रेल और हवाई यातायात बेक़ाबू , घोर अव्यवस्था से लोग परेशान
अनुपम तिवारी
महानगरीय कामगारों और मीडिया के दबाव को देखते हुए रेल मंत्री पियूष गोयल ने दावा किया है कि 3000 श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को पटरियों पर उतार दिया गया है. उनका आकलन है कि इससे लगभग 36 लाख श्रमिकों को सहूलियत होगी जो कोरोना संक्रमण से उपजी परिस्थितियों के बीच वापस अपने घर लौटना चाहते हैं. इन ट्रेनों के परिचालन में सामने आ रही अनगिनत समस्याओं को देखते हुए अब रेलवे ने नई गाइड लाइन जारी की है, जिसके अनुसार समय सारिणी, स्टॉपेज और गंतव्य अब रेलवे ही तय करेगी, यह अधिकार राज्य सरकारों से वापस ले लिया गया है. इस तरह वह राज्य सरकारों के असहयोग की ओर भी इशारा करते हैं.
पलायन करते श्रमिकों की समस्याओं पर रेल मंत्री के संज्ञान लेने के बावजूद स्थिति फ़िलहाल तो काबू में आती नहीं दिख रही है. विरोधाभास बहुत हैं. एक ओर तो कहा जा रहा था कि जरूरत पड़ने पर इससे भी ज्यादा ट्रेनें चला दी जाएंगी, पर ट्रेनें लगातार रद्द भी की जा रही हैं. नई दिल्ली से 7 श्रमिक स्पेशल ट्रेनें जो झारखंड जानी थीं, उन्हें रद्द करना पड़ा क्योंकि यात्रियों की संख्या बहुत कम थी. प्रति ट्रेन 1600 यात्रियों की क्षमता थी परन्तु आखिरी 2 ट्रेनों के लिए मात्र 391 और 461 यात्रियों ने आरक्षण कराया था.
ट्रेनों का आवश्यकता से अधिक विलंब से चलना और रुट बदल कर कहीं और भेज दिया जाना, यात्रियों के लिए दुःस्वप्न साबित हो रहा है. खबरों में अनुसार 40 ट्रेनें उनके निर्धारित मार्गों से इतर, दूसरे रास्तों से गंतव्य तक पहुचाई गयी हैं. वसई से गोरखपुर जा रही श्रमिक ट्रेन ओडिशा पहुच गयी, कर्नाटक की ओर जा रही ट्रेन गुजरात पहुच गयी, ऐसी खबरें आजकल सुर्खियों में हैं. झारखंड सरकार की मानें तो बोरीवली से देवघर आ रही ट्रेन 21 घंटे देर से पहुँची, तो वहीं मुम्बई से कोडरमा आ रही ट्रेन 72 घंटे से ज्यादा देर से चल रही है और समाचार लिखे जाने तक भी नहीं पहुची थी. लगभग हर राज्य सरकार ट्रेनों के इस लेट लतीफी से क्षुब्ध है. इस देरी की वजह से उनके संसाधन अपर्याप्त रह जाते हैं.
रेलवे ने इस पर जवाब देते हुए कहा है कि 80 प्रतिशत ट्रेनों के सिर्फ यूपी और बिहार की ओर चलने से इन मार्गों पर भारी ट्रैफिक हो रखा है. यह ट्रेनों के विलम्ब से चलने और मार्ग बदलने का प्रमुख कारण है. साथ ही विभिन्न स्टेशनों पर उतरते समय यात्रियों को एक लंबे चौड़े स्वास्थ्य परीक्षण प्रोटोकॉल से गुजरना होता है, इससे भी गाड़ियों के चलने में विलंब होता रहता है. इस कारण रेलवे की परेशानियां और बढ़ जाती हैं. उसे यात्रा के इन बढ़े हुए घंटों के अनुसार भोजन, पानी, सफाई आदि की अतिरिक्त व्यवस्था करनी पड़ती है.
एक समस्या दूसरी समस्या को जन्म देती है. विलंब से चलती ट्रेनों के चलते यात्री अपना धैर्य खो रहे हैं. मध्य प्रदेश के इटारसी में भोजन लूटते और यूपी के दीन दयाल उपाध्याय जंक्शन में पानी की बोतलें लूटते यात्रियों की तस्वीरें खूब वायरल हुई हैं. बंगलुरू से दरभंगा जा रही 07387 श्रमिक एक्सप्रेस के घंटो विलंब होते जाने के कारण, यात्रियों ने अपना आपा खो दिया और उन्नाव में स्टेशन मास्टर के कार्यालय व आसपास खड़ी गाड़ियों में तोड़ फोड़ की. रेलवे की संपत्ति को काफी नुकसान पहुंचाया. इसी प्रकार गत 14 मई को आसनसोल में भी यात्रियों के उग्र प्रदर्शन की घटना रिपोर्ट की गई थी, जो लंबी यात्रा के बाद ट्रेन में भोजन की कमी और टॉयलेट की गंदगी से नाराज थे. इसी तरह 21 मई को बोरीवली स्टेशन के निकट लगभग 3000 यात्रियों ने उग्र रूप धारण कर लिया. यहाँ यूपी और बिहार भेजने के लिए यात्रियों को स्टेशन के निकट महावीर नगर के मैदान में इकट्ठा किया गया था. बिहार के लोगों को तो ट्रेन दे दी गयी, परन्तु अज्ञात कारणों से जौनपुर (यूपी) के सभी टिकट निरस्त किये जाने की सूचना आयी. इस अचानक हुए फैसले से सोशल डिस्टेंसिंग जैसे प्रोटोकॉल हवा हो गए. बमुश्किल प्रशासन ने हंगामा कर रहे इन यात्रियों को शांत करवाया.
