यूपी में जनता त्रस्त है और बदलाव चाहती है : राकेश टिकैत

​तीनों कृषि कानूनों के अलावा भी एमएसपी, महंगाई, सीड बिल, बिजली और मंडी की जमीन बेचने जैसे कई अन्य ऐसे मुद्दे हैं, जिस पर सरकार को हम किसानों से बातचीत करनी चाहिए.

किसान नेता राकेश टिकैत को इंतजार है कि संसद में तीनों कृषि कानूनों को वापस लिया जाये. हालांकि इतने भर से भी वे संतुष्ट नहीं दिखाई दे रहे. टिकैत का कहना है कि एमएसपी और अन्य कई मुद्दे भी किसानों के लिये गंभीर हैं इसलिए हम चाहते हैं कि सरकार इन मुद्दों पर हमसे बातचीत करे और इन सभी समस्याओं का हल निकाले.

मीडिया स्वराज डेस्क

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की घोषणा के बाद भी किसान पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं. वे चाहते हैं कि कृषि कानून जबतक संसद में वापस नहीं लिये जाते, तब तक किसान अपना आंदोलन वापस नहीं लेंगे. बता दें कि आज 22 नवंबर को लखनऊ में किसानों की रैली है. इसके लिए किसान नेता राकेश टिकैत भी यहां पहुंचे हुये हैं. इस दौरान बीबीसी के पूर्व वरिष्ठ संवाददाता राम दत्त त्रिपाठी ने किसान नेता राकेश टिकैत से बातचीत की, पेश हैं उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश…

क्या आपको लगता है कि तीनों कृषि कानूनों को बनाने के लिये यदि संसद में लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाई जाती तो यह नौबत ही नहीं आती?

जी बिल्कुल. इसके लिए पहले पब्लिक ओपिनियन चाहिए थी. कोई भी कानून बनाने से पहले आम जनता की उस पर प्रतिक्रिया मांगी जाती है. लेकिन कृषि कानूनों के मामले में ऐसा नहीं किया गया. जिस तरह संसद में उसे सीधे पारित कर दिया गया, अब हम देखना चाहते हैं कि क्या उसी तरह एकदम से उसे खारिज भी किया जाता है नहीं? जिन कृषि कानूनों को आज सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों ही खत्म करना चाहते हैं, अब हम 30 तारीख को संसद में देखना चाहते हैं कि क्या वह ध्वनि मत से एक ही बार में खत्म किया जाता है या कुछ लोग इस कानून को अब भी खत्म नहीं करने के पक्ष में अपना मत दे रहे हैं. इस पर हमारी नजर रहेगी.

प्रधानमंत्री जी ने गुरु पर्व के दिन जब किसानों से कहा कि ​तीनों कृषि कानून वापस लिये जायेंगे और आप सभी किसान आज गुरु पर्व अपने अपने घरों पर जाकर मनायें, फिर आप सभी घर क्यों नहीं गये? ​क्या आपसभी को उनकी बात पर भरोसा नहीं रह गया है?

ऐसा नहीं है. जब प्रधानमंत्री जी किसानों से घर जाने को कह रहे थे तो ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो हम किसानों को पीएम मोदी यह आदेश दे रहे हैं कि हम अपने अपने घर लौट जायें. तो ऐसे ही तो हम घर नहीं जायेंगे. पिछले एक साल से हम सभी किसान यहां बैठे हुये हैं, आज आपके कहने मात्र से हम यहां से नहीं जाने वाले. हम पूरा हिसाब किताब लेकर ही यहां से वापस लौटेंगे. इस आंदोलन के दौरान हम किसानों का जो हर्जाना हुआ, उसकी भुगतायी कौन करेगा? जो 750 किसानों की शहादत हुई, उसकी पैनल्टी कौन लेगा? जो मुकदमे गलत किये गये, इन कानूनों की वापसी के दौरान, उनका हर्जाना कौन भरेगा. बहुत से सवाल हैं. एमएसपी का सवाल है. महंगाई बहुत बढ़ रही है, उसका सवाल है. जनता को, किसानों को, आदिवासियों को, मजदूरों को, गांव को, गरीब को, छात्रों को क्या मिला? आपने धड़ाधड़ गांव समाज की जमीन बेचनी शुरू कर दी. मंडी की जमीन आप बेच रहे हो, आप दूध की, बिजली की पॉलिसी लेकर आना चाहते हो, इस पर बातचीत कौन करेगा? हाउस में सीड बिल रखा हुआ है, इस पर बातचीत कौन करेगा? समस्या समाधान की ओर जब सरकार चली है तो उसे लेकर टेबल पर लाकर उस पर बातचीत करे सरकार, यह हमारा कहना है.

