शिक्षक दिवस और डॉ. राधाकृष्णन : आज की पीढ़ी के लिए मार्गदर्शन

वी के पंत

भारत में 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाना केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि शिक्षा और संस्कृति के मूल्यों को जीवित रखने का अवसर है। इस दिन हम डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (1888–1975) को स्मरण करते हैं, जो महान दार्शनिक, शिक्षक, कुलपति और बाद में भारत के राष्ट्रपति बने। जब 1962 में उनके छात्रों ने उनका जन्मदिन मनाने की इच्छा व्यक्त की तो उन्होंने विनम्रता से कहा—
“यदि आप सचमुच मेरा जन्मदिन मनाना चाहते हैं तो इसे शिक्षक दिवस के रूप में मनाएँ।”
यही कारण है कि यह दिन पूरे देश में शिक्षकों के सम्मान और कृतज्ञता का प्रतीक बन गया।

डॉ. राधाकृष्णन और धर्म-दर्शन

डॉ. राधाकृष्णन ने भारतीय दर्शन और धर्मों का गहन अध्ययन किया। उन्होंने हिन्दू, बौद्ध, जैन, ईसाई और इस्लाम—सभी परंपराओं की आत्मा को समझने का प्रयास किया। उनका मानना था कि किसी भी धर्म का मूल उद्देश्य अनुष्ठान या पहचान नहीं, बल्कि आध्यात्मिक अनुभव और नैतिक आचरण है।

हिन्दू धर्म को वे एक जीवंत और बहुलवादी दृष्टि मानते थे। उनका कथन था—
“Hinduism is not just a faith; it is the union of reason and intuition that cannot be defined but is only to be experienced.”

  • बौद्ध धर्म में उन्होंने करुणा और मध्य मार्ग को प्रमुख माना।
  • जैन धर्म में अहिंसा, आत्म-संयम और अनेकान्तवाद की शिक्षा की सराहना की।
  • ईसा मसीह के प्रेम, क्षमा और सेवा को उन्होंने सार्वभौमिक मानवीय मूल्य बताया।
  • इस्लाम में समानता, भाईचारे और न्याय की भावना को उन्होंने विशेष महत्व दिया।

उनका निष्कर्ष था कि सभी धर्म अलग-अलग मार्ग हैं, परंतु गंतव्य एक ही आध्यात्मिक सत्य है। वे चेताते थे कि मजहबीकरण धर्म की आत्मा को नष्ट कर देता है, जबकि सच्चा धर्म विविधता और सहिष्णुता को पोषित करता है।

धर्म और मजहब का अंतर

आज की चुनौती है कि धर्म को संकीर्ण मजहबी पहचान और राजनीतिक हथियार में बदला जा रहा है। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने धर्म और मजहब के अंतर को स्पष्ट करते हुए कहा था कि जब धर्म का स्वरूप संकीर्ण होकर केवल मजहब में बदल जाता है, तो संघर्ष और रक्तपात अनिवार्य हो जाते हैं। उनके शब्दों में —

“Religion is meant to unite, not to divide. When it becomes dogmatic and sectarian, it loses its spiritual essence and becomes a source of conflict.”

यानी धर्म का उद्देश्य मनुष्य को जोड़ना है, लेकिन जब वह मजहबी जड़ताओं और संकीर्णताओं में बदल जाता है, तो उसका आध्यात्मिक सार खो जाता है और वह विभाजन तथा संघर्ष का कारण बनता है।

डॉ.राधाकृष्णन का गांधी दर्शन

राधाकृष्णन ने गांधीजी को भारत की आत्मा का प्रतिबिंब माना। उनके अनुसार गांधी ने धर्म को मजहब से निकालकर सत्य, अहिंसा और करुणा के रूप में व्यवहार में उतारा। वे मानते थे कि नैतिकता और राजनीति अलग नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं। गांधी उनके लिए धर्म और मानवता के बीच सेतु थे, जिनसे विश्व को शांति का मार्ग मिल सकता है।

शिक्षा : केवल रोजगार नहीं, चरित्र निर्माण

राधाकृष्णन का मानना था कि शिक्षा का लक्ष्य केवल डिग्री और नौकरी नहीं होना चाहिए। वे कहते थे—
“The end-product of education should be a free, creative man, who can battle against historical circumstances and adversities of nature.”

