30 नवंबर तक टला साबरमती आश्रम रीडेवलपमेंट के लिये झुग्गियां हटाने का काम
अहमदाबाद नगर निगम के अधिकारी जब अहमदाबाद जिला कलेक्ट्रेट के अधिकारियों को लेकर यहां रह रहे लोगों की झुग्गियां हटाने के लिये पहुंचे तो स्थानीय लोगों के धरना प्रदर्शन के बाद सभी अधिकारियों को मंगलवार को यहां से हटना पड़ा.
अहमदाबाद म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के अधिकारियों के साथ मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारियों समेत जिला कलेक्ट्रेट को अपने कदम पीछे हटाने पड़े, क्योंकि नागरिक समाज संगठन के लोग इन झोपड़ियों में रहने वाले लोगों के साथ उनकी झोपड़ियों के बाहर धरने पर बैठ गये थे.
मीडिया स्वराज डेस्क
गांधी आश्रम परिसर विकास योजना के तहत पास की तकरीबन 55 झुग्गी बस्तियों को हटाकर सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण के काम को फिलहाल कुछ दिनों के लिये आगे टाल दिया गया है. दरअसल, अहमदाबाद नगर निगम (AMC) के अधिकारी जब अहमदाबाद जिला कलेक्ट्रेट के अधिकारियों को लेकर यहां रह रहे लोगों की झुग्गियां हटाने के लिये पहुंचे तो स्थानीय लोगों के धरना प्रदर्शन के बाद सभी अधिकारियों को मंगलवार को यहां से हटना पड़ा.
बता दें कि मंगलवार को AMC अधिकारियों और जिला कलेक्ट्रेट समेत यहां बुलेटप्रूफ जैकेट पहने पुलिस अधिकारी पहुंचे थे. उनके साथ एक एंबुलैंस, पुलिस की जीप और जेसीबी मशीन भी मौजूद थी. लेकिन जैसे ही झोपड़ियां खाली करवाने की कोशिश की गई, वहां रहने वाले लोग, जिसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे, अपनी अपनी झोपड़ियों के बाहर बैठे हुये दिखे. बता दें कि इस दौरान मजदूर अधिकार मंच नामक नागरिक समाज संगठन भी इन झुग्गी वालों की सहायता के लिये यहां मौजूद था.
डिप्टी कलेक्टर जेबी देसाई ने काफी अनुरोध और बातचीत के बाद स्थानीय निवासियों को यह यकीन दिलाया कि उन्हें एक हफ्ते का समय और दिया जायेगा ताकि इस दौरान वे अपना इंतजाम कर सकें. मौजूद अधिकारियों ने कहा कि अब वे 30 नवंबर को सुबह 10 बजे यहां झुग्गियां हटाने के लिये पहुंचेंगे.
बता दें कि 20 नवंबर को यहां रहने वाले झुग्गी बस्ती वालों को मौखिक तौर पर यह जगह खाली करने के लिये कह दिया गया था. इसके लिये AMC या जिला कलेक्टर आफिस से भी लिखित में उन्हें कोई नोटिस नहीं दिया गया था.
मजदूर अधिकार संघ द्वारा किये गये एक सर्वे के मुताबिक इन झुग्गियों में रह रहे कुछ लोग यहां 2010 से पहले से रह रहे हैं. इनमें से ज्यादातर अधिसूचित जनजातियों और विमुक्त जनजातियों से ताल्लुक रखते हैं.
मंच के कार्यकारी समिति सदस्य रमेश श्रीवास्तव ने स्थानीय निवासियों का प्रतिनिधित्व करते हुये विगत 11 नवंबर को इस बाबत अहमदाबाद कलेक्टर, अहमदाबाद म्यूनिसिपल कमिश्नर और डिप्टी म्यूनिसिपल कमिश्नर से मौजूदा सरकारी नीतियों के अनुसार पुनर्वास की मांग की है.
