स्वयं और अहम्
बड़े भाग मानुष तन पावा
स्वयं और अहम्, आज जीवन के हर क्षेत्र में प्रभावी होता जा रहा है. बहुत मुश्किल होता जा रहा है इन्हें समझना और इनमें अंतर स्थापित कर पाना.
डॉ चन्द्रविजय चतुर्वेदी
चौरासी लाख योनियों की भोग यात्रा करते हुए यह मानव तन ज्ञान योनि के रूप में, पञ्च महाभूतों से निर्मित, रहस्यमय विज्ञान को समेटे परमेश्वर के मंदिर के रूप में जो मिला है, वही स्वयं है, खुद है. यह ओउम भूर्भुवः स्वः है.शास्त्र और सिद्ध पुरुष कहते हैं कि यह खुद जो स्वयं है, परमात्मा का मंदिर शरीर है. शरीर का विमर्श करो. इसका पूर्ण बोध पाओ. त्रिगुणों- सत-तम-रज को सत-चित-आनंद के साथ समन्वित करके. यह स्वयं कोई आइसोलेटेड सिस्टम नहीं है. यह एक पूरे परि-आवरण के साथ जुड़ा हुआ है.
श्रुति उपदेश देता है. समानं मनः सह चित मशाय. स्वयं स्वयं के मन समान हों. स्वयं स्वयं चेतना के साथ जुड़े रहें. स्वयं को मन का गुलाम मत बनाओ. यह मन ही है, जो मन को जहाँ तहाँ भरमाता रहता है, प्रपंच में डाले रहता है.
भोगी किसी न किसी इन्द्रिय का दास बनकर उसका वाहन बनकर भोग भोगते अंत में स्वयं से घृणा करते हुए दुखी हो जाता है. त्यागी स्वयं को स्वयं का शत्रु बनकर उसे सताता है. निकम्मा बनाकर मोक्ष की कामना करता है. इस शरीर को सद्वृत्तियों से पाल-पोस कर स्वस्थ-प्रसन्न रख इसी से तो मोक्ष की यात्रा करनी है. स्वयं की यात्रा तो हम से सोऽहं तक की होती है.
कोहम का अहम् क्या है. अहम् ब्रह्मास्मि. यात्रा चल पड़ी जिसका लक्ष्य है सोऽहं. मैं वही हूँ. लक्ष्य पर पहुँच कर स्वयं पहचान लेता है कि मेरे अन्तः की आत्मा ही ब्रह्म है, जो सोऽहं तक पहुँच कर परम ब्रह्म से एकाकार हो, परम शक्ति-ऊर्जा में विलीन हो मोक्ष प्राप्त कर लेता है.
यह यात्रा आसान नहीं है. स्वयं की यह यात्रा मन के साथ होती है. मन ही संकल्पविकल्पात्मक होता है. स्वयं यदि स्फूर्तिवान है तो मन को अपने वश में कर स्वयं गतिमान होता है. स्वयं यदि निकम्मा है तो वह मन की सवारी करता है. यह मन है, जो कोहम से सोऽहं की यात्रा को पलट देता है.
अहम् ब्रह्मास्मि को ब्रह्मास्मि अहम कर देता है. स्वयं अहम् ग्रस्त हो जाता है. यह मैं हूँ जो सृष्टा है कर्ता है. यह अहम् अहंकार बनकर यह भूल जाता है कि सृष्टा और कर्ता तो मेरे अन्तः का ब्रह्म है ,वह चेतना है प्राण है. बिजली चली गई, टीवी बंद हो गई. टीवी बिजली की शक्ति से रिमोट से चल रही है.