जानिये, काशी विश्वनाथ मंदिर प्रांगण में रानी अहिल्याबाई की मूर्ति स्थापित करने की वजह?

यह महज संयोग नहीं कि आज ही के दिन 11 दिसम्बर, 1767 को रानी अहिल्याबाई का मालवा राज्य की महारानी के तौर पर राज्याभिषेक किया गया था. इस मौके पर आइए करीब से जानें रानी अहिल्याबाई और काशी विश्वनाथ धाम के साथ उनके रिश्ते को.

अहिल्याबाई का मुख्य योगदान देशभर में मंदिरों, घाटों, धर्मशालाओं और धार्मिक स्थलों का निर्माण है. इतिहास में रानी अहिल्याबाई का नाम काशी में विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के लिये दर्ज है. मुगल शासक औरंगजेब के आदेश के बाद 1669 में मंदिर को क्षतिग्रस्त कर दिया गया था. इस आक्रमण के बाद बाबा के मंदिर और गर्भगृह का निर्माण ही नहीं करवाया बल्कि अहिल्याबाई ने शास्त्रसम्मत ढंग से 11 शास्त्रीय आचार्यों से पूजा करवाकर प्राण प्रतिष्ठा भी करवायी. तब से आज तक महादेव के भक्तों में रानी द्वारा निर्मित मंदिर और विश्वनाथ के उसी स्वरूप की मान्यता है.

मीडिया स्वराज डेस्क

काशी विश्वनाथ धाम के पुनर्निर्माण के बाद उसके लोकार्पण की सारी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 13 दिसंबर को देश को यह सौगात देने काशी पहुंचेंगे. काशी विश्वनाथ धाम का यह पुनर्निर्माण सनातनधर्मियों के लिये कई मायनों में खास है. खासकर तब, जबकि काशी विश्वनाथ धाम का पुनर्निर्माण करीब 250 साल बाद हो रहा हो. बता दें कि इससे पहले इंदौर की रानी अहिल्याबाई ने तकरीबन 1777-1780 में विश्वनाथ धाम का पुनर्निर्माण कराया था.

रानी अहिल्याबाई के उसी योगदान को याद करते हुये उनकी एक मूर्ति श्री काशी विश्वनाथ धाम के प्रांगण में लगायी जा रही है. साथ ही, मंदिर के पुनर्निर्माण को लेकर उनके योगदान को भी वहां की दीवार पर दर्ज किया गया है. यह महज संयोग नहीं कि आज ही के दिन 11 दिसम्बर, 1767 को रानी अहिल्याबाई का मालवा राज्य की महारानी के तौर पर राज्याभिषेक किया गया था. इस मौके पर आइए करीब से जानें रानी अहिल्याबाई और काशी विश्वनाथ धाम के साथ उनके रिश्ते को...

रानी अहिल्याबाई का काशी विश्वनाथ से है अटूट संबंध

इंदौर की रानी अहिल्याबाई होलकर आज भी किसी परिचय की मोहताज नहीं. इतिहास गवाह है कि उन्होंने देशभर में अलग-अलग स्थानों पर कई मंदिरों, घाटों का निर्माण का निर्माण कराया है पर काशी के इतिहास में उनका स्थान अमिट है. उनके योगदान के बिना श्री विश्वनाथ धाम का इतिहास पूरा नहीं हो सकता. यही वजह है कि रानी अहिल्याबाई की प्रतिमा विश्वनाथ धाम में लगाने का फैसला किया गया.

इतिहास के पन्नों को पलटें तो हम पायेंगे कि मुगल शासक औरंगजेब के आदेश पर 1669 में बाबा विश्वनाथ के मंदिर को ध्वस्त करने की कोशिश की गई थी. मंदिर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त किया जा चुका था, पर इसके बाद विश्वनाथ मंदिर के प्रांगण के पुनर्निर्माण का श्रेय इंदौर के होलकर घराने की रानी अहिल्याबाई को जाता है. रानी अहिल्याबाई ने न सिर्फ काशी में बाबा विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया बल्कि बाबा की प्राण प्रतिष्ठा भी पूरे विधि विधान और शास्त्र सम्मत तरीके से करायी.

रानी का योगदान अतुलनीय है. रानी अहिल्याबाई ने शास्त्र सम्मत तरीके से शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा करवाई. उन्होंने भगवान शंकर के एकादश रूद्र रूप के प्रतीक स्वरूप 11 शास्त्रीय आचार्यों द्वारा प्राण प्रतिष्ठा के लिये पूजा अर्चना करवाई. रानी ने शिवरात्रि से ही इसका संकल्प कराया और शिवरात्रि पर ही ये खोला गया. इससे रानी अहिल्याबाई के विजन और सनातन संस्कृति के प्रति निष्ठा का पता चलता है.

