कुछ रंग बिरंगे कागज़ थे.
नोटबंदी को पांच साल हुए पूरे
कमरतोड़ दिहाड़ी करके आज शाम
ज़ेब में मेरे कुछ रंग बिरंगे कागज़ थे.
कल तक अनमोल थे पर अब वो सब बग़ैर किसी मोल के थे,
जेब में मेरे कुछ रंग बिरंगे कागज़ थे.
अब मेहनत कर चूल्हा जलाऊं या मेहनत से मिले इन नोटों को चलाऊं,
बन चुके बोझ अब जेब में मेरे कुछ रंग बिरंगे कागज़ थे.
भूखे प्यासे खूब लगा उन बैंकों की लाइनों में,
क्या करूँ पाई-पाई कर जोड़े हुए जेब में मेरे कुछ रंग बिरंगे कागज़ थे.
कहां जुटा पाता मुझ जैसा निर्धन कालाधन,
बड़ी मुश्किलों से जुटा जेब में मेरे कुछ रंग बिरंगे कागज़ थे.
बेटी के ब्याह की आस लगाए, स्थिर पड़ी थी अब उसकी मां क्योंकि जेब में उसके कुछ रंग बिरेंगे कागज़ थे.
परिणाम पूछता मैं उनसे पर चुप हूं क्योंकि आज भी जेब में मेरे कुछ रंग बिरंगे कागज़ थे.
–हिमांशु आम नागरिक.
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