यूपी विधानसभा: 600 कर्मचारी, अरबों का खर्च और साल में सिर्फ 16 दिन की बैठक! लोकतंत्र पर बड़ा सवाल

मीडिया स्वराज डेस्क

उत्तर प्रदेश की विधानसभा, देश के सबसे बड़े राज्य की विधायिका, पर हर साल करोड़ों रुपए खर्च होते हैं। लगभग 600 कर्मचारी यहां काम करते हैं, भवन के रखरखाव पर करोड़ों रुपए खर्च होते हैं, विधायकों के वेतन-भत्तों पर भी बड़ी राशि जाती है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि विधानसभा साल में सिर्फ 16 से 20 दिन बैठती है।

क्या यह लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ नहीं है? इतनी कम बैठकें क्यों गंभीर समस्या हैं, इसका असर क्या है?

1. विधानसभा सत्रों का महत्व

विधान सभा लोकतंत्र की आत्मा है। यहां नीतियों पर चर्चा होती है, सरकार से जवाब मांगा जाता है और कानूनों की समीक्षा होती है। लेकिन जब बैठकें कम हों:

सरकार पर निगरानी कमजोर हो जाती है।

कानून बिना बहस के पास हो जाते हैं।

जनता की समस्याएं उठाने का मंच खो जाता है।

2. यूपी विधानसभा की हकीकत

2024: केवल 16 दिन बैठक

2017–2021 (17वीं विधानसभा): 5 साल में कुल 101 दिन (औसतन 21 दिन प्रतिवर्ष)

पिछले 20 साल (2004–2024): लगभग 400 दिन, जबकि संवैधानिक भावना थी करीब 1800 दिन

यानि यूपी सिर्फ 22% तक ही बैठी, बाकी समय सत्ता बिना निगरानी चलती रही।

3. खर्च और हकीकत का अंतर

• विधानसभा में 600 कर्मचारी कार्यरत हैं।

• भवन और सुविधाओं के रखरखाव पर हर साल करोड़ों रुपए खर्च होते हैं।

• विधायकों के वेतन, भत्ते और अन्य खर्च पर भी बड़ी राशि जाती है।

• लेकिन नतीजा? साल में मुश्किल से 16-20 दिन बैठक।

और जब बैठक होती भी है, तो समय बहस में नहीं, हंगामे में बर्बाद हो जाता है।

4. केरल और ओडिशा से तुलना

राज्य औसत वार्षिक बैठक दिन

केरल 50–55 दिन

ओडिशा 40–45 दिन

उत्तर प्रदेश 16–20 दिन

केरल और ओडिशा जैसे राज्य न केवल ज्यादा सत्र करते हैं बल्कि विधेयकों और बजट की गहन समीक्षा के लिए समितियों का भी इस्तेमाल करते हैं। यूपी में न तो पर्याप्त सत्र होते हैं और न ही समिति समीक्षा।

5. लोकतंत्र पर असर

कम सत्रों का मतलब है:

कानून बिना चर्चा पास होना।

विपक्ष की आवाज दबना।

जनहित के मुद्दों पर कोई गंभीर विमर्श नहीं।

नीतियां बिना पारदर्शिता लागू होना।

संविधान के अनुच्छेद 174 में कहा गया है कि दो सत्रों के बीच छह महीने से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए। लेकिन यह न्यूनतम कानूनी प्रावधान है, लोकतंत्र की भावना नहीं।

6. सुधार की ज़रूरत

• बड़े राज्यों में कम से कम 90 दिन अनिवार्य बैठकें हों।

• सभी विधेयक समिति समीक्षा के लिए भेजे जाएं।

जब विधानसभा नहीं बैठती, तो लोकतंत्र कमजोर होता है, जवाबदेही खत्म हो जाती है और जनता के टैक्स का पैसा बर्बाद होता है। यूपी को अब केरल और ओडिशा से सीखना होगा और सत्र बढ़ाने होंगे।

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