नया नहीं फिल्म निर्माण में सिने तारिकाओं का दखल
फिल्म निर्माण में अभिनेत्रियां
— सुषमाश्री
कहते हैं समय का पहिया गोल घूमता है. एक वक्त था जब हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं और पुरुषों में कोई भेदभाव नजर नहीं आता था. समय बदला और समाज में नजर आने वाला यह लिंग भेद हिंदी सिने जगत में भी नजर आने लगा. लेकिन फिर एक बार समय ने करवट ले ली है और यहां अभिनेता और अभिनेत्रियों में कोई खास फर्क नहीं रह गया है. अभिनय ही नहीं, फिल्म निर्माण में भी अभिनेत्रियां लगातार आगे बढ़ती दिख रही हैं, मानो जल्द ही इस अंतर को पाटने में उन्हें महारत हासिल होने वाली हो.
शाहरुख़ ख़ान, सलमान ख़ान, आमिर ख़ान, अक्षय कुमार, अजय देवगन, रणबीर कपूर जैसे कलाकारों के साथ साथ फ़िल्म निर्माण में अब अनुष्का शर्मा, प्रियंका चोपड़ा, दीपिका पादुकोण, टिस्का चोपड़ा, दिव्या खोसला कुमार जैसे नाम भी सुनने को मिल रहे हैं. यही नहीं, जल्द ही इस फेहरिस्त में कंगणा रनौत, करीना कपूर और आलिया भट्ट जैसी सिने तारिकाओं के नाम भी शामिल होने वाले हैं. इन तीनों अभिनेत्रियों ने भी अपने होम प्रोडक्शंस लॉन्च कर लिए हैं और बहुत जल्द अपनी फिल्म थियेटर या डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अनाउंस करने की तैयारी में जुटी हुई हैं.
अनुष्का शर्मा
फिल्म इंडस्ट्री में अपने जबरदस्त अभिनय से अलग पहचान बना चुकी अभिनेत्री अनुष्का शर्मा ने भाई कर्नेश शर्मा के साथ मिलकर ‘क्लीन स्लेट फ़िल्म्स’ नामक प्रोडक्शन हाउस खोला और अब तक NH10, परी, फ़िल्लौरी और बुलबुल जैसी फ़िल्मों का निर्माण कर चुकी हैं.
प्रियंका चोपड़ा
अंतरराष्ट्रीय स्तर की अभिनेत्री के तौर पर खुद को साबित कर चुकी बरेली की प्रियंका चोपड़ा ने ‘पर्पल पेबल्स पिक्चर्स’ नामक प्रोडक्शन हाउस खोला. इस प्रोडक्शन हाउस के तहत कई हिंदी और क्षेत्रीय फ़िल्मों का निर्माण किया. इसमें मराठी फ़िल्म वेंटीलेटर, नेपाली फ़िल्म पहुना और साल के शुरुआत में OTT पर रिलीज़ हुई फ़िल्म व्हाइट टाइगर का नाम शामिल हैं.
टिस्का चोपड़ा
फिल्म तारे जमीन पर से चर्चा में आई अभिनेत्री टिस्का चोपड़ा तो बहुत पहले ही अपनी कंपनी The Eastern Way के अंतर्गत एक अवार्ड विजेता शॉर्ट फिल्म चटनी का निर्माण कर चुकी हैं. वह कहती हैं कि कई बार हम एक जैसी फिल्में करके बोरियत महसूस करने लगते हैं. फिर इसी बोरियत को दूर करने के लिए अपनी पसंद की कहानी पर फिल्मों का निर्माण करके खुद को संतुष्ट करते हैं. इससे हमें काफी सुकून का एहसास होता है.
दीपिका पादुकोण
पिछले दिनों ड्रग रैकेट में फिल्मी सितारों को ड्रग्स की सप्लाई करने वाले मुख्य सप्लायर के तौर पर जब दीपिका पादुकोण का नाम आया तो उनके प्रशंसकों के लिए यह किसी सदमे से कम नहीं था. हालांकि, इससे पहले अपनी अदाकारी से भी इन्होंने अपनी अभिनय क्षमता का लोहा मनवाया है. जेएनयू में देशविरोधी नारे लगाए जाने वाले मंच पर पहुंचने को लेकर जब दीपिका पादुकोण विवादों में घिरी थीं, तब वह अपनी फ़िल्म निर्माण कंपनी “का प्रोडक्शन” की पहली फिल्म छपाक के प्रमोशन के लिए ही वहां पहुंची थीं.
