गॉंधी के सेवाग्राम आश्रम की ख़ादी अवैध घोषित
बापू की एक और धरोहर को ख़तरा
राम दत्त त्रिपाठी
भारत सरकार के ख़ादी ग्रामोद्योग आयोग ने महात्मा गांधी द्वारा स्थापित सेवाग्राम, वर्धा में ख़ादी वस्त्रों के उत्पादन को अवैध घोषित कर बिक्री तुरंत बंद करने का आदेश दिया है।नागपुर में आयोग के निदेशक आर वी महिंद्रकर ने आश्रम के अध्यक्ष टी एल प्रभु को पचीस मार्च को एक पत्र लिखकर कहा है कि आश्रम के ख़ादी ग्रामोद्योग भंडार में ख़ादी मार्क प्रमाणपत्र प्राप्त किए बिना ही ख़ादी नाम का उपयोग कर ख़ादी वस्त्रों की अवैध/ अनाधिकृत रूप से बिक्री की जा रही है। पत्र में यह भी चेतावनी दी गयी है कि ,”यदि बिक्री तुरंत बंद नहीं की गयी तो आपके विरुद्ध क़ानूनी कार्यवाही की जाएगी, जिसके लिए आप स्वयं ज़िम्मेदार होंगे।”
सेवाग्राम गांधी की धरोहर
महाराष्ट्र के वर्धा ज़िले में सेवाग्राम आश्रम महात्मा गाँधी की धरोहर है . यहॉं बापू कुटी के अलावा उनके द्वारा शुरू किये गये अनेक रचनात्मक कार्यों में से एक खादी कपड़े का उत्पादन है.
हाथ से सूत कातकर कपड़ा बुनना हज़ारों साल पुराना हुनर , रोज़गार और बिज़नेस है . भारतीय वस्त्र उद्योग का यह व्यापार पूरी दुनिया में फैला था , जो भारत की सम्पन्नता का एक प्रमुख आधार था.
औद्योगिक क्रांति ने यह समीकरण उलट दिया . जो अंग्रेज पहले भारत का कपड़ा आयात करते थे , उन्होंने मैन्चेस्टर में कपड़ा बनाने के कारख़ाने लगाये और भारत से कपास का आयात कर हमें कपड़ा निर्यात करने लगे. सरकार और डंडे के ज़ोर पर उन्होंने तमाम टैक्स लगाकर और ज़ोर ज़बरदस्ती से हमारे वस्त्र उद्योग को बर्बाद कर दिया.
महात्मा गाँधी लंदन में पढ़े और अफ़्रीका में कढ़े थे , वे ब्रिटिश समाज , उनके बिज़नेस कल्चर और राजकाज के तौर तरीक़ों से बहुत अच्छी तरह वाक़िफ़ थे . इसलिए भारत में अंग्रेज़ी व्यापार की कमर तोड़ना भारत की आज़ादी की लड़ाई की रणनीति का मुख्य आधार बना. उन्होंने चरखा संघ की स्थापना की और कपास से सूत कातकर कपड़ा बुनने के घरेलू उद्योग को पुनर्जीवित किया . इस कपड़े की बिक्री के लिए देश भर में खादी भंडार और गॉंधी आश्रमों की विशाल श्रंखलाएँ खड़ी हुईं. यह भारत को आत्मनिर्भर बनाने के अभियान का भी हिस्सा था . यह सब चमत्कार कैसे हुआ , बिज़नेस स्कूलों के लिए शोध का विषय है.
आज़ादी के बाद खादी एवं ग्रामोद्योग की मदद के लिए सरकार ने आयोग स्थापित किया . उधर चरखा संघ का विलय नवगठित सर्व सेवा संघ में हो गया . प्रारंभ में आयोग गॉंधी स्कूल में प्रशिक्षित लोगों के हाथ में था. पर बाद में अनुदान और राज्याश्रय से खादी उद्योग भी धीरे – धीरे भ्रष्टाचार और लाल फ़ीताशाही की भेंट चढ़ गया . सूत कातने वाले , बुनकर और खादी संस्थाएं इस सरकारी व्यवस्था में कराहने लगे.
अनुदान की व्यवस्था से बहुत से मुनाफ़ाख़ोर व्यापारी और कंपनियॉं भी इस धंधे में घुस आये . सरकार ने इनसे छुटकारा दिलाने के बजाय एक ऐसा क़ानून बना दिया जिससे वास्तव में ज़मीन पर खादी उत्पादन में लगी संस्थाओं पर ही मुसीबत आ गयी. क़ानून के मुताबिक़ खादी के नाम से कोई कपड़ा बेंचने के लिए खादी मार्क का परमिट लेना होगा. यह क़ानून भी एक तरह से गरीब की खादी का कारपोरेटीकरण है.
होना यह चाहिए था कि प्रमाणीकरण का काम पुरानी अनुभवी खादी संस्थाएँ स्वयं करें .
खादी वस्त्र गॉंव – गॉंव घर -घर बनते हैं, फिर छोटी – छोटी संस्थाओं द्वारा संचालित भंडारों के माध्यम से बिकते हैं. इन संस्थाओं के पास सरकारी तंत्र से डील करने का न तो ज्ञान है और न ही मैनपॉवर . सरकारी तंत्र के पास भी खादी की समझ का अभाव है . ऐसे में यह खादी प्रमाणीकरण क़ानून शोषण और भ्रष्टाचार का नया ज़रिया है जिसमें चालाक मुनाफ़ाख़ोर व्यापारी बिना चरखा रखे , बिना सूत काते और बिना बुनाई धुलाई माल काट रहे हैं . सूत कातने वाले , बुनकर और खादी संस्थाएँ परेशान हैं.
