशासनिक दृष्टिकोण
सरकार का तर्क है कि निर्माण अधूरा है, सुरक्षा जोखिम हैं, और किसी भी बड़े नेता का परिसर में प्रवेश तब तक उचित नहीं जब तक निर्माण पूर्ण नहीं हो जाता।
जेपी जयंती 2025: नवीनतम विवाद
आज जेपी जयंती के दिन परिसर पर ताले और भारी पुलिस तैनाती रही। अखिलेश यादव को परिसर में प्रवेश नहीं दिया गया। प्रशासन ने इसे सुरक्षा कारण बताया। वहीं, कुछ युवाओं ने परिसर में प्रवेश कर माल्यार्पण किया।
यह घटना दर्शाती है कि स्मारक केवल प्रशासनिक निर्माण नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रतीक भी बन गया है।
विश्लेषण
1. सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि: JPNIC का उद्देश्य महत्वपूर्ण और सराहनीय है — जयप्रकाश नारायण की विरासत को संरक्षित करना और युवाओं को लोकतांत्रिक चेतना देना।
2. राजनीतिक दृष्टि: यह विवाद राजनीतिक प्रतीकवाद का भी है। स्मारक के निर्माण और नियंत्रण का मुद्दा पार्टियों के बीच चुनावी हथियार बन गया है।
3. प्रशासनिक दृष्टि: सुरक्षा, अधूरा निर्माण और जवाबदेही के मुद्दे वास्तविक हैं। LDA हस्तांतरण और सरकारी जांचें यह सुनिश्चित करने की कोशिश हैं कि परियोजना व्यवस्थित तरीके से पूरी हो।
इसलिए, निष्पक्ष दृष्टि से देखा जाए तो विवाद तीन स्तरों पर है — सांस्कृतिक/ऐतिहासिक महत्व, राजनीतिक प्रतीकवाद, और प्रशासनिक/सुरक्षा कारण।
6. भविष्य के संभावित रास्ते
• परियोजना को सुरक्षित तरीके से पूरा करना और जनता के लिए खोलना।
• राजनीतिक दलों के बीच सहमति और स्मारक के उपयोग पर पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
• सुरक्षा और निर्माण मानकों का पालन करना ताकि भविष्य में इसी प्रकार के विवाद न हों।
JPNIC केवल एक स्मारक नहीं, बल्कि सत्ता, राजनीति और सांस्कृतिक विरासत का संगम है। निष्पक्ष और संतुलित दृष्टि यह सुझाती है कि इस विवाद का हल निर्माण को पूरा करने, प्रशासनिक जवाबदेही सुनिश्चित करने और राजनीतिक संवाद बढ़ाने में है।