डायबिटीज़ की चिंताजनक समस्या और बचाव के उपाय


इस लेख में भारत में मधुमेह (डायबिटीज) की बढ़ती समस्या, इसके कारण, प्रभाव और इससे निपटने के लिए संभावित समाधान को व्यापक रूप से उजागर किया गया है। इस लेख में जीवनशैली, पर्यावरणीय बदलाव, पारंपरिक आयुर्वेदिक उपचार और सरकारी पहल समेत सभी पहलुओं पर चर्चा की गई है।

भारत में मधुमेह की स्थिति: एक चिंताजनक परिदृश्य

भारत को अक्सर “डायबिटीज कैपिटल ऑफ़ द वर्ल्ड” कहा जाता है। वर्तमान अनुमान बताते हैं कि देश में 70 से 80 मिलियन लोग मधुमेह से ग्रसित हैं, और यदि वर्तमान प्रचलन जारी रहा तो 2045 तक यह संख्या 130 मिलियन तक पहुँच सकती है। इस बढ़ते संकट के कारण केवल शहरी इलाकों में ही नहीं बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी मधुमेह का प्रादुर्भाव तेजी से बढ़ रहा है।

मधुमेह के कारण: जीवनशैली से लेकर पर्यावरणीय परिवर्तन तक

1. जीवनशैली में बदलाव

आहार में परिवर्तन:

परंपरागत भारतीय भोजन, जिसमें साबुत अनाज, दालें, सब्जियाँ और फल शामिल थे, अब अधिकतर जंक फूड, प्रोसेस्ड खाद्य और उच्च शुगर वाले पेयों द्वारा प्रतिस्थापित हो रहे हैं। इससे शरीर में मोटापा और मधुमेह की शुरुआती अवस्थाएँ बढ़ रही हैं।

शारीरिक गतिविधि में कमी:

शहरी जीवन की व्यस्तता, डेस्क जॉब और परिवहन के लिए मोटर वाहनों का अधिक प्रयोग करने से शारीरिक गतिविधि में कमी आई है, जो इंसुलिन प्रतिरोध (इंसुलिन रेसिस्टेंस) और अंततः मधुमेह के जोखिम को बढ़ाता है।

2. शहरीकरण और आर्थिक बदलाव

तेज शहरीकरण:

शहरों में रहने वाले लोगों में शारीरिक गतिविधि की कमी, मानसिक तनाव और भोजन की गुणवत्ता में गिरावट जैसी समस्याएँ देखने को मिलती हैं। आर्थिक विकास के साथ-साथ खाने-पीने में उच्च कैलोरी वाले आहारों का सेवन भी बढ़ा है।

ग्रामीण क्षेत्रों में परिवर्तन:

ग्रामीण इलाकों में भी, जहां पहले परंपरागत जीवनशैली थी, आज आधुनिकता के प्रभाव से भोजन में परिवर्तन, कम मेहनत वाले काम और अन्य जीवनशैली में बदलाव देखने को मिल रहे हैं। इससे मधुमेह की दर तेजी से बढ़ रही है।

3. आनुवांशिक प्रवृत्तियाँ और जैविक कारण

जिनेटिक संवेदनशीलता:

भारतीय जनसंख्या में मधुमेह के प्रति कुछ विशेष जीन हो सकते हैं जो इंसुलिन प्रतिरोध और बीटा-कोशिका (पैनक्रियास के इंसुलिन बनाने वाले कोशिकाओं) के कार्य में बाधा उत्पन्न करते हैं। ये आनुवांशिक विशेषताएँ शारीरिक बदलाव के साथ मिलकर मधुमेह का खतरा बढ़ाती हैं।

4. स्वास्थ्य सेवाओं में कमी

जल्दी पहचान का अभाव:

ग्रामीण क्षेत्रों में उपयुक्त स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण मधुमेह अक्सर देर से पहचान में आता है। इससे रोगी अक्सर तब तक बिना इलाज के रह जाते हैं जब तक कि जटिलताएँ न शुरू हो जाएँ।

मधुमेह का सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

दीर्घकालिक जटिलताएँ:

मधुमेह के कारण हृदय रोग, किडनी फेलियर, नेरव क्षति, आंखों की समस्याएँ और अन्य जटिलताएँ बढ़ जाती हैं। इन जटिलताओं का दीर्घकालिक प्रभाव व्यक्ति की गुणवत्ता, कार्यक्षमता और जीवन स्तर पर पड़ता है।

आर्थिक बोझ:

