शहीद दिवस पर विशेष: गाँधी के राम- रामहि केवल प्रेम पियारा

राम ने इस लोकचेतना को राक्षसी संस्कृति से जूझने के लिए सक्षम बनाया जो दैवी संस्कृति को पराजित कर चुका था. गाँधी के लिए राम का वनवास एक प्रेरणा का स्रोत है जो जनचेतना के लिए गाँधी दर्शन का मूलाधार रहा. गाँधी दर्शन के अनुयाई आचार्य विनोबा भावे ने.....

शहीद दिवस पर विशेष: महर्षि भारद्वाज ,प्रयागराज गुरुकुल के दस सहस्त्र बटुकों के कुलपति को संशय हुआ की अवधेशकुमार राम और परमब्रह्म परमात्मा राम एक ही हैं या अलग अलग. अपने गुरु महर्षि याज्ञवल्क्य के समक्ष उन्होंने यह प्रश्न रखा –रामु  कवन प्रभु पूँछउँ तोहि. समाधान हेतु गुरु ने अपने शिष्य को सीताहरण के उपरांत उस कथा का उल्लेख किया –सीता के वियोग में राम खग मृग से पूछ रहे थे माता भवानी  को भी संशय हुआ –ब्रह्म जो व्यापक बिरज अज अकल अनीह अभेद, सो की देह धरि होइ नर जाहि न जानत वेदजो ब्रह्म सर्वव्यापक, मायारहित अजन्मा, अगोचर, इच्छारहित और भेदरहित है जिसे वेद भी नहीं जान पाए  क्या वह देहधारण करके मनुष्य हो सकते हैं, देवाधिदेव शिव ,भवानी को समझते रहे की –अवतरेउ अपने भगत हित निजतंत्र नित रघुकुलमनि –सती भवानी का संशय दूर नहीं हुआ और उन्होंने राम की परीक्षा ली(शहीद दिवस पर विशेष).

Source: Social Media

राम के अलग अलग अनुरागी चित रहे है –माता कौशिल्या से लेकर विश्वामित्र ,वशिष्ठ ,निषादराज गुह ,अरण्य के वानर ,रीछ. गीध,विभीषण आदि अदि. बल बुद्धि निधान हनुमान ने राम को पहिचान कर नमन किया –प्रभु पहिचान परेउ गहि चरना।राम कवन प्रभु का उत्तर वाल्मीकि रामायण से लेकर समस्त भारतीय भाषाओं की रामकथाएं ढूंढती रही है. भक्त कवि सगुण हो या निर्गुण अपने अपने मनोभावों में अपने अपने तरीके से राम को जाना. तुलसी ने कहा –ऐसो को उदार जग माहीं ,बिनु सेवा जो द्रवै दीन पर राम सरिस कोउ नाही. कबीर बहुत साफ उद्घोष करते हैं –सब में रमै रमावे कोई ,ताकर नाम राम अस होइ. कबीर की दृष्टि में –चार नाम हैं जगत में तीन नाम व्यवहार ,चौथ राम सो सार है ताना करो विचार. शूद्र संत रविदास ब्रह्मज्ञानी भक्त थे उन्होंने कहा –हउ बनजारा राम को सहज करउ व्यापर ,मैं राम नाम धन ला दिया बिखु लारी संसार.राम की भक्ति ने रैदास को उच्च बना दिया(शहीद दिवस पर विशेष).

गाँधी ने भक्तों ,ब्रह्मवेत्ताओं के राम को आत्मसात करते हुए उसे सत्य के रूप में देखा. जीवन पर्यन्त अपनी साधना में गाँधी ने राम का ही आश्रय लिया –कबीर आशा करिये राम की अबरै आस निराश. गाँधी के राम वह परम ब्रह्म परमेश्वर हैं जिसे महर्षि विश्वमित्र ने पहिचाना की इस दशरथनन्दन राजकुमार में वह रामत्व अन्तर्निहित है जिसे सिंहासन तक सिमित नहीं रहना है. इसे जनचेतना जागरण के लिए ,यज्ञ की रक्षा के लिए लोक में लाना होगा. गाँधी विश्वमित्र थे –कोई उनका शत्रु नहीं था उन्होंने अपने राम के  रामत्व  को सुराज के रूप देखा जिसे अपने पैदल यात्राओं और सत्याग्रह में अवतरित किया. कबीर का चौथा राम यही रामत्व है जिसके आराधक भक्त गाँधी थे राम ने अपने वनवास काल में उत्तर से दक्षिण तक,वनवासी रीछ ,वानर ,निषाद,गीध जैसी  शोषित दलित उपेक्षित संस्कृतियों का एकीकरण कर  मर्यादित मानवीय संस्कृति का संश्लेषण किया. जन सामान्य और ऋषियों मुनियों का एकीकरण किया.

