मुसलमान जिन्हें हिंदुस्तनियत की जानकारी नहीं
जिन्हें हिंदुस्तानियत की ज़रा भी जानकारी नहीं है।
भारत में मुसलमानों की एक ऐसी पौध फलने फूलने लगी है जिन्हें हिंदुस्तानियत की ज़रा भी जानकारी नहीं है। वे यहाँ के आम मुसलमानों को पत्थर-पुजवा मुसलमान बताते हैं। यहाँ के मुसल्मानों के मज़हबी बर्तावों को शिर्क और जहालत बताते हैं। गाने-बजाने, यहाँ तक कि शेरो शायरी को घटिया बताते हैं और ग़ैर इस्लामी बताते हैं। दरगाह-ख़ानक़ाह जाने को मायूब मानते हैं और एक बैरूनी तहज़ीब को हिंदुस्तानी मुसलमानों पर थोपने पर तुले हैं। इस्लाम की इनकी समझ किसी भी सूरत में जोड़ने वाली नहीं और कट्टरपन को बढ़ावा देने वाली है।
इन चपड़ क़नातियों को यह इल्म नहीं कि हिंदुस्तान ही नहीं लगभग पूरे मशरिक़ी एशिया में इस्लाम फैलने की असली वजह क़ुरआन या हदीस नहीं बल्कि क़बर-परस्त और भांड और मिरासी कहे जाने वाले सूफ़ियों का अवाम और पसमांदा लोगों के लिए पुरख़ुलूस व्यवहार रहा है। यहाँ अभी भी 90फ़ीसदी मुसलमान ऐसे हैं जिन्होंने कभी क़ुरआन नहीं पढ़ी 99.99फ़ीसदी ऐसे हैं जिन्होंने क़ुरआन को समझ कर नहीं पढ़ा है। इससे उनका मज़हब या दीन कमज़ोर है कम से कम हम ऐसा नहीं मानते।
एकरंगे इस्लाम की वकालत करने वाले ये वही लोग हैं जो कभी मांग-मांगणियार के सिर से पगड़ी को हटाकर एक ख़ास तरह की टोपी जमा देने पर बज़िदहैं। ये वही हैं जो नक़ाब और हिजाब को मुस्लिम औरतों का मज़हबी हक़ बताते हैं पर उन्हें मस्जिद में दाख़िल होने से रोकते रहे हैं। उनके दैन मेहर और नान ओ नफ़्क़ा के हक़ से महरूम रखने की हर मुमकिन कोशिश करते रहे हैं।
ताज्जुब है कि दानिशमंदों और लिबरल सेक्युलरों की एक फ़ौज हमेशा इनके साथ मुस्तैदी से खड़ी दिखती है। हिन्दू औरतों के घूंघट, व्रत-उपवास, सिंदूर और करवा चौथ जैसे कर्मकाण्डों का मज़ाक़ उड़ाते रहने वाले ये सेक्युलर नक़ाब और हिजाब को संविधान और लोकतंत्र की लड़ाई की तरह पेश करने लगते हैं। इन्हें एक धर्मसमूह की सम्प्रदायिकता फ़ासीवाद बुझाती है और दूसरे की सम्प्रदायिकता धार्मिक आज़ादी। इस सेक्युलर जमात ने इस मुल्क में आरएसएस गिरोह को ख़ूब मदद पहुँचाया है। और इन दोनों गिरोहों की कारस्तानियों का ख़ामियाज़ा यहाँ के मुसलमान भुगत रहे हैं।
बात कड़वी है। बर्दाश्त न कर पाइये तो ब्रांडिंग और labelling में लग जाईये। ये सरकार और उसको चलाने वाले भी यही करते हैं आप जिनकी मुख़ालिफ़त का स्वांग करते हैं।
इश्तियाक अहमद,पटना