सरकार के सामने परेशानी रखी गयी पर कोई ध्यान देने वाला नहीं है. सर्वोदय और खादी संस्थाओं में भी अब जुझारू लोग कम बचे हैं जो सरकार की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए संघर्ष करें .
इसलिए मनबढ़ सरकार ने अब खादी के मर्म स्थान पर चोट की है. महात्मा गाँधी के अपने सेवाग्राम आश्रम को एक नोटिस देकर कहा गया है कि सरकार से खादी मार्क का प्रमाणपत्र न लेने के कारण उनका उत्पादन अवैध यानि ग़ैरक़ानूनी है. संस्था को अपना उत्पादन और बिक्री बंद करने का आदेश दिया गया है.
भारत में सर्वोदय एवं गांधी संगठनों को शीर्ष संस्था सर्व सेवा संघ के मैनेजिंग ट्रस्टी अशोक शरण ने एक लेख में कहा है कि, “इसका अर्थ है गांधी जी के समय से जो कताई बुनाई इस आश्रम मे किया जा रहा था वह बंद करवा दिया जायेगा। गांधी जी ने कभी सोचा नहीं होगा कि जो आश्रम पूरे देश में खादी के माध्यम से लोगों को स्वावलंबी बना कर अंग्रेजी हकूमत के विरुद्ध खड़ा करने के लिए कार्य कर रहा है उसे।आजाद भारत में एक दिन अपनी ही सरकार द्वारा कटघरे में खड़ा कर दिया जायेगा। यहां लाखों की संख्या मे लोग बापू कुटी देखने आते हैं। चरखे की तान पर प्रत्यक्ष कताई, बुनाई देख मंत्रमुग्ध होते हैं और वहीँ से देश की आजादी का चोला खादी वस्त्र भी खरीद लेते हैं। इतने पवित्र, शुद्ध और आस्था के मदिर से ख़रीदे गए खादी वस्त्र को सरकार का “खादी मार्क” भी शुद्ध नहीं कर सकता।”
अशोक शरण ख़ादी ग्रामोद्योग आयोग में अधिकारी रह चुके हैं और उनके पिता जलेश्वर नाथ शरण गांधी जी के समय में सूत कताई के शिक्षक थे।अशोक शरण ने अपने लेख में आगे कहा है कि, “सेवाग्राम आश्रम को खादी ग्रामोद्योग आयोग के पत्र को अति गंभीरता से लेकर यह निर्णय करना चाहिए कि खादी कताई, बुनाई आदि की जो प्रवृत्ति गांधीजी के समय से आश्रम में चली आ रही है वह अनवरत जारी रहना चाहिए। आश्रम को आयोग के किसी दबाव के आगे नहीं झुकना चाहिए। यदि खादी की अस्मिता को बचाने के लिए सत्याग्रह करना पड़े तो उसके लिए भी सेवाग्राम आश्रम को तैयार रहना होगा।”
गांधी विद्या संस्थान बनारस का मामला
गॉंधी संस्थाओं पर यह पहला प्रहार नहीं है. कुछ स्वार्थी लोगों ने सरकारी तंत्र से मिलकर राजघाट बनारस में लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा स्थापित गॉंधी विद्या संस्थान संस्थान की सोसायटी को भंग करवा दिया . अपील हाईकोर्ट में सालों से लंबित है.
गुजरात में बापू के साबरमती सत्याग्रह आश्रम पर क़ब्ज़े के लिए एक नया सरकारी ट्रस्ट बना लिया है. जिस देश में लोगों को पेट भर भोजन के लिए हाथ पसारने पड़ते हैं वहॉं बारह सौ करोड़ रुपयों से आलीशान टूरिस्ट काम्लेक्स बनाकर गॉंधी की आत्मा को कष्ट पहुँचाने का काम होगा. सत्तारूढ़ लोग वहॉं अपने नाम का पत्थर लगाकर गॉंधी के आश्रम को भव्यता देने का ढोंग करेंगे.
साबरमती आश्रम दुनिया में सादगी, त्याग तपस्या , सामाजिक समरसतावादी और शांतिपूर्ण अहिंसक संघर्ष का जीता जागता उदाहरण है . इसे अगली पीढ़ी को प्रेरित करने के लिए इसी रूप में सुरक्षित रखना चाहिए अन्यथा लोगों को विश्वास को विश्वास नहीं होगा कि शक्तिशाली ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने के संघर्ष का नायक का निजी जीवन और सार्वजनिक काम करने का तरीक़ा कैसा रहा होगा.
आश्रम की व्यवस्था का पहले से संचालन करने वाले ट्रस्टों के पदाधिकारी सरकार के आतंक से ख़ामोश हैं . बाक़ी गॉंधीवादी , सर्वोदय वादी , जेपी और लोहिया के अनुयायी , तमाम राजनीतिक दल , सामाजिक संगठन और क्रांतिकारी लोग भी ख़ामोश हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं. यह सब तब हो रहा है जब देश स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव और गॉंधी के जन्म की डेढ़ सौवीं जयंती मना रहा था.
गॉंधी ने अपनी कोई सम्पत्ति अपने परिवार को नहीं दी . लेकिन अब गॉंधी की धरोहर और उनके सम्मान की रक्षा लिए गॉंधी के प्रपौत्र तुषार को आगे आना पड़ा. हाईकोर्ट से याचिका ख़ारिज होने के बाद वह मामला सुप्रीम कोर्ट में है। ग़नीमत है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए मामले की सुनवाई गुण दोष के आधार पर करने का आदेश दिया है।
जिस गॉंधी ने जीवन भर न्याय , समानता , स्वतंत्रता और बंधुत्व की रक्षा के लिए जीवन भर संघर्ष और आत्म बलिदान दिया अब स्वतंत्र भारत में उसकी निशानियों और धरोहर के लिए ख़तरा है इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है.
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