राजस्थान के गर्वनर कलराज मिश्रा और कई और बीजेपी के नेतागण हैं, कई लोगों ने यह कहा कि अभी हमने यह कानून वापस ले लिया है, लेकिन समय आने पर हम फिर से इस पर कानून बनायेंगे.

तो जनता इसका जवाब दे देगी. ये किसान आंदोलन में बैठी हुई जनता किराये पर बुलाई गई नहीं है. ये घर वापस जायेगी तो फिर देखी जायेगी.

आपको ऐसा नहीं लगता ​जैसा कि कई लोगों को लगता है कि पंजाब, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के चुनाव के कारण ही तीनों कृषि कानूनों को फिलहाल वापस लिया गया है. क्योंकि मोदी जी को लगता है कि अगर यूपी हारे तो दिल्ली गई हाथ से. इसलिए फिलहाल उन्होंने इसे वापस ले लिया है वरना दिल से तो अभी भी वे जिन लोगों के दबाव में ये कृषि कानून लेकर आये थे, अब भी उनके ही कहने पर इसे वापस ले रहे हैं लेकिन फिर से इसे लाने के लिए भी कह रहे हैं.

हम इस मामले में नहीं पड़ना चाहते कि तीनों कानूनों को किस कंडीशन में उन्होंने वापस लिया क्योंकि यह एक पॉलिटिकल इशु है. हमारे लिये तो किसान आंदोलन के कारण उन्होंने ये कानून वापस लिये हैं, अब आगे जो इशु हैं, सरकार उस पर बातचीत करे, हम तो बस यही चाहते हैं, और कुछ भी नहीं. हम चाहते हैं कि सरकार टेबल पर बैठकर इस समस्या का समाधान निकाले क्योंकि बातचीत से ही हमेशा हर समस्या का समाधान निकलता है.

बस एक क्लिक और किसान नेता राकेश टिकैत के साथ मीडिया स्वराज की एक्सक्लूसिव बातचीत पूरी सुनिये इस​ वीडियो में…

आपने जितने मुद्दे गिनाये, समस्यायें गिनाईं, भूमि अधिग्रहण हो, डेयरी हो, मंडी, बिजली या महंगाई वगैरह… कहीं न कहीं ये सभी सरकार की नीतियों को किसान विरोधी साबित कर रही हैं. इसी बहाने आपको नहीं लगा कि देश की आजादी के बाद पहली बार इतनी बड़ी किसान एकता जागृत हुई है, इतना बड़ा किसानों का आंदोलन, जो सालभर चला और देशभर में चला. तो आपको नहीं लगता कि यूपी और दिल्ली में एक ऐसी सरकार हो, जो किसानों की हितैषी हो, जिसके रहते हुये किसानों को बार-बार लड़ना-झगड़ना न पड़े?

इसमें तो 20-30 साल अभी और लगेंगे. सड़क का पार्ट ही ठीक है. दूसरी संसद वाली जो है, उसमें खर्च ज्यादा है. अगर सड़क मजबूत रहेगी, सड़क से जनता की आवाज ठीक ठाक निकलती रहेगी तो संसद या विधानसभा में बैठे किसी भी सरकार, नेता या मंत्री को उसकी आवाज ठीक ठाक सुनाई देती रहेगी. लेकिन अगर आप चुनाव में जाओगे, आपकी सरकार आयेगी या नहीं आयेगी, आप संसद में जाओगे या नहीं जाओगे, फिर आप कानून बनाओगे या नहीं, तो यह सब तो 20 30 साल का प्रोसेस है. तो उसमें हम नहीं जाना चाहते. देश में आंदोलन और आंदोलनकारी मजबूत रहने चाहिए. तब सरकार किसी भी पार्टी की क्यों न हो, वो उसकी बात सुनेगा.

अच्छा यूपी में चुनाव की डुगडुगी जो बज चुकी है तो सब लोग घूम रहे हैं. मोदी जी भी घूम रहे हैं, योगी जी भी घूम रहे हैं, और अखिलेश यादव जी भी घूम रहे हैं और आपका रिश्तानाता, बोलचाल, उठनाबैठना, हर रोज गांव के गरीब और आम लोगों से होता है. क्या आपको लगता है कि लोग सरकार से खुश हैं इस समय यूपी में?

सरकार से खुश तो नहीं हैं. बड़ी उसको मार झेलनी पड़ रही है, वो महंगाई की हो, एजुकेशन की हो, हेल्थ की हो. इन सब चीजों पर जनता त्रस्त है पूरी. बदलाव चाहता है.

बहुत बहुत धन्यवाद आपका.

Leave a Reply

Your email address will not be published.

3 × three =

Related Articles

Back to top button