श्रीवास्तव ने कहा, “यहां के कम से कम 80 प्रतिशत निवासी मलिन बस्तियों के पुनर्वास और पुनर्विकास के विनियमन 2010 के तहत पुनर्वास के पात्र हैं. हालांकि नियमत: तो गांधी आश्रम विकास परियोजना के तहत भी उन्हें पुनर्वास का पात्र होना चाहिए, लेकिन कम से कम पहले अधिनियम के तहत तो उन्हें पुनर्वास का अधिकार मिलना ही चाहिए. जबकि इन प्रक्रियाओं का पूर्णत: उल्लंघन करते हुये स्थानीय लोगों को उनके झोपड़ियों से बेदखल किया जा रहा है.”
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डिप्टी म्युनिसिपल कमिश्नर आईके पटेल के अनुसार, चूंकि भूमि नागरिक निकाय के स्वामित्व में न होकर अहमदाबाद कलेक्ट्रेट, जो कि राज्य सरकार के अंतर्गत आता है, के स्वामित्व में है, इसलिए यहां के निवासी नागरिक निकाय की झुग्गी पुनर्वास नीति के पात्र नहीं हैं.
आश्रम संपत्तियों के निवासियों के पुनर्वास के लिए गठित आठ सदस्यीय समन्वय समिति के सदस्य सचिव डिप्टी कलेक्टर जेबी देसाई ने कहा कि जिन्हें बेदखल किया जा रहा है, उन्हें आश्रम के निवासियों के रूप में नहीं गिना जाता है और वे सरकारी बंजर भूमि पर “अतिक्रमणकर्ता” हैं और ऐसे लोगों को जगह खाली करवाने के लिए नोटिस देने की आवश्यकता नहीं होती”.
बता दें कि इस भूमि के भूखंड का उपयोग आश्रम परिसर विकास परियोजना का हिस्सा होगा और इसका इस्तेमाल इस आश्रम के आंतरिक सड़कों में से एक के लिए किया जाएगा. देसाई ने कहा, “आश्रम के निवासी (छह) ट्रस्टों के किरायेदार हैं. ट्रस्ट के केवल किरायेदार ही पुनर्वास के पात्र हैं और ट्रस्ट के साथ एक दस्तावेज समझौता (जैसे कि किराए का समझौता, उनके किरायेदारी के प्रमाण के रूप में) होना चाहिए.”
आश्रम निवासी और एक समन्वय समिति के सदस्य धीमंत बधिया के अनुसार, 121 ‘आश्रमियों’ ने मुआवजे के पैसे स्वीकार किए हैं और 20 अन्य ‘आश्रमियों’ ने एक वैकल्पिक साइट पर पुनर्वास करना स्वीकार किया है.
श्रीवास्तव ने बताया कि एक सप्ताह का समय मिलने के बाद, मजदूर अधिकार मंच ने नगर आयुक्त और आश्रम परिसर विकास परियोजना की कार्यकारी परिषद के साथ-साथ अब जरूरत पड़ने पर गुजरात उच्च न्यायालय का रुख करने की योजना बनाई है.
बता दें कि महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी ने मंगलवार को एक स्टेटमेंट जारी करके कहा था, “यहां रहने वाले गरीब लोगों की सुरक्षा और उनके सिर पर छत रहे, इसका अधिकार साबरमती आश्रम को बचाने से भी कहीं ज्यादा जरूरी है. इनके सिर से छत छीनने के लिये जो कारण बताया जा रहा है कि साबरमती आश्रम का पुनर्विकास किया जायेगा, यह कहीं से भी गांधीवादी विचार का परिचायक नहीं है. बापू ने हमेशा ही एक ऐसे देश की कल्पना की थी, जहां गरीबों के अधिकारों की सुरक्षा की जायेगी, जहां दरिद्रनारायण की मान्यता को सर्वोच्च स्थान प्राप्त होगा, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. आज अगर वे जिंदा होते तो गरीब से भी गरीब और पिछड़े से अतिपिछड़े इन लोगों को अपने नाम पर इस तरह से परेशान करने की पूरी तरह से मुखालफत कर रहे होते.”