रक्षाबंधन: राखी का नया रूप
डेढ़ दो हज़ार किमी पहाड़ों में दूर बैठे नाना व बाप को खुद हाथ से बनाई राखियाँ और मनपसंद मिठाई समय से पहुंचा दीं तो अति उत्साह में एक दिन पहले ही पहन ली। जब सही दिन बताया तो सलीक़े से एक हाथ से ही गाँठें खोलकर रख दीं, आज फिर दोबारा बाँधूँगा
घर में सब बच्चे अपने अपने ढंग के कलाकार बन रहे हैं! पुराने कपड़ों से बनाई राखी हैं तो कुछ दूसरी सामग्रियों से। एक राखी पर बीज चिपका है, कल धरती में दबा दिया जायेगा और कुछ महीनों में आते जाते उसके पत्ते फूल फल सब दिखेंगें।
नातिन से २४ पेंटिंग मांगी थी मैंने, आज दूसरी मिल गई; वैसे वो रोज़ ही बनाती रहती है। नाती रोज़ व्हाट्सऐप से अपने बनाये स्कैच भेजते रहते हैं, नयी सीरीज़ गढ़ते रहते हैं।
यह बड़ी ख़ुशी है कि कर्कश, सनातन प्रतिपक्षी राजनीतिज्ञ व स्वघोषित टिप्पणीकार के यहॉं रचनाकारों का संसार उग रहा है।
कुछ राखियॉं मिसिंग हैं, कोई बात नहीं ; मन से मान ली गईं हैं।
भारतियों के इस सुंदर त्यौहार रक्षाबंधन की सभी को मंगलकामनाएँ !
इसे भाई बहन ही नहीं उन सबका रक्षाबंधन बनायें जिनकी सुरक्षा हेतु आपका मन करता है क्योंकि उनसे किसी भी ज्ञात अज्ञात वजह से एक राग प्रेम पनप चुका है,सखा सखी बच्चे मॉं पत्नी मित्र प्रेयसि बहन दोस्त प्रेमी पड़ोसी पड़ोसन सब !
राखी बांधने मात्र से ही कोई भाई बहन नहीं हो जायेगा , मन से एक गहरा रिश्ता जुड़ेगा , कर के देखो!
आस पड़ोस में घूम आओ और एक एक धागा अगर हर युवक बँधवा आये तो यह समाज कैसे स्त्री विरोधी बलात्कारी बना रह पायेगा ? यदि एक कदम और आगे बढ़कर वंचितों के घरों में पहुँच जाओ और दो कदम आगे चल कर उनके भी जो भारत में आज कमतर हैं , असुरक्षित महसूस कर रहे हैं तो यह देश कभी ऐसी विषमता व दंगे नहीं देखेगा। बस फ़ैसला करना है और बाज़ार में जाकर नहीं अपने हाथ से कुछ धागों में गाँठें लगवानी हैं। पर्व छुट्टी के दिन इसलिये भी होते हैं कि बनी बनायी बासी धारणाओं से छुट्टी पा सकें !
पर्वों को नया और ज़्यादा सुंदर रूप देना भी पढ़ी लिखी नई पीढ़ी का काम है ! कॉरपोरेट के व्यापारिक विज्ञापनों से प्रभावित मत होइये, खुद के दिल दिमाग़ से कुछ नया करिये।
- रमाशंकर सिंह की फ़ेसबुक वाल से साभार