हे श्रमिक! तुम्हारी जय हो!!
महादेव विद्रोही
हे श्रमिक,
तुम देशभक्त हो, तुम महान हो।
तुम विकास की रीढ़ हो,
इसीलिए देश के विकास के लिए तुम्हारा
१२ घंटे काम करना ज़रूरी है
आओ इस यज्ञ में जुड़ जाओ।
यह तुम्हारा राष्ट्रीय कर्तव्य है।
तुम्हें बादशाह सलामत से
अपेक्षा थी कि वे तुम्हारे बारे में
सहायता का कुछ ऐलान करेंगे।
पर वे करोड़ों की बात करते रहे,
इसमें बेचारे मजदूर की क्या ज़रूरत?
अब भी हज़ारों-हज़ार मज़दूर नंगे पाँव,
सिर पर गठरी और कंधे पर बच्चे उठाये
अपने-अपने गाँवों की ओर चलते जा रहे हैं।
उनका सड़क पर चलना मना है,
क्योंकि यह राजमार्ग है।
इसपर आम लोगों का चलना मना है।
किसी ने हिम्मत की तो
पुलिस के डंडे से रूबरू होना पड़ता है।
काश! राजमार्ग बनाने वालों ने
कभी जनमार्ग बनाने के बारे में भी सोचा होता।
‘खलक ख़ुदा का, मुलुक बाश्शा का
हुकुम शहर कोतवाल का…
हर खासोआम को अगाह किया जाता है
कि ख़बरदार रहें
और अपने-अपने किवाड़ों को अंदर से
कुंडी चढ़ाकर बंद कर लें।
बच्चों को सड़क पर न भेजें…’
रेल भी बाश्शा की है
इसलिए इस पर चलोगे तो तुम्हारी रोटी
तुम्हारे ही ख़ून से सान दी जायेगी।
‘राष्ट्र नहीं होती भुक्खड जनता’
हमें उद्योगों को बढ़ाना है, क्योंकि
जीडीपी तुमसे नहीं, उनसे बढ़ती है।
राष्ट्र के विकास के लिए
ज़रूरी हैं कल-कारख़ाने
और इसे बनाने के लिए चाहिए ज़मीन,
वह हमें लेनी ही पड़ेगी,
इसके लिए भले ही उजड़ जायें तुम्हारे
घर और गाँव।
अधिकार और क़ानून की बात मत उठाओ
विकास की राह में रोड़े मत अटकाओ
राष्ट्र नहीं होता पर्यावरण, राष्ट्र नहीं होता जंगल,
राष्ट्र नहीं होती मछली, राष्ट्र नहीं होती कोयल।
राष्ट्र नहीं होती नदी, राष्ट्र नहीं होती हवा।
राष्ट्र नहीं होते पशु, राष्ट्र नहीं होती फ़सल।’
और जनता तो राष्ट्र पर
क़ुर्बान होने के लिए ही होती है।
इसलिए कुर्बानी के पथ पर
कदम कदम बढ़ाये जाओ, खुशी के गीत गाये जाओ।
लेखक सर्वोदय समाज के शीर्ष संगठन सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष हैं.