बिहार के मुज़्ज़फ्फरपुर में एक महिला रेलवे स्टेशन पर मृत पाई गई, जिसके लिए परिवार जन रेलवे पर आरोप लगाते रहे तो रेलवे बचने का प्रयास करती दिखी. डिब्रूगढ़-पुणे एक्सप्रेस के कटिहार स्टेशन के निकट आग पकड़ने की खबर भी आई, जिससे यात्रियों में भगदड़ मच गयी. ऐसी स्थिति में सुरक्षा के साथ कोरोना संक्रमण फैलने का भय भी खड़ा हो जाता है.
यात्रा शुरू होने के पहले भी इन मजदूरों को कई समस्याओं से जूझना पड़ता है. जो निरक्षर हैं, या स्मार्ट फ़ोन का इस्तेमाल नही कर सकते, उनसे यह आशा करना बेमानी है कि वह अंग्रेजी में एप्लीकेशन भर के उसको पीडीएफ फॉर्मेट में अधिकारियों तक पहुँचा पाएंगे. बंगलूरू में यात्रियों ने बताया कि उनको पता ही नही कि फॉर्म कैसे भरना है या फॉर्म जमा कहाँ करना है, जब वह पुलिस अधिकारी तक पहुचते हैं, तो वह उन्हें दूसरी जगह जाने को बोलते हैं. सूचना के अभाव और गलत सूचनाओं के आधार पर भटकते यह श्रमिक, संक्रमण के साथ साथ क्रोध को भी भड़काने का काम कर सकते हैं. सरकारी तंत्र इस व्यवस्था को सही ढंग से निपटाने में असमर्थ और भ्रमित दिखता है.
भ्रम सिर्फ रेलवे तक सीमित नही है. 25 मई से पुनः शुरू हुई हवाई उड़ानों में भी कमोबेश यही स्थिति है. गाइडलाइन्स जारी होने के बाद भी केंद्र और राज्यों में सामंजस्य नही दिखता. पहले दिन बंगाल, त्रिपुरा और आंध्र ने अम्फन तूफान को दृष्टिगत करते हुए उड़ानों की मंजूरी नही दी थी. अगले ही दिन आनन फानन में आंध्र ने वाइज़ाग और विजयवाड़ा की उड़ानें शुरू करने की आज्ञा दे दी. पहले कहा गया कि हवाई अड्डों में यात्रियों को ट्राली की सुविधा नही दी जाएगी, बाद में दी जाने लगी. कहा गया कि केबिन बैगेज स्वीकार्य नही है फिर वह सेवा भी उपलब्ध करा दी गयी. कैटरिंग सुविधा को लेकर भी असमंजस दिखा. यह बाद में स्पष्ट हुआ कि विमानों में भोजन नहीं मिलेगा उसके स्थान पर हवाई अड्डों में यह उपलब्ध कराया जायेगा.
क्वारेंटाइन नियमों को ले कर भी केंद्र और राज्यों में एकरूपता का अभाव है. नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप पुरी ने पिछले महीने कहा था कि, चूंकि कोरोना-संक्रमित व्यक्तियों को विमान में बैठने ही नही दिया जाएगा इसलिए क्वारेंटाइन करने का कोई औचित्य नही बनता. परंतु हाल यह है कि इस मसले पर भी राज्यों ने अपने अपने नियम बना लिए हैं. छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और असम ने 14 दिनों के क्वारेंटाइन को आवश्यक माना है तो वहीं कुछ राज्यों ने इस पर ढिलाई बरती है. उत्तर प्रदेश सरकार के अनुसार 14 दिन का क्वारेंटाइन सिर्फ उनके लिए है जिनकी पहले कभी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आयी है या वह संदिग्ध हैं. इसके अलावा जो यात्री बहुत कम समय के लिए प्रदेश आयेंगे उनको भी 14 दिन के इस नियम से सशर्त बाहर रखा गया है।
हिमाचल प्रदेश ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए अपने यहां आने वाले हवाई यात्रियों के लिए हिमाचल के वैध निवास प्रमाण पत्र का होना अनिवार्य कर दिया है. यदि किसी के पास यह नही है तो वह हिमाचल नही जा सकता. तमिलनाडु ने चेन्नई एयरपोर्ट पर 25 उड़ान प्रतिदिन का प्रतिबंध लगा दिया है वहीं अन्य एयरपोर्ट जैसे मदुरै में ऐसा कोई बंधन नही रखा. इसके अलावा तमिलनाडु में हर विमान यात्री को ‘TnePass’ बनवाना अनिवार्य कर दिया गया है.
कुल मिला कर इस प्रकार के तमाम निर्णय और उन निर्णयों की अस्पष्टता ने बीमारी से जूझ रहे इस देश मे समस्याओं को बढ़ाया ही है. निर्णयों में एकरूपता का अभाव है. केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय की कमी है जिसे जल्द ही दूर किया जाना चाहिए. अपने श्रमिकों की समस्याओं का संज्ञान लेते हुए आवश्यकता है प्राथमिकताएं निश्चित की जाएं और उन पर कार्यवाहियां त्वरित गति से की जाएं.
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