मधुमेह के इलाज से जुड़े प्रत्यक्ष खर्च (मेडिकेशन, जांच, डॉक्टर की फीस) के साथ-साथ अप्रत्यक्ष खर्च (कार्य क्षमता में कमी, दीर्घकालिक उपचार और देखभाल) देश की अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव डालते हैं।

संभावित समाधान: व्यक्तिगत और सरकारी स्तर पर उठाए जाने वाले कदम

व्यक्तिगत स्तर पर उपाय:

1. स्वस्थ जीवनशैली अपनाएँ:

• संतुलित आहार: साबुत अनाज, ताजे फल, सब्जियाँ, दालें और प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त प्रोटीन को प्राथमिकता दें। प्रोसेस्ड और चीनी युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन कम करें।

• नियमित व्यायाम: प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट की मध्यम शारीरिक गतिविधि, जैसे तेज चलना, साइकिल चलाना या योग, मधुमेह के जोखिम को कम करने में सहायक हो सकती है।

• नियमित स्वास्थ्य जांच: शीघ्र पहचान और समय रहते उपचार से रोग के गंभीर जटिलताओं से बचा जा सकता है।

2. तनाव प्रबंधन और मानसिक स्वास्थ्य:

योग, ध्यान और अन्य मानसिक स्वास्थ्य सुधारकों का नियमित अभ्यास न केवल तनाव कम करता है, बल्कि रुकावट पैदा होने वाले हार्मोन (जैसे कोर्टिसोल) को भी संतुलित करता है, जिससे रक्त शर्करा का स्तर नियंत्रित रहता है।

सरकार और नीति निर्माताओं के लिए रणनीतियाँ:

1. सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करें:

ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार करें, ताकि शीघ्र मधुमेह पहचान और प्रारंभिक उपचार संभव हो सके। मोबाइल हेल्थ क्लीनिक्स और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है।

2. स्वास्थ्य जागरूकता अभियानों का विस्तार:

राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा और जागरूकता के कार्यक्रम चलाएँ, जिनमें मधुमेह के शुरुआती लक्षण, रोकथाम और प्रबंधन के महत्व को उजागर किया जाए। ये कार्यक्रम स्थानीय भाषाओं और सांस्कृतिक संदर्भों में होने चाहिए।

3. आयुर्वेदिक और पारंपरिक उपचार का सही उपयोग:

भारत में आयुर्वेदिक उपचारों की लंबी विरासत रही है। जैसे कि गुडमार, कड़वा करेला, मेथी और आंवला का प्रयोग पारंपरिक रूप से मधुमेह नियंत्रण में सहायक माना जाता है। सरकार को पारंपरिक उपचारों के प्रमाणिक अध्ययन में निवेश करना चाहिए ताकि उन्हें आधुनिक चिकित्सा के साथ संयोजित किया जा सके।

4. आर्थिक और सामुदायिक पहल:

सरकारी नीतियों में खाद्य लेबलिंग, अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों पर विनियमन और स्वस्थ विकल्पों के लिए सब्सिडी शामिल किए जाने चाहिए। शहरी नियोजन में पार्क, साइकिल ट्रैक, और पैदल चलने की सुविधाओं का समावेश भी अत्यंत आवश्यक है।

5. अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा:

मधुमेह की अनूठी आनुवांशिक, पर्यावरणीय और सामाजिक विशेषताओं पर केंद्रित अनुसंधान में निवेश बढ़ाएँ। इससे मधुमेह की रोकथाम, शीघ्र पहचान और बेहतर उपचार योजनाएं विकसित की जा सकेंगी.

निष्कर्ष

भारत में मधुमेह की बढ़ती समस्या न केवल एक स्वास्थ्य संकट है, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों को भी जन्म देती है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बदलती जीवनशैली, आर्थिक विकास, आनुवांशिक संवेदनशीलता और अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवाओं के कारण यह समस्या तेजी से बढ़ रही है। व्यक्तियों को स्वस्थ आहार, नियमित व्यायाम और मानसिक संतुलन अपनाने की आवश्यकता है, जबकि सरकार को जागरूकता अभियान, बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं और पारंपरिक उपचारों के प्रमाणिकीकरण पर ध्यान देना चाहिए। साथ मिलकर ही हम इस मधुमेह संकट का मुकाबला कर सकते हैं और एक स्वस्थ, समृद्ध भविष्य की नींव रख सकते हैं।

यह लेख ‘मीडिया स्वराज’ के पाठकों के लिए लिखा गया है, जो जागरूकता बढ़ाने, सूचना साझा करने और व्यवहारिक बदलाव की दिशा में प्रेरणा देने का प्रयास करता है।निजी समस्या के लिए कृपया डाक्टर से सलाह लें .

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