ओंकारस्वरूप गजानन गणेश

 

चंद्रविजय चतुर्वेदी
डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज

कलिकाल विघ्नों  का संकटों  का काल है , विघ्नों को दूर करने के लिए भारतीय नारियां भाद्र कृष्ण पक्ष चतुर्थी को संकटी चतुर्थी का निर्जला व्रत रहती हैं।लोक की मान्यता है की कलि के प्रभाव को मंगलमूर्ति विघ्ननाशक गणेश ही दूर करते हैं। गणपति का निर्देश ऋग्वेद के निम्नलिखित मन्त्र में मिलता है —

ओउम गणानां त्वा गणपतिगं गवामहे कविं कविना मुपमश्रवस्तमं 

ज्येष्ठराजम ब्रह्माणाम ब्राह्मणस्पत आ नः शृण्वन्नूतिभिस्सीद सादनम महागणपतये नमः 

अर्थात हे ब्रह्मणस्पति -वाणी के स्वामी वाचस्पति तुम देव समूह में गणपति ,कवियों में अप्रतिम कवि ,प्रशंसनीय लोगों में सर्वोच्च एवं मन्त्रों के स्वामी हो। हम तुम्हारा आवाहन करते हैं की तुम हमारी स्तुतियां सुनते हुए यज्ञशाला में बैठो और हमारी रक्षा करो। इस मन्त्र में गणेश –गणपति को कवि , ज्येष्ठराज और ब्रह्मणस्पति से सम्बोधित किया गया है।ईशोपनिषत में कहा गया है –कविर्मनीषी परिभुः स्वयंभुः –अर्थात यह कवि  ही ब्रह्म है। ज्येष्ठराज देवों में श्रेष्ठ अर्थात गणेश है। ब्रह्मणस्पति ,वाणी के स्वामी अर्थात वाचस्पति हैं। गणेश वैदिक देवता हैं ,अथर्ववेद में इनकी वंदना सौमनस्य और सामंजस्य केलोक  देवता के रूप में की गई है –सं वः प्रिच्यनतां तन्व सं मनांसि समु व्रता /सं वो यं ब्राह्मणस्पतिरभग सं वो अजिगमात –अर्थात हे सौमनस्य के इच्छुक पुरुषों ,तुम्हारे शरीर परस्पर के अनुराग में बंधे तथा ह्रदय भी एक दूसरे के समीप आएं। तुम्हारे कृषि वाणिज्य आदि कर्म भी सामंजस्य पूर्ण रहे। ब्रह्मणस्पति देव तुम्हे संगत ह्रदय वाला बनाये तथा भग नामक देव तुम्हे परस्पर तालमेल वाला करे। यजुर्वेद में गणपति का उल्लेख निम्नलिखित मन्त्र में किया गया है –गणानां त्वा गणपतिगं गवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिगं हवामहे निधनां त्वा निधिपतिगं हवामहे वसो मम आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम –अर्थात आप गणों  के स्वामी हैं ,हम आप गणपति का आवाहन करते हैं ,आप  प्रियों के बीच प्रिय हैं ,हम आप प्रियपति का आवाहन करते हैं ,आप निधियों के बीच प्रिय हैं ,हम निधिपति का आवाहन करते हैं। जगत को आपने बसाया है ,आप हमारे होइए ,आप संसार के गर्भधारी हैं ,हम आपकी इस गर्भधारण क्षमता को जाने। यजुर्वेद ब्रहस्पति के जागृत होने और देवत्व प्राप्त करने का आवाहन करता है –उत्तिष्ठ ब्रह्मणस्पते देवयन्तस्त्वेमहे। 

   गणेश वैदिक देवता है –ब्रह्मस्वरूप जो समस्त जीवजगत के स्वामी हैं –गणानां जीवजातानाम यः ईशह स गणेशः। मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है –मुनि अनुशासन गणपतिहि पूजउ संभु भवानी /कोउ सुनि संशय करै जनि सुर अनादि जिय जानि –अर्थात शिव पारवती के विवाह में पहले गणपति की पूजा की गई। सनातन संस्कृति के पंचदेवों की उपासना की अनिवार्यता में विघ्ननाशक विनायक गणेश की पूजा प्रत्येक हिन्दू चाहे किसी संप्रदाय का हो सबसे पहले करता है। गणेश– सत चित आनंद के पति होने के कारण गणपति है। देव मानव राक्षस तीनो गणों के स्वामी होने के कारन गणेश गणपति हैं। धर्म अर्थ काम तीनो त्रिगुण को वश में करके मोक्ष दिलाने वाले गणेश गणपति हैं। सनातन संस्कृति में पंचदेवों की समन्वित संस्कृति के पूर्व गणेश लोकदेवता के रूप में गाणपत्य संप्रदाय के अधिपति रहे जो मुख्य रूप में कृषिकर्म में संलग्न थे इसकी पुष्टि अथर्ववेद के मन्त्र से होती है। 

 गणेश ओंकारस्वरूप हैं ,गणेश का सगुण रूप ओंकार का प्रतीक है गणेशोत्तरतापिन्युपनिषद में गणेश को ओंकारस्वरूप एकाक्षर ब्रह्म माना है –ओमित्येकाक्षरं ब्रहमेदम सर्वँ। संत ज्ञानेश्वर तो गणेश को वेदस्वरूप मानते हैं। इनकी छह भुजाएं ही षट्दर्शन हैं ,परशु तर्कशास्त्र और अंकुश न्यायशास्त्र है। अष्टादश पुराण को मणिभूषण बताते हुए ज्ञानेश्वर ने कहा की ज्ञानीजन गणेश की सेवा करने वाले भ्रमर हैं। 

 भारतीय मूल के- ओउम नमः शिवाय कहा जाता है। जैन परंपरा में अर्हत की स्तुति में –ओउम नमः सिद्धेभ्यः कहा जाता है। बौद्ध परंपरा में –ओउम नमो तस्य भगवतो अरहतासम्मासम्बुद्धस्स कहा जाता है। गुरु नानक ने तो ओंकार को ही सबकुछ माना है –एकंकारु अबार न दूजा नानक एक समाई। उ अंकार ब्रह्मा उत्पति उ अंकार वेद निरमाये। 

   गणेश विद्यावारिधि बुद्धिनिनायक है –तुलसी स्तुति करते है —

   वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि 

   मंगलानां च कर्तारौ वन्दे वाणी विनायकौ 

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