विरासत स्वराज यात्रा 2021-22

विरासत स्वराज यात्रा 29 अक्टूबर से 2 नबम्वर 2021 तक

रत्नागिरी की पाठशाला में जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने समुद्र और नदी पट्टी, के रिश्तों को समझाते हुए कहा कि, नदी की सात अवस्थाएँ होती हैं। नदी का जन्म, बाल्यकाल, किशोर, तरुण, युवा, प्रौढ़ और वृद्ध अवस्था, इस प्रकार विभिन्न तरह से नदी को देखा जाता है।

मीडिया स्वराज डेस्क

विरासत स्वराज यात्रा 29 अक्टूबर से 2 नबम्वर 2021 तक गुजरात-राजस्थान के बॉर्डर पर रूकी हुई है। इस दौरान महाराष्ट्र का एक छोटा-सा जिला रत्नागिरी, जिसमें तीन भारत रत्न और 6 ऐसी बड़ी विभूतियों को जन्म दिया है, जिन्होंने देश में अद्भुत काम किए हैं, जिनके नाम लेकर ही गौरव से मन-मस्तिक ऊपर उठ जाता है, ऐसे विभूतियों को जन्म देने वाले रत्नागिरी में 4 दिन की नदी पाठशाला का आयोजन किया गया. यह आयोजन तरुण भारत संघ ऑफिस ने किया.

इस नदी पाठशाला में महाराष्ट्र भर के नदी प्रेमी और विशेषज्ञों ने भाग लिया, इन्होंने अपने प्रयास से स्वयं आकर प्रशिक्षण प्राप्त किया। प्रशिक्षण के दौरान पूरी नदी की परिक्रमा-यात्रा करके, नदी के अंग-प्रत्यंगों को जाना। नदी की संगति, विचार, विवेचना, विमर्श और नदी के लिए परिभाषा का निष्कर्ष इन सब स्थितियों पर नदी पाठशाला के पहले चरण में शिक्षण-प्रशिक्षण और नदी को जानने-समझने का दौर चला।

रत्नागिरी की पाठशाला में जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने समुद्र और नदी पट्टी, के रिश्तों को समझाते हुए कहा कि, नदी की सात अवस्थाएँ होती हैं। नदी का जन्म, बाल्यकाल, किशोर, तरुण, युवा, प्रौढ़ और वृद्ध अवस्था, इस प्रकार विभिन्न तरह से नदी को देखा जाता है।

रत्नागिरी की पाठशाला में जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने समुद्र और नदी पट्टी, के रिश्तों को समझाते हुए कहा कि, नदी की सात अवस्थाएँ होती हैं। नदी का जन्म, बाल्यकाल, किशोर, तरुण, युवा, प्रौढ़ और वृद्ध अवस्था, इस प्रकार विभिन्न तरह से नदी को देखा जाता है।

कभी-कभी हम नदी की जवानी को समुद्र के साथ विवाह के रूप में देखते हैं, कभी-कभी नदी को समुद्र में विलीन होने की तरह देखते हैं। नदी अपने जीवन को जब पर्वतों-पहाड़ों से आरंभ करके, समुद्र में विलीन होने के काल तक नदी के विभिन्न अंग-प्रत्यंग होते हैं।

नदी धरती की कोख या हिमगिरों से जन्मती है। धरती के स्तन पहाड़ और धरती को गर्भ (अधो-भूजल) कहते हैं। उससे निकलकर जब वह धरती के ऊपर आती है, तब हम उसका जन्मस्थल उद्गम मान लेते हैं।

नदी धरती की कोख या हिमगिरों से जन्मती है। धरती के स्तन पहाड़ और धरती को गर्भ (अधो-भूजल) कहते हैं। उससे निकलकर जब वह धरती के ऊपर आती है, तब हम उसका जन्मस्थल उद्गम मान लेते हैं।

नदी जब धरती पर खेलते हुए आगे बढ़ती है, तो नदी का बचपना होता है। जब नदी छोटे-छोटे पत्थरों में उछल कूद कर चलती है, तो उसकी किशोर अवस्था होती है। जब नदी कम उछल-कूद करती है, तरुणाई होती है, तब उसमें उछल-कूद के साथ-साथ गंभीरता आती है। जब नदी अपने स्वरूप में बहने लगती है, तब उसका यौवन होता है। कभी-कभी नदी यौवन में ही समुद्र से मिलन हो जाता है, तब हम ऐसी परिस्थिति में नदी और समुद्र के संगम को विवाह बोलते हैं। लेकिन कहीं-कहीं कुछ नदियाँ समुद्र में जाने तक बहुत वृद्ध हो जाती हैं और समुद्र का पानी, नदी में उल्टा प्रवाह(खाड़ी) बनकर मिलता है, वहां नदी का जो रूप है, वह एक तरह से नदी का समुद्र में विलीन होना माना जाता है। नदी जब अपने जीवन को समुद्र में और समुद्र के जीवन को अपने जीवन में घोल लेती है, तब हम कहते हैं कि, हमारी नदी समुद्र में विलीन हो गई।

