ढाई आख़र प्रेम सांस्कृतिक यात्रा इलाहाबाद में
प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ, जन संस्कृति मंच एवं स्वराज विद्यापीठ के सहयोग से समानान्तर इलाहाबाद द्वारा 7 मई को ढाई आख़र प्रेम सांस्कृतिक यात्रा के समर्थन में प्रातः 8.00 बजे अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद स्मारक स्थल, कंपनी बाग़, इलाहाबाद में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर समानान्तर एवं भूमिका के सदस्यों द्वारा’ तू ज़िंदा है तो जिंदगी की जीत पर यक़ीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर’ गीत गाकर कार्यक्रम की शुरुवात की गई तत्पश्चात अमर शहीद चंद्रशेखर की मूर्ति के चरणों में सभी संगठनों के सदस्यों ने फूल माला चढ़ाकर शहीदों के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
इस अवसर पर अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार प्रो राजेन्द्र कुमार जी ने कहा, ये शहीदों कि ज़िंदा उम्मीद है और इस उम्मीद को लेकर हम कितना आगे बढ़ सकते हैं यह हमें निरंतर सोचते रहना होगा।जिन ढाई अक्षरों की रक्षा का संकल्प लेकर हमारे साथी सद्भावना यात्रा में निकले हैं, हम सब उनके हम राह हैं, जहां भी हैं अपने दोनों हाथों को जुड़ा हुआ महसूस करें। कोई अपने को अकेला न महसूस करे। हमारी चाहत बनी रहना चाहिये।
जनवादी लेखक संघ के अध्यक्ष कवि हरीश चंद्र पांडेय ने कहा, आज जिस दौर से हमारा देश गुज़र रहा है ऐसे दौर में इस तरह के सद्भावना यात्राओं की नितांत आवश्यकता है जो भाईचारे का संदेश जन जन तक पहुँचाये। नफ़रत के प्रतिकार के लिए पूरी दुनिया को इस समय ढाई आख़र की ज़रूरत है।जन संस्कृति मंच की ओर से साथी के. के. पांडेय ने जन सरोकारों से जुड़े इस तरह के सांस्कृतिक यात्राओं के अधिक से अधिक पहल पर ज़ोर दिया। प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से श्री सुरेंद्र राही जी ने कहा, जहां आज चारों ओर एक निराशा का दौर है ऐसे वक़्त पर इस तरह की सांस्कृतिक यात्राओं से सभी रचनाकारों को शक्ति मिलती है, एकजुट होकर हमें कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देती है।
कवि यश मालवीय ने अपने प्रसिद्ध गीत’ दबे पैरों उजाला आ रहा है, फ़िर कथाओं को खंगाला जा रहा है एवं कवि अंशु मालवीय ने ‘इंसानियत की बोली को नए सिरे से गढ़ेंगे हम…गाकर सुनाया।
श्रीमती स्वाति गांगुली और श्रीमती अनिता त्रिपाठी ने कवि गुरु रबीन्द्रनाथ टैगोर की अमर रचना, जोदि तोर डाक शुने क्यू ना आशे तो एकला चलो रे’ को सस्वर गाकर सुनाया।आइसा की ओर से विवेक और उनके साथियों ने ‘ए रहबर मुल्क कौम बता,ये किसका लहू है कौन मरा… गाकर समा बांधा।
सभी रचनाकार इस बात से एकमत हैं कि पूरी दुनिया को प्रेम और सौहार्दपूर्ण वातावरण की आज जितनी आवश्यकता है ,इतनी इसके पहले दुनियां को कभी नहीं रही । पूरे विश्व में अपनी छोटी-छोटी जरूरतों और स्वार्थों की पूर्ति के लिए इस सीमा तक गिरने को आदमी तैयार हो गया है कि उसे अपना और आगे की पीढ़ी का भविष्य नहीं दिखाई दे रहा है। पूरी दुनिया में नफरत का वातावरण बनता चला जा रहा है। पूरी दुनिया यह महसूस कर रही है कि इन परिस्थितियों से निकलने का केवल एक ही रास्ता है कि इंसान और इंसान के बीच जैसे भी हो प्रेम का वातावरण एक बार फिर बनाया जाए।
कार्यक्रम के अंत में सबके प्रति आभार एवं धन्यवाद प्रो अनीता गोपेश एवं कवि बसंत त्रिपाठी जी ने दिया तथा पूरे कार्यक्रम का संचालन अनिल रंजन भौमिक ने किया।इस अवसर पर श्री आनंद मालवीय, डॉ स्वप्निल श्रीवास्तव, प्रो विवेक तिवारी,डॉ सूर्य नारायण, श्री विवेक निराला, डॉ अंशुमान, श्री प्रत्कर्ष मालवीय आदि मौजूद रहे।
भारतीय जन नाट्य संघ( इप्टा) द्वारा आज़ादी के 75 साल के अवसर पर ढाई आख़र प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा का आयोजन विगत 9 अप्रैल 2022 से किया गया है।यह यात्रा छत्तीसगढ़, झारखंड,बिहार होते हुए 8 मई को उत्तरप्रदेश के वाराणसी शहर में प्रवेश कर रही है और 22 मई को इंदौर में इसका समापन होगा।