सतपाल मलिक का असामयिक निधन
आनंद कुमार
वैसे देहांत हरेक व्यक्ति की जीवन यात्रा का अंतिम पड़ाव होने के बावजूद हमेशा शोकजनक होता है । कुछ दिन और जीने की उम्मीद अंतिम सांस तक बनी रहती है।
लेकिन कई सप्ताह से कुछ गंभीर समस्याओं से जूझ रहे सतपाल जी का ५ अगस्त को निधन बहुत असामयिक था। वह सत्ता प्रतिष्ठान के शिखर पर पहुंच कर भी बागी हो गये थे और अपनी विशिष्ट शैली में मौजूदा सत्ता संचालकों को बेनकाब करने में जुटे हुए थे।
१९६६ में ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तेजस्वी छात्र नेता के रुप में अपनी पहचान बनाने वाले सतपाल मलिक शुरू के आठ बरस समाजवादी आंदोलन के युवा नायकों की पहली कतार में गिने जाते थे। डा. राममनोहर लोहिया उनके प्रेरणा स्त्रोत थे और उन्हें लोकबंधु राजनारायण से विशेष स्नेह मिला।
१९६६ के विद्यार्थी मार्च, एडवोकेट्स एक्ट आंदोलन, १९६८ के अंग्रेजी हटाओ आंदोलन, १९६९ के छात्रसंघ बचाओ आंदोलन से लेकर १९७४ के संपूर्ण क्रांति आंदोलन तक वह समाजवादी युवजन सभा के लोकप्रिय नेताओं में अपनी पहचान बना चुके थे।
विनय कुमार, श्याम कृष्ण पांडेय, बृजभूषण तिवारी, सत्यदेव त्रिपाठी, राजकुमार जैन, मोहन सिंह, सतीश अग्रवाल, देवव्रत मजूमदार, डी. पी. बोरा, बेंत सिंह और इंद्रदेव सिंह के साथ सतपाल मलिक उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार के लिए युवा विद्रोह का चेहरा थे।
प्रभावशाली वक्ता, शालीन व्यक्तित्व, सलीके का पहनावा और बगावती अंदाज के कारण उनका अलग आकर्षण था ! १९६७ में समाजवादी युवजन सभा के बहुचर्चित सम्मेलन में उन्हें राज्य का संयुक्त मंत्री बनाया गया। हम राज्य समिति में लिए गए।
तब से अब तक के छः दशकों में हमारी राजनीतिक यात्रा कभी साथ कभी अलग जारी रही लेकिन अपनत्व की मिठास में कभी कमी नहीं आई।
सतपाल मलिक ने एक दशक तक आंदोलन दर आंदोलन अपने को निखारा। दर्जनों नौजवानों को समाजवादी युवा नेताओं की कतार में शामिल किया। अपने निजी जीवन में रोमांस की गुंजाइश बनाई और इकबाल मलिक से शादी की।
फिर १९७४ में चौधरी चरण सिंह के आशीर्वाद से उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने गये। १९७५ की इमरजेंसी में बंदी रहे। उसके आगे का समय उनके लिए राजयोग की सफल साधना का रहा। इंदिरा गांधी और चरण सिंह में निकटता, राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में जगह, वी. पी. सिंह के साथ कांग्रेस छोड़कर जनमोर्चा और फिर जनता दल बनाने में सक्रिय भूमिका और अंतत: अरुण नेहरू और आरिफ मुहम्मद खान के साथ भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की अलग कहानी है।
सतपाल मलिक ने संघर्ष की राजनीति के शिखर पर जगह बनाने के बाद संसदीय राजनीति का व्याकरण भी सीखा। सत्ता के रहस्यमय संसार में प्रवेश पाने के लिए उसकी शर्तों को स्वीकार किया। लोहिया – राज नारायण से शुरू साहसिक राजनीतिक यात्रा में क्रमशः चरण सिंह, राजीव गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, अरुण नेहरू और अमित शाह को नायक स्वीकारने का जोखिम उठाया। इससे सत्ता आरोहण जारी रहा।
चरण सिंह से लेकर नरेंद्र मोदी तक हर प्रधानमंत्री के साथ निकट संबंध बनाने में बहुत लचीलापन चाहिए था और इसकी उनमें कमी नहीं थी।
लेकिन सत्ता साधना में चार दशक तक जुटे रहते हुए भी सतपाल मलिक ने निजी जीवन में शिष्टाचार, सादगी और साहस का संतुलन बनाए रखा।
निजी संबंधों को बचाए रखा। कला, साहित्य और संगीत के अनुरागी बने रहे। संबंध विच्छेद की नौबत नहीं आने देना उनकी खासियत थी।
इसीलिए अपने जीवन के अंतिम वर्षों में किसानों के सवाल पर उन्होंने जब मोदी से आगे बढ़कर समझौता करने का सार्वजनिक आग्रह किया तो किसानों ने उन्हें आशा भरी नजरों से देखा।
जब उन्होंने सत्ता प्रतिष्ठान में फैले भ्रष्टाचार को बेपर्दा किया तो उनका मोदी सरकार की तरफ से लगातार राज्यपाल बने रहना भुला दिया गया।
रवीश कुमार से लेकर राहुल गांधी उनके साथ बातचीत के लिए आगे आए। अभी उनके साथ काम करने की संभावना बढ़ रही थी क्योंकि समाजवादी सतपाल मलिक महल की जिंदगी की असलियत से ऊबकर वापस सड़क पर उतरने का खतरा उठा चुके थे।
सतपाल मलिक को अपने भाषणों में शेर सुनाने का बहुत शौक था। इसलिए उनको अफसोस के साथ अलविदा कहने के लिए कुछ लाइनें सामने आ गई हैं:
बड़े शौक से सुन रहा था ज़माना
तुम्ही सो गए दास्तां कहते कहते