दिव्या खोसला कुमार
फिल्म अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों से इंडस्ट्री में बतौर अभिनेत्री कदम रखने वाली दिव्या खोसला ने टीसीरीज के भूषण कुमार से शादी की. इसके बाद यारियां और सनम रे जैसी बेहतरीन फिल्मों का निर्देशन किया. टीसीरीज के बैनर तले दिव्या खोसला ने रॉय, खानदानी शफाखाना, बाटला हाउस, मरजावां, स्ट्रीट डांसर थ्रीडी, लूडो जैसी कई फिल्मों के निर्माण में भी हाथ आजमाया.
निर्माण की राह पर ये
अनुष्का शर्मा, टिस्का चोपड़ा, प्रियंका चोपड़ा, दीपिका पादुकोण और दिव्या खोसला कुमार ने फिल्म निर्माण का स्वाद चख लिया है, लेकिन कुछ अभिनेत्रियां ऐसी भी हैं, जो बहुत जल्द अपनी फिल्में बना और रिलीज कर फिल्म निर्माण का स्वाद लेने की तैयारी में हैं. इनमें अभिनेत्री आलिया भट्ट, तापसी पन्नू, कंगना रनौत और करीना कपूर का नाम भी शामिल है.
कंगना रनौत
सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद सोशल मीडिया पर खुलकर बोलने वाली अभिनेत्री कंगना रनौत ने अपने अभिनय का जौहर तो क्वीन जैसी कितनी ही बेहतरीन फिल्में देकर पहले ही दिखा दिया था, लेकिन अब अपनी प्रोडक्शन कंपनी मणिकर्णिका की लॉन्चिंग की खबर से उन्होंने अपने प्रशंसकों को एक और खुशखबरी दे दी है. कंगना ने कहा है कि बहुत जल्द वह डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए अपनी पहली फिल्म Tiku weds Sheru का निर्माण करेंगी.
तापसी पन्नू
पिंक और मुल्क जैसी फिल्मों से चर्चा में आई अभिनेत्री तापसी पन्नू ने पीकू जैसी कई फिल्मों में सह निर्माता के तौर पर खुद को पहले ही स्थापित कर लिया है. लेकिन बहुत जल्द अपने प्रोडक्शन हाउस Outsiders Films के तहत उनकी फिल्म रश्मि रॉकेट का निर्माण तय किया जा चुका है.
करीना कपूर
दर्शकों को कई जबरदस्त फिल्में दे चुकीं अदाकारा करीना कपूर ने एकता कपूर और साथ मिलकर निर्देशक हंसल मेहता की एक थ्रिलर का निर्माण किया और अभिनेत्री के साथ साथ फिल्म निर्माताओं की लिस्ट में भी खुद को शामिल कर लिया.
आलिया भट्ट
हाईवे और राजी जैसी फिल्मों के बाद अपने आलोचकों का मुंह बंद करा देने वाली आलिया भट्ट ने साबित कर दिया है कि वह एक बेहतरीन अदाकारा हैं और किसी भी तरह के किरदार को बखूबी निभा सकती हैं. रणबीर कपूर से सगाई के अलावा अपना खुद का प्रोडक्शन हाउस खोलने के उनके फैसले ने भी एक बार फिर उनके आलोचकों को उन्हें गंभीरता से लेने को मजबूर कर दिया है. बहुत जल्द आलिया भट्ट अपने प्रोडक्शन हाउस Eternal Sunshine Productions के तहत अपनी पहली फिल्म Darlings रिलीज करने वाली हैं.
माना कि आज की पीढ़ी अपने भविष्य को लेकर बेहद स्पष्ट है. उसे मालूम है कि हमें भविष्य के लिए अभी से ही धन संचय करने की जरूरत है. इसके लिए फिल्म निर्माण का काम उन्हें सबसे आसान और ज्यादा फायदा देने वाला लगता है. यही वजह है कि वे फिल्म निर्माण में पीछे नहीं रहना चाहतीं. लेकिन हिंदी सिने जगत के शुरुआती दौर की अभिनेत्रियों के लिए धन कमाने से कहीं ज्यादा कुछ और था, जो उन्हें इस क्षेत्र से जुड़ने को मजबूर करता था. इसकी एक बानगी बीबीसी के इस रिपोर्ट में साफ झलकती है.
