पद्मश्री से सम्मानित हुए धरती के योद्धा हरेकाला हजब्बा

संतरे बेचकर रोजाना 150 रुपये कमाने वाले हरेकाला हजब्बा ने एक प्राइमरी स्कूल खड़ा करवा दिया।

कुछ लोग हमारे आपके बीच से ही होते हैं। ऐसे लोग, जिन्हें हम आते जाते हर रोज देखते हैं, उनसे बातें करते हैं, पर शायद उनकी खासियत को पहचान नहीं पाते। वे भीड़ में भी अकेले होते हैं। ऐसे ही महान व्यक्तित्व के मालिक हैं मंगलोर के 68 वर्षीय फल विक्रेता हरेकाला हजब्बा, जिन्होंने महज संतरे बेचकर रोजाना की 150 रुपये की कमाई में से कुछ बचाकर अपने गांव में बच्चों के लिए स्कूल खोला और सभी को शिक्षा का महत्व समझाया। आज वही महान शख्सियत सफेद कपड़ों में जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास जाकर पद्मश्री सम्मान को अपने हाथों में लिया तो मानो उनके तेज में रौशनी की किरण और भी तेज हो गई। आइए, जानते हैं हरेकाला हजब्बा को और भी करीब से…

शुक्लवाणी

मंगलोर के 68 वर्षीय फल विक्रेता हरेकाला हजब्बा को पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में जो योगदान दिया है, उसे जानकर आप दंग रह जाएंगे। संतरे बेचकर रोजाना 150 रुपये कमाने वाले हरेकाला हजब्बा ने एक प्राइमरी स्कूल खड़ा करवा दिया। राष्ट्रपति से पुरस्कार लेने के लिए वे सादी सफेद शर्ट और धोती पहनकर पहुंचे, तो हर कोई उनकी सादगी का कायल हो गया।

हरेकाला के गांव न्यूपडपू में कई साल तक कोई स्कूल नहीं था। गांव का कोई बच्चा शिक्षा ग्रहण नहीं कर पा रहा था। हरेकाला ने कहा कि एक बार एक विदेशी ने मुझसे अंग्रेजी में फल का दाम पूछा, मुझे अंग्रेजी नहीं आती थी इसलिए मैं उसे रेट नहीं बता सका. उस वक्त पहली बार मैंने खुद को असहाय महसूस किया.

वो कहते हैं कि इसी के बाद मैंने तय किया कि मैं अपने गांव में स्कूल खोलूंगा ताकि यहां के बच्चों को इस स्थ‍िति का सामना न करना पड़े. हजब्बा ने इसके लिए अपनी जमापूंजी लगा दी.

संतरे बेचकर रोजाना 150 रुपये कमाने वाले हरेकाला हजब्बा ने एक प्राइमरी स्कूल खड़ा करवा दिया। राष्ट्रपति से पुरस्कार लेने के लिए वे सादी सफेद शर्ट और धोती पहनकर पहुंचे, तो हर कोई उनकी सादगी का कायल हो गया।

ऐसे में हरेकाला ने साल 2000 में अपनी जिंदगीभर की कमाई लगाकर एक एकड़ जमीन पर बच्चों के लिए एक स्कूल बनाया। उन्होंने कहा था कि मैं कभी स्कूल नहीं गया, इसलिए चाहता था कि गांव के बच्चों की जिंदगी मेरे जैसी न बीते। आज इस स्कूल में कक्षा दसवीं तक 175 बच्चे पढ़ते हैं।

कहानी

हरेकाला हजब्बा का जन्म कर्नाटक के न्यू पापडू के गरीब ग्रामीण इलाके में हुआ था. हरेकाला हजब्बा का जन्म एक बेहद निर्धन परिवार में हुआ था. मात्र 6 साल की उम्र में ही हरेकाला हजब्बा अपने परिवार की मदद करने के लिए अपनी मां के साथ बीड़ी बनाने का काम करने लगे थे.

एक बेहद गरीब परिवार में जन्म होने के कारण हरेकाला हजब्बा कभी स्कूल नहीं जा पाए. शिक्षा की कमी के कारण उन्हें जीवन में कई परेशानियों का सामना करना पड़ा. इसलिए वह निरक्षर होते हुए भी शिक्षा के महत्व को अच्छे से समझते थे. बड़े होने के बाद हरेकाला हजब्बा ने संतरे बेचना शुरू कर दिया. इससे वह रोजाना लगभग 150 रूपए की कमाई करते थे. संतरे बेचकर हरेकाला हजब्बा जैसे-तैसे अपने परिवार का जीवन यापन कर रहे थे.

एक बार एक विदेशी जोड़ा हरेकाला हजब्बा के पास संतरे लेने के लिए आया. उस जोड़े ने हरेकाला हजब्बा से फलों का दाम पूछा. लेकिन अंग्रेजी ना आने के कारण हरेकाला हजब्बा उन्हें संतरे का दाम नहीं समझा पाया. हरेकाला हजब्बा के अनुसार उस समय उन्होंने खुद को असहाय महसूस किया और प्रण लिया कि वह अपने गाँव के बच्चों की शिक्षा के लिए कुछ करेंगे ताकि आगे किसी बच्चे को ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़े.

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