शारदीय नवरात्रि: आज ही कर लें माता की पूजा-अर्चना की तैयारी
शारदीय नवरात्रि 2021
पितृपक्ष यानी श्राद्ध के बाद हर किसी को बेसब्री से इंतजार रहता है शारदीय नवरात्रि का, जब लगातार नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूर्जा अर्चना और उपासना की जा सके. माना जाता है कि ऐसा करने से मां के भक्तों को विशेष फल की प्राप्ति होती है.
नवरात्रि में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है. 7 अक्टूबर से शुरू हो रहा नवरात्रि का पर्व 14 अक्टूबर को संपन्न होगा. 15 अक्टूबर को विजयादशमी (दशहरा) का त्योहार मनाया जाएगा. इस साल तृतीया और चतुर्थी तिथि एक साथ पड़ने के कारण शारदीय नवरात्रि आठ दिन के पड़ रहे हैं.
पालकी पर आएंगी मां
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस साल मां दुर्गा की सवारी पालकी या डोली से आएगी और हाथी पर सवार होकर मां यहां से प्रस्थान करेंगी. नवरात्रि घट स्थापना का मुहूर्त 7 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 17 मिनट से 7 बजकर 7 मिनट तक और अभिजीत मुहूर्त 11 बजकर 51 मिनट से दोपहर 12 बजकर 38 मिनट के बीच है.
कलश स्थापना मुहूर्त
ज्योतिषाचार्य पीके युग की मानें तो 7 अक्टूबर को चित्रा वैधृति योग का निषेध होने से कलश स्थापना अभिजीत मुहूर्त में विशेष फलदायी होगा. इस मुहूर्त में जो श्रद्धालु माता का आह्वान नहीं कर पाए, वे दोपहर 12 बजकर 14 मिनट से दोपहर 1 बजकर 42 मिनट तक लाभ का चौघड़िया में और 1 बजकर 42 मिनट से शाम 3 बजकर 9 मिनट तक अमृत के चौघड़िया में कलश-पूजन कर सकते हैं.
फल सिद्धि के लिए पाठ
पीके युग कहते हैं कि शास्त्रों में फल सिद्धि के लिए एक पाठ, उपद्रवशांति के लिए तीन पाठ, सब प्रकार की शांति के लिए पांच पाठ, भयमुक्ति के लिए सात पाठ और यज्ञ फल प्राप्ति के लिए नौ पाठ का विधान है. यदि कोई नौ दिन पाठ करने में असमर्थ है तो वह चार, तीन, दो या एक दिन के लिए सात्विक उपवास के साथ पाठ कर सकता है.
उन्होंने बताया कि व्रती तेरह अध्याय को अपनी सुविधा अनुसार नौ दिनों में विभाजित कर लेते हैं और अंत में सिद्धिकुंजिका स्रोत का पाठ करते हैं. देवी को उड़हुल का फूल विशेष प्रिय है. समान्यत: व्रती नवमी पूजन के उसी दिन कुमारी पूजन व हवन कार्य कर सकते हैं.
ये दो तिथियां एक साथ
09 अक्टूबर, शनिवार को तृतीया तिथि सुबह 07 बजकर 48 मिनट तक ही रहेगी. इसके बाद चतुर्थी तिथि लग जाएगी, जो कि अगले दिन 10 अक्टूबर (शनिवार) को सुबह 05 बजे तक रहेगी. इस साल दो तिथियां एक साथ लगने के कारण नवरात्रि आठ दिन के पड़ेंगे.
शारदीय नवरात्रि का है विशेष महत्व
आश्विन की नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि भी कहते हैं. सूर्य के दक्षिणायन काल में देवी पूजन को विशेष महत्व दिया गया है. इसलिए अश्विन की नवरात्रि में विशेष रूप से देवी पूजन की परंपरा है. प्रतिपदा से नवमी तक देवी के नौ रूपों का पूजन होता है. शास्त्रों में चैत, आषाढ़, आश्विन एवं माघ महीने के शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक चार नवरात्रि की चर्चा मिलती है. आषाढ़ एवं माघ मास में होने वाले गुप्त नवरात्रि का तंत्र साधना में विशेष महत्व है. चैत में बासन्ती नवरात्रि का आयोजन होता है.