कृषि कानूनों और लखीमपुर खीरी हिंसा पर किसान संगठनों के तेवर सख्त

ट्रस्ट की जमीन गरीबों में बांटने की मांग

लखीमपुर खीरी हिंसा के बाद किसान संगठन अपने आंदोलन को लेकर और भी गंभीर होते दिख रहे हैं. उन्होंने न केवल केंद्रीय गृह राज्य मंत्री का इस्तीफा मांगा बल्कि तीनों कृषि कानूनों और एमएसपी पर कानून बनाने को लेकर नई दिल्ली में एक बैठक भी की.

नई दिल्ली: तीनों काले कृषि कानूनों की वापसी और एमएसपी पर कानून बनाने के लिए जारी किसान आंदोलन को विस्तार देने व उसे प्रभावशाली बनाने के लिए मंगलवार को दिल्ली के कान्स्टिट्यूशन क्लब में मजदूर किसान मंच की ओर से ग्रामीण गरीबों के सवालों पर सम्मेलन किया गया.

सम्मेलन में कर्नाटक, बिहार, मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व दिल्ली से ग्रामीण गरीबों के संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. सम्मेलन की शुरुआत लखीमपुर खीरी में किसानों पर हुए बर्बर हमले, जिसमें कई किसानों की जान गई और कई बुरी तरह घायल हैं, पर लिए राजनीतिक प्रस्ताव से हुई.

मृत किसानों के प्रति शोक संवेदना व्यक्त करते हुए दो मिनट का मौन रखा गया और सरकार से किसानों की हत्या करने वाले केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के पुत्र की तत्काल गिरफ्तारी और मंत्री को पद से हटाने की मांग की गई.

सम्मेलन में ग्रामीण गरीबों के जीवन यापन, सशक्तिकरण और राजनीतिक अधिकारों पर तीन सत्र आयोजित किए गए. इसके अलावा भावी कार्यक्रम के लिए एक बैठक भी आयोजित हुई. जीवन यापन के लिए आयोजित सत्र में भूमि के वितरण की मांग लम्बित रहने और आवास, दोनों के सम्बंध में बात हुई.

सम्मेलन में कहा गया कि दलितों का 73 प्रतिशत हिस्सा और आदिवासियों का 79 प्रतिशत हिस्सा भूमिहीन है. भूमि पर अधिकार न होने से इन तबकों को सम्मान भी नहीं मिलता. सम्मेलन में इनके लिए कृषि व आवास के लिए जमीन देने की मांग उठी. साथ ही यह भी मांग की गई कि ग्राम पंचायत की ऊसर, परती, मठ व ट्रस्ट की जमीन भूमिहीन गरीबों में वितरित की जाए.

वनाधिकार कानून के लागू न होने पर सम्मेलन में गहरा आक्रोश व्यक्त करते हुए इसके तहत आदिवासियों वनवासियों को जमीन देने की बात उठी. सम्मेलन में कहा गया कि अपनी आजीविका के लिए अपनी पुश्तैनी जंगल की जमीन पर बसे या खेती कर रहे आदिवासी वनवासी को जहां आए दिन उत्पीड़न झेलना पड़ता है, वहीं सिर्फ पांच साल में 1 लाख 75 हजार एकड़ जंगल कारपोरेट घरानों को दे दिया गया है.

सम्मेलन में दलित आदिवासी अंचल में खराब शिक्षा व्यवस्था पर हुई चर्चा में देखा गया कि आम तौर पर आदिवासी क्षेत्रों में बच्चों, विशेषकर लडकियों के लिए विद्यालयों की कमी है. अब मध्य प्रदेश सरकार समेत तमाम राज्य सरकारें सरकारी स्कूलों को बंद करने में लगी हुई है, जिससे दलित, आदिवासी, अति पिछड़े गरीब बच्चे शिक्षा से वंचित हो जायेंगे.

सम्मेलन ने ग्रामीण गरीब परिवारों विशेषकर दलित, आदिवासी और अति पिछड़े के बच्चों के लिए आवश्यक कदम उठाने और दलित, आदिवासी, अति पिछड़े लडकियों के लिए उच्च शिक्षा तक भोजन, आवास और अन्य खर्चों की व्यवस्था करने की मांग की.

सम्मेलन में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की बुरी हालत पर गहरी चिंता व्यक्त की गई. इस पर हुई चर्चा में कहा गया कि कोरोना महामारी में इसके कारण बड़ी संख्या में लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी इसलिए चिकित्सा सुविधाओं में सुधार और ‘आरोग्य सेना’ के गठन की मांग सम्मेलन में उठी.

सम्मेलन में मनरेगा के खराब क्रियान्वयन पर चर्चा हुई जिसमें पाया गया कि मनरेगा आम तौर पर ठप है. जहां काम मिल रहा है वहां मजदूरी लम्बित है. इस वजह से गांव से लोगों का बड़ी संख्या में पलायन हो रहा है. आदिवासियों और दलितों के विकास के लिए विशेष बजट आवंटित करने और वित्त विकास निगमों को सुदृढ़ करने की मांग उठाई गई.

राजनीतिक अधिकार के सत्र में उन आदिवासी जातियों, जिन्हें आदिवासी का दर्जा नहीं मिला है, जैसे उत्तर प्रदेश की कोल, उन्हें आदिवासी का दर्जा देने की बात मजबूती से उठी. आनंद तेलतुम्बड़े, गौतम नवलखा, सुधा भरद्वाज समेत फर्जी मुकदमों में जेलों में बंद राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्त्ताओं की रिहाई और यूएपीए, एनएसए, देशद्रोह, यूपीकोका जैसे काले कानूनों के खात्मे की मांग सम्मेलन में की गई.

सम्मेलन में उपरोक्त मुद्दों पर बातचीत आगे बढ़ाने, अन्य संगठन, जो अभी नहीं आ पाए हैं, उनसे बातचीत करने और तालमेल कायम करने के लिए पांच सदस्यीय समिति का गठन भी किया गया. सम्मेलन का संचालन पूर्व सांसद अशोक तंवर, पूर्व आईजी एस. आर दारापुरी, कर्नाटक के श्रीधर नूर, मध्य प्रदेश की माधुरी के अध्यक्ष मण्डल ने किया.

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