आगे राजेन्द्र सिंह ने कि, इस प्रकार नदियों में विविध रूप होते हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि, नदी युवावस्था में समुद्र के साथ ही विवाह करती हो! कहीं वह समुद्र से विवाह करती है, तो कहीं अपने आप को खो देती या विलीन कर देती है। हम जिस नदी की यात्रा कर रहे थे, वह काजली नदी है। यह सेहाद्री पहाड़(पश्चिमी घाट) से निकलकर, नदी पट्टी में जाकर, समुद्र में मिलती है, तो वह नदी एक तरह से युवावस्था में ही ऊपर के ढ़ाल में जाकर मिली, तो उसे नदी और समुद्र का विवाह स्थान कहते है। वो युवावस्था में ही समुद्र में मिल गई, लेकिन बहुत सारी ऐसी नदियाँ होती हैं, जो समुद्र के साथ विवाह नहीं करती, वह समुद्र के में विलीन हो जाती हैं जैसे- गंगा, ब्रह्मपुत्र। यह बड़ी नदियाँ समुद्र में विलीन होने वाली नदियां हैं, लेकिन जो ऊपर से पहाड़ी से तेजी से आकर नदी के वेग के साथ मिलती है, उनके जल प्रवाह में उतनी ही जवानी होती है, जितनी जब वो समुद्र में मिलती है। यह समुद्र के साथ विवाह माना जाता है, वह नदी पट्टी में ही समुद्र के साथ मिल जाती हैं।

इस पाठशाला में नदी को जानना, समझना, नदी को पुनर्जीवित करना, नदी को बाढ़-सुखाड़ से बचाना, इन सभी विषयों पर बड़े विस्तार से व्यवहारिक रूप में शिक्षण-प्रशिक्षण का काम हुआ। इस नदी की पाठशाला में इन्होंने अद्भुत काम किया है।

इस पाठशाला में नदी को जानना, समझना, नदी को पुनर्जीवित करना, नदी को बाढ़-सुखाड़ से बचाना, इन सभी विषयों पर बड़े विस्तार से व्यवहारिक रूप में शिक्षण-प्रशिक्षण का काम हुआ। इस नदी की पाठशाला में इन्होंने अद्भुत काम किया है। नदी को एक तरह से हमें यह मानने की जरूरत है कि, यह हमारे जीवन, जीविका और जमीर है। यदि हम नदी को अपना जीवन, जीविका, जमीर के तौर पर नहीं देखेंगे, तो नदी अपनी सांस्कृति व सभ्यता के अनुरूप नहीं जियेगी। नदी का व्यवहार हमारे जीवन जैसा ही व्यवहार होता है। हम नदियों को अपने जीवन के साथ जोड़कर-व्यवहार के साथ जोड़कर देखते है, नदी इस दुनिया में इंसान के लिए सबसे बड़ी विरासत है।

नदी और इंसान दोनों एक दूसरे के पूरक है। एक दूसरे के साथ जुड़े हैं, दोनों के स्वास्थ्य का रिश्ता भी एक-दूसरे के साथ गहरा है। जिस इलाके की नदियाँ स्वस्थ होती हैं, तो उस इलाके के लोग स्वस्थ होते हैं। जिस इलाके की नदियां अविरल-निर्मल और किनारों की स्वच्छता के साथ प्रवाहित होती हैं, तो वह इलाका शुद्ध-सदानीरा होकर बहता रहता है। वहां का समाज भी वैसा ही समृद्ध होता है जैसे कोंकण की नदियाँ आज उतनी ही प्रदूषित नहीं है। हाँ उनमें बाढ़-सुखाड़ की समस्या ज्यादा है, लेकिन प्रदूषण इतना भयानक नहीं है क्योंकि बहुत सारी नदियाँ है जो अभी कैमिकल प्रदूषण से मुक्त है जैसे-काजली नदी उसमें भी उसमें भी गांव का शहरों का दूषित पानी आता है लेकिन कैमिकल प्रदूषित नहीं है। इसलिए हमें समझना जानना जरूरी है कि, इस विरासत को हम नदी को जीवन ,जीविका, जमीर और भारत के लोग नदियों को नीर, नारी नदी और नारायण मानकर सम्मान करते थे, क्योंकि वह जानते थे कि, नदियां हमारे जीवन की सबसे बड़ी विरासत है, इसलिए विरासत यात्रा में यह नदी पाठशाला बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है।

यह भी पढें:

काशी में गंगा के अस्तित्व पर ख़तरा

नोट- विरासत स्वराज यात्रा आदरणीय स्व. सुब्बाराव जी के देवअवसान के कारण गुजरात-राजस्थान के बॉर्डर पर ही रुकी हुई है। इस यात्रा को 5 नबम्वर 2021 को राजघाट, दिल्ली पहुँचना था, लेकिन पूर्वत कार्यक्रम के अनुसार अब यह यात्रा राजघाट नहीं पहुँच पायेगी। इसे दोबारा से शुरू करेंगे, लेकिन इससे पहले तमिलनाडु में यह यात्रा सम्पूर्ण होगी। यह यात्रा, तमिलनाडू में 6 नबम्वर से सभी नदियों की यात्रा करेगी। इस यात्रा में आधुनिक शिक्षा ने नदी और विरासत के साथ जो मूल रिश्ते तोड़ दिए है, उनको समझने और ठीक करने के प्रयास के लिए यह यात्रा है। इस प्रयास में नदियों को जानने, समझने और नदियों पुनर्जीवन देने वाले सभी लोग जुटें है। इसलिए यह बहुत दुख और क्षमा के साथ सूचित कर रहे है कि, 5 नंबम्वर को विरासत स्वराज यात्रा का राजघाट दिल्ली का कार्यक्रम स्थागित हो गया है। इस कार्यक्रम की अगली तारीखें यात्रा के अनुरुप आपको सूचित करेंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published.

four × one =

Related Articles

Back to top button