नया नहीं ट्रेंड
बीबीसी हिंदी में प्रकाशित एक खबर के अनुसार, हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री के शुरुआती दौर में कई ऐसी सशक्त अभिनेत्रियां थीं, जिन्होंने फ़िल्म निर्माण की हर कमान संभाली. इतिहासकार अमृत गंगर ने ऐसी सशक्त अभिनेत्रियों पर प्रकाश डाला है.
फ़ातिमा बेग़म
फ़ातिमा बेग़म ने अपना करियर उर्दू मंच से शुरू किया. उसके बाद आर्देशिर ईरानी की ‘वीर अभिमन्यु’ फ़िल्म से फ़िल्मों में अभिनय की शुरुआत की. आगे चलकर आर्देशीर ईरानी ने इम्पीरियल फ़िल्म कंपनी बनाई जिसने 1931 में भारत की पहली साउंड फ़िल्म ‘आलम आरा’ का निर्माण किया.
आलम आरा में फ़ातिमा बेग़म की बेटियां ज़ुबैदा, सुल्ताना और शहज़ादी ने अभिनय किया.
1926 में फ़ातिमा बेगम ने फ़ात्मा फ़िल्म्स नामक अपना प्रोडक्शन हाउस खोला और 1928 में विक्टोरिया – फ़ातिमा फ़िल्म की स्थापना की. फ़ातिमा बेगम बहुमुखी प्रतिभा वाली महिला थीं, जिन्होंने बड़े-बड़े स्टूडियो जैसे कोहिनूर और इम्पीरियल स्टूडियो की फ़िल्मों में अभिनय के साथ साथ अपने प्रोडक्शन से फ़िल्म निर्माण भी किया. इन फिल्मों में वो स्क्रिप्ट राइटिंग और निर्देशन के साथ-साथ अभिनय भी किया करती थीं.
1930 के दशक में उन्होंने अभिनय जारी रखा. वो हिंदी सिनेमा के शुरुआती दौर के महान निर्देशक नानुभाई वकील और होमी मास्टर के साथ काम करती दिखीं.
ज़ुबैदा
ज़ुबैदा, 1931 में भारत की पहली साउंड फ़िल्म आलम आरा की स्टार रहीं. अभिनेत्री ज़ुबैदा ने निर्देशक नानूभाई वकील के साथ मिलकर 1934 में महालक्ष्मी सिनेटोन कंपनी स्थापित की. उन्होंने 1930 के दशक के अंत तक फ़िल्म जगत को अलविदा कह दिया.
उन्होंने अपने फ़िल्मी करियर में नवल गाँधी के कई सामाजिक फ़िल्मों में परंपरागत आयाम वाली छवि विकसित की जिसमें शामिल है रवीन्द्रनाथ टैगोर के प्रतिष्ठित नाटक पर आधारित फ़िल्म बलिदान.
जद्दनबाई
जद्दनबाई, 1930 के दशक के हिंदी सिनेमा की बहुमुखी प्रतिभा वाली महिला थीं. जद्दनबाई 1892 में इलाहाबाद में जन्मीं और 1949 में मुंबई में उनका निधन हो गया. 1932 में वो लाहौर के प्लेआर्ट फ़ोटो टोन स्टूडियो से जुड़ीं और चार साल बाद 1936 में उन्होंने संगीत फ़िल्म्स नामक कंपनी की स्थापना की.
1933 से 1935 में उन्होंने कई फ़िल्मों में अभिनय के साथ-साथ गीत भी गाया जिसमें इंसान या शैतान, राजा गोपीचंद, सेवा सदन, तलाश-ए-हक़, परीक्षा और नाचवाली शामिल है.
उन्होंने हिंदी और पंजाबी फ़िल्मों में गाना गाया. दो फ़िल्मों की वो संगीतकार भी रहीं. 1948 में आई फ़िल्म अंजुमन की स्क्रिप्ट भी उन्होंने लिखी थी. बहुमुखी प्रतिभा की धनी जद्दनबाई हुसैन ने गायिका, संगीतकार, नर्तकी, अभिनेत्री, निर्देशक और निर्माता के तौर पर बख़ूबी अपनी पहचान बनाई.
वह प्रसिद्ध अभिनेत्री नरगिस की माँ थीं. अमृत गंगर के मुताबिक़, ऐसी प्रभावशाली व्यक्तित्व वाली शख़्सियत आज के दौर की अभिनेत्रियों में मिलना मुश्किल है.
