ज्योतिर्मठ में शंकराचार्य ने कहा – शरणागत की रक्षा धर्म है
शरणागत की रक्षा ही धर्म का मूल है: ज्योतिष्पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती
धर्मसभा में कहा – भगवान शंकर ने ही गुरु का रूप धरकर आदि शंकराचार्य के रूप में किया अवतार
ज्योतिर्मठ, चमोली (उत्तराखंड), 28 अप्रैल 2025 –
ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंदः सरस्वती ‘१००८’ ने कहा है कि सनातन धर्म की परंपरा में शरणागत की रक्षा सर्वोपरि है और उसे कभी नहीं त्यागना चाहिए। वे यहां ज्योतिर्मठ में आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा, “भगवान शंकर ने ही गुरु का रूप धारण कर आदि शंकराचार्य के रूप में धरती पर अवतरण किया। वे जब अवतरित हुए तो चारों वेदों को साथ लेकर आए और चलायमान मूर्ति के रूप में ज्ञान का विस्तार किया। उनके चार प्रमुख शिष्य चारों वेदों के प्रतिनिधि माने जाते हैं।”
तोटकाचार्य: विनम्रता, भक्ति और ज्ञान के प्रतीक
शंकराचार्य जी ने धर्मसभा में ज्योतिर्मठ के प्रथम गुरु तोटकाचार्य के जीवन प्रसंग को स्मरण करते हुए बताया कि वे मूलतः ‘गिरि’ नामक शिष्य थे, जो अत्यंत विनम्र और गुरुसेवक थे। उन्होंने कभी अपने ज्ञान का प्रदर्शन नहीं किया, जिससे अन्य उन्हें कमज़ोर समझते थे।
उन्होंने बताया, “एक दिन जब अन्य शिष्यों ने गुरुजी से प्रश्न किया कि हमें पढ़ाया कब जाएगा, तो गुरुजी ने उत्तर दिया कि पहले गिरि को आने दो। गिरि के आते ही गुरुजी ने उसकी परीक्षा ली और गिरि ने तोटक छंद में उत्तर देते हुए गहन वेदांत ज्ञान प्रस्तुत किया। उसी दिन से वह तोटकाचार्य कहलाए। उनकी रचना तोटकार्टकम् और श्रुतिसारसमुद्धरणम् आज भी विद्यमान हैं।”
संपूर्ण सत्संग और पादुका पूजन कार्यक्रम
शंकराचार्य जी महाराज अपने 9 दिवसीय प्रवास पर ज्योतिर्मठ में विराजमान हैं। इस अवसर पर आयोजित सत्संग में उन्होंने धर्म, गुरु-शिष्य परंपरा और आत्मनिष्ठा पर विशेष रूप से प्रकाश डाला।
कार्यक्रम में पादुका पूजन सपत्नीक अभिषेक बहुगुणा ने किया। सभा में प्रमुख रूप से विष्णुप्रियानंद ब्रह्मचारी, शिवानंद उनियाल, शिवानंद महाराज, मनोज भट्ट, जगदीश उनियाल, महिमानंद उनियाल, वैभव सकलानी, दीपेंद्र नायक, और राहुल साहू सहित अनेक श्रद्धालु उपस्थित रहे।
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