गरीब की दृष्टि से –गरीबी का दर्शन
समाज ,सत्ता ,संपत्ति ,समता ,समानता ,राज्य ,व्यवस्था ,शोषण ,अधिकार जैसे विषयों को केंद्र में रखकर विगत तीन चार सौ वर्षों में राजनैतिक ,आर्थिक ,सामाजिक ,धार्मिक ,सांस्कृतिक चिंतकों ने तमाम सिद्धांत प्रतिपादित किये। सिद्धांतों के क्रियान्वयन के प्रयास भी किये गए ,आंदोलन हुए ,क्रांतियां भी हुई ,जिसका एक वृहद् इतिहास है ,जो पढ़े लिखे लोगों के पढ़ने के लिए है ,विमर्श के लिए है। राजशाही रही हो ,अधिनायकशाही रही हो ,लोकशाही रही हो क्रूर सच यह है की अमीर ,अमीर होता गया और गरीब ,गरीब।
गरीब की दृष्टि में उसकी गरीबी का कारण अमीर नहीं। ईश्वर को भी वह दोषी नहीं समझता। गरीब सैकड़ों वर्ष पूर्व से आज तक अपने भाग्य को ही गरीबी का कारण मानता है। दरिद्रतापूर्ण जीवन जीने की नियति उनके लिए ईश्वर प्रदत्त पूर्वजन्मों के कर्मों के प्रायश्चित स्वरूप है।
असमानताओँ से भरे समाज की विपत्तियों को झेलते हुए भी ईश्वर को दयावान मानते हैं। व्यक्तिगत ,सार्वजनिक और शासकीय दान उन्हें गरीबी से मुक्ति दिलाने के साधन ईश्वरीय कृपा के फलस्वरूप ही उपलब्ध होते हैं। इसे पाने की किसी अधिकार की लालसा से वह ग्रस्त नहीं होता। उत्पादन के साधन की मालिकी को ,अमीर की अमीरी को वह गरीब के अपहरण किये हुए धन अथवा श्रम के अतिरिक्त मूल्य के रूप में नहीं देखता। गरीब को गरीबी के दर्शन मेंसंपत्ति के सामाजिक स्वरूप की अवधारणा बस इतनी भर दीख पड़ी की गरीबी से मुक्ति दिलाने का वादा करके उसका वोट उसकी बिरादरी के नेता ने झटक लिया और वह अमीर के वर्ग में शामिल हो गया। गरीब सामाजिक संरचना तथा संस्कृति के स्वरूप के पायदाने पर अपनी जीवनयात्रा करता रहता है जिसका नियंता भाग्य और ईश्वर होता है। उसके दर्शन में यह दृढ विश्वास है की धर्म और ईश्वर ने जो भी सामाजिक समानता बनाई है उसपर संतोष करना चाहिए।
गरीब का दर्शन इस आस्था विश्वास पर आधारित है की सत्ता और संपत्ति की उपलब्धि जन्म ,संयोग ,सदभाव ,पूर्व जन्म के अच्छे कर्मों के पुरस्कार स्वरूप ही होती है। इस दर्शन में इस मान्यता का कोई विरोध नहीं है की संपत्ति का अर्जन व्यक्तिगत परिश्रम ,सुन्दर व्यवस्था तथा मितव्ययिता से तभी होसकता है जब भाग्य का सहयोग हो तथा ईश्वर की कृपा हो।
शोषण को गरीब मार्क्सवादी शोषण से इतर नैतिकता के परिप्रेक्ष्य में अन्याय और निर्दयता के रूप में देखता है। निर्वाह योग्य मजदूरी मिल जाए तो प्रभु की कृपा है यदि न मिले तो प्रभु का कोप।
गरीब नहीं जान पाया क्या होता है समाजवाद ,साम्यवाद ,सर्वोदयवाद ,सामाजिक न्याय ,और रामराज।