काशी के मर्मज्ञ प्रोफेसर राना पीवी सिंह कहते हैं, रानी का योगदान अतुलनीय है. रानी अहिल्याबाई ने शास्त्र सम्मत तरीके से शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा करवाई. उन्होंने भगवान शंकर के एकादश रूद्र रूप के प्रतीक स्वरूप 11 शास्त्रीय आचार्यों द्वारा प्राण प्रतिष्ठा के लिये पूजा अर्चना करवाई. रानी ने शिवरात्रि से ही इसका संकल्प कराया और शिवरात्रि पर ही ये खोला गया. इससे रानी अहिल्याबाई के विजन और सनातन संस्कृति के प्रति निष्ठा का पता चलता है.

रानी अहिल्या बाई होल्कर भारत की उन प्रमुख महिला शासिकाओं में से हैं, जिन्होंने अपना राज्य स्वयं संभाला. अहिल्याबाई होल्कर मराठा रानी थीं, और उनकी प्रशासन क्षमता और राज्य को चलाने की योग्यता अद्भुत थी. खुद प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भी उनकी प्रशासनिक क्षमता के गुणगान किये हैं. भारत सरकार ने उनकी याद में डाक टिकट भी जारी किया था.

रानी अहिल्या बाई होल्कर भारत की उन प्रमुख महिला शासिकाओं में से हैं, जिन्होंने अपना राज्य स्वयं संभाला. अहिल्याबाई होल्कर मराठा रानी थीं, और उनकी प्रशासन क्षमता और राज्य को चलाने की योग्यता अद्भुत थी. खुद प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भी उनकी प्रशासनिक क्षमता के गुणगान किये हैं. भारत सरकार ने उनकी याद में डाक टिकट भी जारी किया था.

“अहिल्या बाई ने इंदौर पर तीस सालों तक शासन किया. ये वक्त सुशासन और व्यवस्था की दृष्टि से यादगार माना जाता है. वो एक बेहद शानदार शासक और व्यवस्थापक थीं. पूरी जिंदगी लोगों के बीच बेहद सम्माननीय रहीं. और मृत्यु के बाद एक संत के तौर पर याद की जाती हैं.”, मराठा शासन के तहत मालवा की शासक रहीं अहिल्या बाई होल्कर के बारे में ये बातें भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने लिखी थीं. 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अमदनगर में जन्मीं अहिल्याबाई होलकर को आज भी मध्य प्रदेश के मालवा और महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में सम्मान से ‘राजमाता’ ही बुलाया जाता है. अहिल्या बाई धनगर जाति से थीं. उनके पिता मनकोजी राव शिंदे ने उन्हें बचपन में पढ़ना-लिखना सिखाया था. ये वो वक्त था जब लड़कियों की शिक्षा-दीक्षा पर सामान्य परिवारों में बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जाता था.

काशी से अगर विश्वनाथ को अलग करें तो क्या बचेगा? कुछ नहीं. मंदिर जब क्षतिग्रस्त किया गया तब रानी अहिल्याबाई मानो मां अन्नपूर्णा के आशीर्वाद स्वरूप वहां पहुंचीं और मंदिर का पुनर्निर्माण किया. संपूर्ण संसार के स्वामी महादेव के धाम का निर्माण करके रानी अहिल्याबाई ने महादेव के भक्तों के लिये सबसे बड़ी सौगात दे दी. सनातन संस्कृति की धर्म ध्वजा को थामने वाले काशी के लिए सैंकड़ों वर्षों तक ये निर्माण मील का पत्थर साबित हुआ. आज उसी निर्माण के 250 साल बाद काशी धाम का पुनर्निर्माण हो रहा है. उस समय के इतिहास के पृष्ठों पर नजर डालें तो रानी अहिल्याबाई के योगदान को और अच्छी तरह समझा जा सकता है.

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खास यह है कि सनातन संस्कृति को बचाने के लिये पूरे शास्त्र सम्मत ढंग से भगवान भोलेनाथ की इस मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की गई. काशी कॉरिडोर के निर्माण में पौराणिकता संबंधी कार्यों से जुड़े काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रोफेसर राम नारायण द्विवेदी का कहना है कि आचार्य नारायण भट्ट के निर्देशन में 1777-1780 में बाबा के वर्तमान स्वरूप की प्राण प्रतिष्ठा की गई. मंदिर के अलावा रानी अहिल्याबाई का काशी में योगदान घाटों के निर्माण को लेकर भी है. आज भी रानी अ​हिल्याबाई के नाम से काशी में घाट है. काशी खंड में वर्णित विश्वेश्वर के धाम को पुनर्निर्माण करने में रानी अहिल्याबाई का योगदान अतुलनीय है.