कानन देवी
कानन देवी, भारतीय सिनेमा की एक और प्रभावशाली महिला रहीं. उनका हिंदी और बंगाली सिनेमा में योगदान रहा. साइलेंट एरा से अभिनय की शुरुआत करने वाली कानन देवी 1949 में श्रीमती पिक्चर्स से फ़िल्म निर्माण की शुरुआत की. अनन्या फ़िल्म से उन्होंने सव्यसाची कलेक्टिव लांच किया.
उन्होंने क़रीब 11 फ़िल्मों का निर्माण किया. अपनी कई मशहूर फ़िल्मों में वो वो गायिका भी रहीं. के एल सहगल के साथ 1938 में बनी फ़िल्म साथी, स्ट्रीट, सिंगर, 1941 में बनी फ़िल्म लगान और परिचय ऐसी फ़िल्में थीं.
बीते दौर की महिला निर्माता और कहानियां
इस विषय पर अमृत गंगर टिप्पणी करते हैं, “जब कोई महिला किसी विषय पर फ़िल्म बनाती है, लिखती है, निर्देशन करती है या निर्माण करती है तो उसमें उस महिला का दृष्टिकोण आ ही जाता है, पर व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि 1930 और 1940 के दशक के मुकाबले आज का दौर काफ़ी अलग है. आज का बॉलीवुड उस दौर के हिंदी फ़िल्म स्टूडियो के मुकाबले बेहद सामंती और लिंग भेद वाला नज़र आता है, साथ ही सांप्रदायिक मानसिकता भी है. वरना उस दौर में फ़ातिमा बेगम, ज़ुबैदा और जद्दनबाई जैसी महिलाएं उभर कर नहीं आतीं.”
वो आगे लिखते हैं,” उन अभिनेत्रियों ने हर विषय में अपना हाथ आज़माया, जिसमें सामाजिक, ऐतिहासिक, साहसी, बाग़ी, करतब दिखानेवाली और थ्रिलर फ़िल्में शामिल थीं. अगर ऐसा नहीं होता तो उस दौर की निडर नाडिया नहीं बनती.”
उस समय बनी ‘बलिदान’ फ़िल्म में माँ काली की जीव हत्या की निंदा की गई थी जिसमें ज़ुबैदा ने अभिनय किया था.
1960 के बाद आया बदलाव
हिंदी सिनेमा के शुरुआती दौर में कई अभिनेत्रियां निर्माता बन अनेक विषयों पर अपनी राय रखती रहीं. पर वक़्त के साथ उनकी संख्या में गिरावट आई. इतिहासकार अमृत गंगर इसमें समाज में बढ़ती पितृसत्तात्मकता को कारण बताते हैं.
“1960 के बाद समाज में पितृसत्तात्मकता और रूढ़िवादिता बढ़ी. साथ ही बढ़ा धार्मिक, सामाजिक और पारिवारिक परम्पराओं को तोड़ने का डर भी.”
वो आगे कहते हैं,” व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना है कि फ़िल्म उद्योग में महिलाओं की बहुमुखी प्रतिभाओं के उभरने के लिए उदार, धर्मनिरपेक्ष, ग़ैर-अराजकतावादी, गैर-नस्लवादी और गैर-भाषावादी दृष्टिकोण वाले माहौल का होना बहुत ज़रूरी है. कल्पना कीजिए, फ़ातिमा बेगम गुजरात में सूरत के पास के राजघराने की थीं, जिन्होंने नवाब से शादी की थी. उनकी तीन अभिनेत्री बेटियां राजकुमारियां थीं. उनके पुरुष लोग कम अराजक और प्रभावशाली रहे होंगे, हम यह अनुमान लगा सकते हैं.”
इक्कीसवीं सदी के हिंदी सिनेमा की अभिनेत्रियां बदलते वक़्त के साथ कई ऐसे विषयों वाली फ़िल्मों का हिस्सा बनी हैं, जिसने समाज में एक संवाद छेड़ा है और दर्शकों को सिनेमाघर तक खींचकर कमाई भी की है.
इतिहासकार एस एम एम औसजा मानते हैं कि टॉप अभिनेत्रियां, जो बॉक्स ऑफ़िस का भार अपने कंधों पर ले रही हैं, उन अभिनेत्रियों की फ़िल्म निर्माण में सक्रियता से दर्शकों को कई अनोखी और नई कहानियां देखने को मिलेंगी.