राम ने इस लोकचेतना को राक्षसी संस्कृति से जूझने के लिए सक्षम बनाया जो दैवी संस्कृति को पराजित कर चुका था. गाँधी के लिए राम का वनवास एक प्रेरणा का स्रोत है जो जनचेतना के लिए गाँधी दर्शन का मूलाधार रहा. गाँधी दर्शन के अनुयाई आचार्य विनोबा भावे ने इसका पालन किया. आजाद भारत की पहली पंचवर्षीय योजना में विचार विमर्श के लिए जब आचार्य जी को आमंत्रित किया गया तो विनोबा जी ने वर्धा से दिल्ली तक की रेलयात्रा नहीं की वे पदयात्रा से दिल्ली चल पड़े. यही वह रामत्व है जिसे गाँधी ने अपने ईश्वर से ग्रहण किया था. भावे पंचवर्षीय योजना को जन भावनाओ के अनुकूल बनाने के लिए इसे आवश्यक समझते थे. राम ने अपने जीवन में वचनो का पालन किया यह गाँधी के लिए वह आदर्श था जिसके बल पर उन्होंने जीवन पर्यन्त व्रत का पालन किया. गाँधी व्रत की पवित्रता के पक्षधर थे ,वे दूसरों के अपराध को अपने ऊपर ओढ़कर प्रायश्चित करते थे.

रामत्व के बल पर ही गाँधी ने प्रत्यक्ष आदर्शों को ही प्रमाण माना. गाँधी को ईश्वर पर अटूट विश्वास था और उनकी शक्ति उनका ईश्वर था. गाँधी पर उनकी भी आस्था थी जो ईश्वर को नहीं मानते थे तथा गाँधी भी उन पर भी विश्वास करते थे जिनका ईश्वर में विश्वास नहीं था. गाँधी ईश्वर ही सत्य है के बजाय सत्य ही ईश्वर कहा करते थे.

रामराज्य की कल्पना को स्पष्ट करते हुए 20 मार्च 1930 को गाँधी ने हिंदी पत्रिका नवजीवन में स्वराज्य और रामराज्य शीर्षक से एक लेख लिखा –स्वराज्य के कितने भी अर्थ क्यों न किये जाएँ तो भी मेरे नजदीक उसका त्रिकाल सत्य एक ही अर्थ है और वह है रामराज्य. यदि किसी को रामराज्य शब्द बुरा लगे तो मैं उसे धर्मराज्य कहूंगा. रामराज्य शब्द का भावार्थ यह है की उसमे गरीबों की सम्पूर्ण रक्षा होगी. सब काम धर्मपूर्वक किये जाएंगे और लोकमत का हमेशा आदर किया जाएगा. सच्चा चिंतन तो वही है जिसमे रामराज्य के लिए पवित्र साधन का ही उपयोग किया गया हो.

यह याद रहे की रामराज्य स्थापित करने के लिए हमें पांडित्य की आवश्यकता नहीं है ,जिस गुण  की आवश्यकता है वह तो सभी वर्गों के के लोगों स्त्री ,पुरुष ,बालक ,और बूढ़ों तथा सभीधर्मों के लोगों में आज भी मौजूद है ,दुःख केवल इतना है सब कोई अभी उस हस्ती को पहिचानते ही नहीं. सत्य ,अहिंसा ,मर्यादापालन ,वीरता ,क्षमा ,धैर्य आदि गुणों का हममे से हरेक एक व्यक्ति यदि वह चाहे तो क्या आज ही परिचय नहीं दे सकता।रमन्ते इति रामः –जो रोम रोम से लेकर पूरे ब्रह्माण्ड में रमन करता है स्थित है ,जिसके लिए तुलसी ने कहा –कलियुग केवल नाम अधारा सुमिर सुमिर नर उतरे पारा उस राम की उपासना गाँधी आत्मशुद्धि और आत्मबल द्वारा करते थे गाँधी ने राम को व्यापक फलक पर प्रक्षेपित करते हुए रामधुन में –रघुपति राघव राजाराम के साथ ईश्वर अल्ला तेरो नाम जोड़कर एक ऐसा मन्त्र दिया जिसका मंतव्य था उदार और सहिंष्णु परंपरा को सहेजना तथा नफ़रत और सम्प्रय्दायिकता को मिटाना.

गाँधी के राम थे –जड़ चेतन जगजीव जत सकल राममय जानिबंदउँ सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानिऐसे रामराज में –दैहिक दैविक भौतिक तापा रामराज काहू नहीं व्यापासब नर करहि परस्पर प्रीति चलहि स्वधर्म निरत श्रुति नितिऐसे रामराज का सन्देश है –सबसे सनेह सबको सन्मानियेगाँधी के हर साँस से राम को भजते थे ,अपने मृत्यु के एक दिन पूर्व गाँधी ने मनु से कहा था की यदिवे  किसी लम्बी बीमारी या व्याधि से शैय्या .पर दम तोड़े तो मान लिया जाए की वे महात्मा नहीं थे. यदि कोई बम विस्फोट हो या प्रार्थना सभा में जाते हुए उन्हें कोई गोली मारे और गिरते हुए उनके मुँह पर राम का नाम हो और मारने वाले के प्रति कोई कटुता न हो तो उन्हें भगवान का दास माना जाये. गाँधी के स्वांस स्वांस में अनवरत रामनाम की गूंज रही है तभी तो उन्होंने अपनी इस संसार की यात्रा –हे राम की ध्वनि उच्चारित करते हुए पूरी की और उस रामध्वनि को इस दुनिया के लिए छोड़ गए. नानक दुखिया सब संसार ओहि सुखिया नामाधार.

लेखक- डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज

Leave a Reply

Your email address will not be published.

sixteen − 13 =

Related Articles

Back to top button