काशी विद्वत परिषद के प्रोफेसर राम नारायण द्विवेदी का कहना है कि काशी कॉरिडोर का निर्माण रानी के पुनर्निर्माण के बाद हो रहा है. इससे बाबा के धाम का भव्यतम और दिव्यतम रूप लोगों के सामने आएगा. धाम में रानी अहिल्याबाई की प्रतिमा के साथ एक मंदिर बनाकर उसकी दीवारों पर विश्वनाथ धाम के लिये उनके योगदान को भी दर्ज किया जायेगा. यह देशवासियों के लिये आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ काशी और आसपास के क्षेत्रों के लिये धार्मिक पर्यटन और व्यापारिक लाभ के लिये भी महत्वपूर्ण होगा. इससे राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा.

शिवभक्त अहिल्याबाई बचपन से ही अत्यंत शांत और संस्कारी थीं. उनका मृदुल और सौम्य व्यवहार उन्हें औरों से अलग करता था. इतिहासकारों के अनुसार मल्हारराव होल्कर, जो कि एक मराठा सेनानायक थे, और उस समय पेशवा बाजीराव की सेना में थे, एक बार जब पुणे जाते हुए छौंड़ी गांव में रुके हुए थे, तो वहां उन्होंने अहिल्याबाई को देखा. तब अहिल्याबाई मात्र 8 वर्ष की थीं, लेकिन “होनहार बिरवान के होत चिकने पात” वाली बात यहाँ चरितार्थ हुई. नन्हीं अहिल्याबाई में मल्हारराव को वे खूबियां भलीभांति नजर आ गयीं, जो एक राज्य की रानी में होनी चाहिए. उनका स्वभाव और चारित्रिक विशेषताओं को देखते हुए मल्हारराव ने अपने पुत्र ‘खांडेराव’ के लिए अहिल्याबाई का हाथ मांग लिया. 1733 में अहिल्याबाई होल्कर, खंडेराव होल्कर की पत्नी, मल्हारराव होल्कर की पुत्रवधू और इंदौर राज्य की रानी बन गयीं.

कौन थीं रानी अहिल्याबाई

अहिल्याबाई होलकर अपने निजी जीवन में धार्मिक प्रवृति की महिला थीं, इसलिए उनके द्वारा धार्मिक क्षेत्र में काफी महत्वपूर्ण कार्य किये गए. अहिल्याबाई की धार्मिक वृत्ति का उदाहरण इस बात से भी मिलता है कि भारत के लगभग सभी महत्वपूर्ण तीर्थ स्थानों पर उनके द्वारा मंदिर और धर्मशालाएं बनवायी गयीं. उनके राज्य इंदौर और राजधानी माहेश्वरी के अधिकतर मंदिर और धर्मशालाएं अहिल्याबाई द्वारा बनवायी गयी हैं. इसके अतिरिक्त नासिक, गंगाघाट, गुजरात के सोमनाथ, बैजनाथ आदि स्थानों पर प्रसिद्ध शिवालयों का निर्माण भी अहिल्या बाई होल्कर ने ही करवाया था. उनके शासन काल में चलने वाले सिक्कों पर भी ‘शिवलिंग और नंदी’ अंकित रहते थे. शिवभक्त अहिल्याबाई बचपन से ही अत्यंत शांत और संस्कारी थीं.

उनका मृदुल और सौम्य व्यवहार उन्हें औरों से अलग करता था. इतिहासकारों के अनुसार मल्हारराव होल्कर, जो कि एक मराठा सेनानायक थे, और उस समय पेशवा बाजीराव की सेना में थे, एक बार जब पुणे जाते हुए छौंड़ी गांव में रुके हुए थे, तो वहां उन्होंने अहिल्याबाई को देखा. तब अहिल्याबाई मात्र 8 वर्ष की थीं, लेकिन “होनहार बिरवान के होत चिकने पात” वाली बात यहाँ चरितार्थ हुई. नन्हीं अहिल्याबाई में मल्हारराव को वे खूबियां भलीभांति नजर आ गयीं, जो एक राज्य की रानी में होनी चाहिए. उनका स्वभाव और चारित्रिक विशेषताओं को देखते हुए मल्हारराव ने अपने पुत्र ‘खांडेराव’ के लिए अहिल्याबाई का हाथ मांग लिया. 1733 में अहिल्याबाई होल्कर, खंडेराव होल्कर की पत्नी, मल्हारराव होल्कर की पुत्रवधू और इंदौर राज्य की रानी बन गयीं.

