ग्रेट बैरियर रीफ़ पर गंभीर ख़तरा, मामला संयुक्त राष्ट्र में पहुंचा
दुनिया की सबसे बड़ी कोरल रीफ़, द ग्रेट बैरियर रीफ, एक बार फिर खबरों में है। और यह खबर बुरी है।
ऑस्ट्रेलियाई पर्यावरण समूह क्लाइमेट काउंसिल की ताज़ा रिपोर्ट की मानें तो औस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्वी तट के पास समुद्री तापमान इतना बढ़ गया है कि इससे ग्रेट बैरियर रीफ में एक सामूहिक ब्लीचिंग का भी खतरा बढ़ गया है। वैज्ञानिकों कि मानें तो तापमान की यह औसत बढ़ोतरी लगभग दो से चार डिग्री सेल्सियस तक है।
ब्लीचिंग मतलब रंग उतरना। और मूँगों की ऐसी सामूहिक ब्लीचिंग तब होती है जब उनके अंदर के शैवाल बाहर निकल आते हैं और इस वजह से मूंगों का रंग सफेद हो जाता है। बीते दशक में ऐसी ब्लीचिंग तीन बार हो चुकी है और बढ़ते तापमान से एक बार फिर ऐसा खतरा मंडरा रहा है।
घटनाक्रम कि सत्यता पर मुहर लगाते हुए ग्रेट बैरियर रीफ मरीन पार्क अथॉरिटी ने कहा है कि “पूरे मरीन पार्क में ब्लीचिंग का पता चला है। यह व्यापक लेकिन परिवर्तनशील है। कई क्षेत्रों में मामूली से लेकर गंभीर प्रभाव तक कि सूचना मिली है।”
लेकिन ऑस्ट्रेलियन रिसर्च काउंसिल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर कोरल रीफ स्टडीज के विशिष्ट प्रोफेसर और ग्रेट बैरियर रीफ के एक प्रमुख विशेषज्ञ, टेरी ह्यूस, का तो कहना है कि रीफ 2016 से ही चौथे बड़े पैमाने के ब्लीचिंग का अनुभव कर रही है।
संयुक्त राष्ट्र के रडार पर
घटनाक्रम की गंभीरता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र की एक टीम ने भी इस विश्व धरोहर स्थल की यात्रा शुरू की है। यह टीम इस बात का मूल्यांकन करेगी कि रीफ को “खतरे में” घोषित किया जाए या नहीं। अभी कुछ दिन पहले ही ऑस्ट्रेलिया सरकार के ग्रेट बैरियर रीफ मरीन पार्क प्राधिकरण ने बताया था कि क्वींसलैंड राज्य के तट के पास तापमान काफी बढ़ गया था। और बढ़ते तापमान का असर न सिर्फ समुद्र में मछलियों और अन्य जीवों पर पड़ रहा है, उसकी वजह से पर्यटन को भी चोट पहुंच सकती है।
अगर जलवायु परिवर्तन कि यही रफ़्तार रही तो, क्लाइमेट काउंसिल की रिपोर्ट के मुताबिक़, साल 2044 के बाद से हर साल ही ऐसी ब्लीचिंग होने की संभावना बन जाएगी। इस दिशा में वैज्ञानिकों के इस समूह ने मांग की है की ऑस्ट्रेलिया अपने कार्बन उत्सर्जन को 2030 तक 2005 के स्तर के मुकाबले 75 प्रतिशत नीचे लाये। ध्यान रहे कि यह सरकार के लक्ष्य से तीन गुना ज्यादा है.
फैसला अब यूनेस्को के हाथ
यूनेस्को के विशेषज्ञों ने बीती 21 मार्च को ही ऑस्ट्रेलिया की 10-दिवसीय यात्रा शुरू कर दी है। इस दौरान वो सरकार की रीफ 2050 योजना की समीक्षा करने के लिए वैज्ञानिकों, नियामकों, नीति निर्माताओं, स्थानीय समुदायों और मूल निवासी के नेताओं से मिलेंगे। यूनेस्को ने एक बयान में कहा कि टीम का मुख्य लक्ष्य यह पता करना है कि योजना “जलवायु परिवर्तन और अन्य कारणों की वजह से ग्रेट बैरियर रीफ के प्रति खतरों का सामना करती है या नहीं और तेजी से कदम बढ़ाने का रास्ता बताती है या नहीं।” इन विशेषज्ञों की रिपोर्ट मई में आने की संभावना है, जिसके बाद विश्व धरोहर समिति में अनुशंसा भेजी जाएगी कि स्थल को “खतरे में” घोषित किया जाए या नहीं। समिति की बैठक जून में होनी है। 2015 और 2021 में ऑस्ट्रेलिया को “खतरे में” की घोषणा बचाने के लिए भारी लॉबिंग करनी पड़ी थी।
ध्यान रहे कि हाल की IPCC (आईपीसीसी) रिपोर्ट के अनुसार, उष्णकटिबंधीय कोरल रीफ़ को जलवायु परिवर्तन से गंभीर खतरा है। यदि वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है, तो उष्णकटिबंधीय कोरल रीफ़ में 70-90% गिरावट आती है, और यदि वार्मिंग 2 डिग्री सेल्सियस तक जारी रहती है तो इनमें 99% गिरावट देखी जाएगी। वर्तमान उत्सर्जन नीतियों और प्रतिबद्धताओं ने दुनिया को लगभग 2.3-2.7 डिग्री सेल्सियस की वार्मिंग के मार्ग पर डाल दिया है।
क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया की जलवायु नीतियां वार्मिंग को सीमित करने के लिए बेहद अपर्याप्त’ हैं, और – यदि अन्य देशों द्वारा इन्हे दोहराया जाता है – तो 3-4 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग हो जाएगी। ये देश दुनिया में कोयले के शीर्ष दो निर्यातकों में से एक है। ऑस्ट्रेलिया की जलवायु नीतियां और प्रतिबद्धताएं पेरिस समझौते के अनुकूल नहीं हैं और ऑस्ट्रेलिया को उत्सर्जन में कमी के लिए अधिक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करने की आवश्यकता है।