आज जब शिक्षा को केवल कैरियर की कसौटी पर आँका जाता है, यह विचार हमें याद दिलाता है कि शिक्षा का उद्देश्य स्वतंत्र और रचनात्मक नागरिक गढ़ना है।

शिक्षक : राष्ट्र-निर्माता

उनके अनुसार शिक्षक वह है जो विद्यार्थियों में सोचने और प्रश्न करने की क्षमता जगाता है।
“The true teachers are those who help us think for ourselves.”

यदि शिक्षक बच्चों को सही सवाल पूछना और संवेदनशील दृष्टि विकसित करना सिखाएँ, तो लोकतांत्रिक भारत की आत्मा और मजबूत होगी।

लोकतंत्र और नैतिक नेतृत्व

राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने कहा था—
“Democracy is not a matter of sentiment, but a question of institutions.”

आज जब लोकतंत्र व्यक्तिवादी राजनीति और भावनात्मक नारों में उलझ रहा है, यह संदेश हमें याद दिलाता है कि संस्थागत मजबूती, नैतिक नेतृत्व और शिक्षित नागरिक ही इसे जीवित रख सकते हैं।

वैश्विक दृष्टि और मानवता

उनका विश्वास था—
“Books are the means by which we build bridges between cultures.”

आज जब दुनिया युद्ध और संकीर्ण राष्ट्रवाद से जूझ रही है, शिक्षा और साहित्य ही मानवता को जोड़ने का सशक्त माध्यम हैं। शीत युद्ध के दौर में उन्होंने भारत को शांति और निरपेक्षता का बौद्धिक आधार दिया। आज के वैश्विक संकटों (जलवायु परिवर्तन, युद्ध, तकनीकी असमानता) में उनका संदेश और भी प्रासंगिक है।

शिक्षक दिवस पर शिक्षकों की भूमिका

शिक्षक इन मूल्यों को विद्यार्थियों तक कैसे पहुँचाएँ?

  • कहानियों और प्रसंगों से — कबीर, नानक, गांधी और राधाकृष्णन की शिक्षाएँ सुनाकर।
  • संवाद और प्रश्नोत्तर से — बच्चों से धर्म और मानवता पर चर्चा कराके।
  • गतिविधियों से — कक्षा में विविधता और सहिष्णुता पर पोस्टर, नाटक या वाद-विवाद आयोजित कराके।
  • संविधान से जोड़कर — यह समझाकर कि भारतीय संविधान ही असली सर्वधर्म संभाव और मानवीय दृष्टि है।

निष्कर्ष

शिक्षक केवल ज्ञान के वाहक नहीं, बल्कि समाज की आत्मा के निर्माता होते हैं। आज जब बच्चों पर बाज़ारवाद और कट्टरता का असर बढ़ रहा है, तब शिक्षक की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्हें केवल किताबों का ज्ञान नहीं देना है, बल्कि विवेक, करुणा, सह-अस्तित्व और सत्य की खोज की जिज्ञासा जगानी है।

डॉ. राधाकृष्णन का कथन था—
“Education is not merely the means of earning a living, it is the means of building a life.”

इस शिक्षक दिवस पर यही संदेश है कि हर शिक्षक अपने विद्यार्थियों में ऐसा नागरिक गढ़े जो संविधान, मानवता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को आत्मसात कर सके। यही होगी सच्ची श्रद्धांजलि शिक्षक-परंपरा और डॉ. राधाकृष्णन की विरासत को।

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