क्या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इंसान को अप्रासंगिक बना देगा?

आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और रोज़गार

 राम दत्त त्रिपाठी

हाल ही में बैंकॉक एयरपोर्ट पर मैंने देखा कि एक रोबोट शांति से फर्श की सफ़ाई कर रहा था — बिना थके, बिना गलती के। यह केवल तकनीकी चमत्कार नहीं था, बल्कि एक चेतावनी भी — क्या अब मशीनें इंसानों की जगह ले रही हैं?

आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) कोई भविष्य की कल्पना नहीं, बल्कि हमारे जीवन का हिस्सा बन चुका है — दफ्तरों से लेकर मीडिया और व्यक्तिगत जीवन तक।

AI और मानव श्रम: सहयोगी या प्रतिस्थापन?

AI अब ईमेल लिख रहा है, रिपोर्ट बना रहा है, भाषण का सार दे रहा है, और सवालों के जवाब भी — जो पहले इंसान करते थे। तो यह डर स्वाभाविक है:

क्या इंसान की उपयोगिता खत्म हो रही है?

लेकिन AI केवल एक औज़ार है। इसका उपयोग हमें तय करना है — समर्थन के लिए या प्रतिस्थापन के लिए।

“AI आपको नहीं हटाएगा, लेकिन वो इंसान हटा देगा जो AI का उपयोग करना जानता है।”

— गैरी कास्परोव, शतरंज ग्रैंडमास्टर

समाचार उद्योग में बदलाव

AI पत्रकारिता को भी बदल रहा है:

  • AI न्यूज़ एंकर: चीन और भारत में अब ऐसे वर्चुअल न्यूज़ एंकर हैं जो 24×7 ख़बरें पढ़ सकते हैं — बिना थकान या गलती के।
  • स्वचालित लेखन: एजेंसियाँ शेयर बाज़ार, मौसम, खेल जैसी खबरें अब AI से तैयार करवा रही हैं।
  • एल्गोरिद्म आधारित चयन: कौन सी खबर दिखेगी, यह अब AI तय करता है — कभी-कभी तथ्यों से ज़्यादा भावनाओं के आधार पर।
  • फ़ेक न्यूज़ और डीपफेक का खतरा: AI से बनी झूठी खबरें और नकली वीडियो पत्रकारिता की साख पर सवाल उठा रहे हैं।

AI खबरों की गति बढ़ा सकता है, लेकिन उसकी सच्चाई, नैतिकता और संवेदनशीलता का विकल्प नहीं बन सकता।

बुद्धिजीवियों की चेतावनी: Yuval Noah Harari

प्रसिद्ध इतिहासकार और लेखक युवाल नोहा हरारी ने AI को लेकर गंभीर चेतावनियाँ दी हैं। उनके अनुसार:

“AI केवल बैंक खातों को नहीं, बल्कि मनुष्यों के दिमाग को भी हैक कर सकता है — उनकी भावनाओं और राजनीतिक सोच को प्रभावित कर सकता है।”

अगर AI ही भविष्य की कहानियाँ और प्रचार रचने लगे, तो लोकतंत्र और स्वतंत्र विचार की नींव ही हिल सकती है।

गांधी जी की दृष्टि

महात्मा गांधी ने कहा था:

“मशीन तब तक उपयोगी है, जब तक वह मनुष्य की सेवा करे और उसे बेरोज़गार न बनाए।”

उनका ज़ोर था — स्वावलंबन, नैतिक विकास और मानव गरिमा पर। आज जब हम AI की दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं, तो गांधी जी की चेतावनी और भी प्रासंगिक हो गई है।

आगे का रास्ता: विवेक और तकनीक का संतुलन

  1. नई स्किल्स की ज़रूरत: रचनात्मकता, डिजिटल लिटरेसी और मानवीय संवेदना को बढ़ावा देना होगा।
  2. नैतिक दिशा-निर्देश: AI का उपयोग समाज की भलाई के लिए हो, सिर्फ़ मुनाफ़े के लिए नहीं।
  3. इंसानी गुणों का सम्मान: सहानुभूति, विवेक, और नैतिक निर्णय — यह मशीन नहीं सीख सकती।

निष्कर्ष

AI हमारा साथी भी हो सकता है और चुनौती भी — यह हम पर निर्भर करता है।

यह इंसान बनाम मशीन का सवाल नहीं, बल्कि इंसान + मशीन की साझेदारी का मामला है — जहाँ निर्णय विवेक और नैतिकता से हो।

अगर गांधी जी आज होते, तो शायद कहते:

“तकनीक को मानवता की सेवा में लगाओ, न कि उसे नियंत्रण में लेने दो।”

अब हमारे नीति निर्माताओं को सोचना है कि वे भारत जैसे जनसंख्या बहुल , ग़रीब और कम तकनीकी ज्ञान वाले समाज के लिए कैसी नीतियॉं बनाते हैं . रोजगार सृजित करने वाली या रोजगार का हरण करने वाली . 

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