रानी अहिल्या बाई को उनकी प्रजा ने देवी का दर्जा दिया हुआ था. इन्होंने जीवन पर्यन्त अपनी प्रजा और मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन कर अपने जीवन को आदर्श बनाया. इनकी शासन संचालन की योग्यता और प्रशासनिक गुणों के कारण इन्हें महारानी लक्ष्मी बाई का पूर्वगामी भी कहा गया है.

रानी अहिल्याबाई होलकर (1725-1795) का विवाह आठ वर्ष की उम्र में होलकर साम्राज्य के उत्तराधिकारी खांडेराव होलकर से हुआ. 1754 में कुमहर के युद्ध में खांडेराव मारे गये. इसके बाद धर्मपरायण अहिल्याबाई ने खुद को हिंदू धर्म और अन्य रचनात्मक कार्यों से जोड़ा. 12 साल बाद खांडेराव के पिता और राज्य संभालने वाले मल्हार राव होलकर का भी निधन हो गया. इसके बाद रानी ने राज्य संभालते हुये अपने राज्य को आक्रमणकारियों से बचाने के लिये युद्ध किये.

रानी अहिल्या बाई को उनकी प्रजा ने देवी का दर्जा दिया हुआ था. इन्होंने जीवन पर्यन्त अपनी प्रजा और मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन कर अपने जीवन को आदर्श बनाया. इनकी शासन संचालन की योग्यता और प्रशासनिक गुणों के कारण इन्हें महारानी लक्ष्मी बाई का पूर्वगामी भी कहा गया है. महारानी लक्ष्मीबाई की ही तरह रानी अहिल्या बाई भी ‘रानी’ विवाह के पश्चात कहलाईं. उससे पूर्व वे एक बेहद साधारण परिवार की कन्या थीं. अहिल्याबाई का जन्म महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के छौंड़ी गांव के पाटिल ‘मनकोजी राव’ के घर 31 मई 1725 को हुआ था. राव ने अपनी कन्या को शिक्षा दिलवाई.

महारानी अहिल्याबाई एक बेहतरीन योद्धा थीं. वे एक बेहतरीन तीरंदाज थीं. वे हर तरह से युद्धकौशल में निपुण थीं. वे स्वयं दुश्मनों से सीधी टक्कर ले लेती थीं. घुड़सवारी में तो माहिर थी हीं, साथ ही हाथी पर सवार होकर युद्धभूमि में अपनी सेना को नेतृत्व भी प्रदान करती थीं. उनका व्यक्तित्व, शासन क्षमता और नेतृत्व शक्ति अप्रतिम थी. वे उन भारतीय वीरांगनाओं में सम्मिलित हैं, जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा को अपनी प्राथमिकता बनाया. जीवन में पग-पग पर दुखों को झेलने पर भी अहिल्याबाई ने अपनी प्रजा का पुत्र की भांति पालन किया. उनके इन्हीं गुणों के कारण जनसाधारण में उन्हें देवी का स्थान प्राप्त हुआ. वे ‘लोकमाता’ के नाम से भी जानी गयीं. इस महान विभूति का देहांत 13 अगस्त 1795 को हुआ.

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अहिल्याबाई का मुख्य योगदान देशभर में मंदिरों, घाटों, धर्मशालाओं और धार्मिक स्थलों का निर्माण है. इतिहास में रानी अहिल्याबाई का नाम काशी में विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के लिये दर्ज है. मुगल शासक औरंगजेब के आदेश के बाद 1669 में मंदिर को क्षतिग्रस्त कर दिया गया था. इस आक्रमण के बाद बाबा के मंदिर और गर्भगृह का निर्माण ही नहीं करवाया बल्कि अहिल्याबाई ने शास्त्रसम्मत ढंग से 11 शास्त्रीय आचार्यों से पूजा करवाकर प्राण प्रतिष्ठा भी करवायी. तब से आज तक महादेव के भक्तों में रानी द्वारा निर्मित मंदिर और विश्वनाथ के उसी स्वरूप की मान्यता है.

इसकी भव्यता को आगे बढ़ाते हुये राजा रणजीत सिंह ने 1835 में गर्भगृह के शिखर पर स्वर्ण चढ़ाया. इतिहासकार और काशी के मर्मज्ञ प्रोफेसर राणा पीवी सिंह कहते हैं, स्त्री शक्ति की प्रतीक रानी के उस योगदान की याद किये बिना श्री काशी विश्वनाथ धाम की भव्यता को समझना मुश्किल है. आमतौर पर धर्म के क्षेत्र में पुरुषों का वर्चस्व माना जाता है जबकि इसे निभाती ज्यादातर महिलाएं हैं, पर अहिल्याबाई का श्री विश्वनाथ धाम का निर्माण और काशी के घाटों का जीर्णोद्धार धर्म संस्कृति के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान है.

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