बदला मौसम कोरोना के फैलाव में मददगार हो सकता है
अरुण पांडेय , अयोध्या से
बारिश खुशियां लेकर आती है. इसका इंतजार किसान से लेकर सरकार और औद्योगिक क्षेत्र के दिग्गज भी करते हैं. भारत में मानसून के दस्तक देने का समय 1 जून है. केरल से मानसून की शुरुआत होती है जो धीरे-धीरे उत्तर भारत से होते हुए हिमालय तक जाती है. लेकिन इस बार मानसून मई में ही महसूस होने लगा है और यह तब है जब कोरोना वायरस का संकट सामने है. कोरोना से निपटने के तमाम कारकों में एक बढ़ा हुआ तापमान भी माना जा रहा था. जबकि इस बार गर्मी अभी तक अपने चरम पर पहुंची नहीं पाई है.
मौसम विज्ञान का नजरिया, जलवायु परिवर्तन के संकेत
मौसम विशेषज्ञ बता रहे हैं इस वक्त जो बारिश हो रही है वह वेस्टर्न डिस्टरबेंस और पहाड़ों पर हो रही बर्फबारी से पैदा हुई नमी के कारण है. जबकि मई में मौसम का यह रवैया सामान्य नहीं कहा जा सकता. जलवायु में आए इस बदलाव को लेकर वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं.
नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय कुमारगंज, अयोध्या के मौसम विशेषज्ञ डॉ. अमरनाथ मिश्रा का कहना है मई के मौसम में आया यह बदलाव हैरान करने वाला है. जिस तरीके से बीते दिनों बारिश और ओलावृष्टि हुई है वह मौसम विज्ञान के पूरे अध्ययन को बदल कर रख देगी. भारत के मैदानी इलाकों में इस वक्त का मौसम और तापमान कुछ कुछ पश्चिम भारत जैसा बर्ताव कर रहा है. जबकि उत्तर भारत में मानसून 22 जून से 1 जुलाई के मध्य आता है.
नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय कुमारगंज से बीते 35 साल के बारिश के आंकड़ों पर नजर डालें तो जलवायु परिवर्तन के संकेत दिखते हैं. हालांकि बारिश का यह सैंपल साइज बहुत छोटा है. लेकिन मई के मौसम में बारिश के अध्ययन में मदद मिलेगी. मई के मौसम में औसत बारिश 21.3 मिलीमीटर होनी चाहिए. जबकि इस साल अब तक मई के दूसरे हफ्ते में कुल 34 मिलीमीटर तक बारिश रिकॉर्ड की गई है. इसी तरह से सन 2006 में मई के महीने में 114 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की गई. इसके बाद लगातार सन 2011 तक बारिश औसत से अधिक (114-31 मिलीमीटर के बीच) होती रही. मतलब 6 साल तक जलवायु परिवर्तन की थ्योरी को मई की बारिश बल देती रही. सन 2000-2002 तक भी बारिश 44 से 30 मिलीमीटर दर्ज की गई. 1998 की मई में भी 35 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई.
शोधकर्ताओं का मानना है कि गर्मी का प्रभाव कोरोना के तेज फैलाव में गतिरोध उत्पन्न कर सकता है. लेकिन इस बार मई में ना तो गर्मी पड़ी है ना ही लू चली है. आम नजरिए से देखें तो मई में गर्मी ना पड़ने का एक कारण लॉक डाउन समझ में आता है. एक आम समझ यह भी है कि शहरों में गाड़ियों का आवागमन ना के बराबर है. कारखाने ठप हैं. कमर्शियल बिल्डिंग बंद हैं. इन बिल्डिंग में लगी एयर कंडीशन के पीछे से निकलने वाली गर्म हवा वातावरण को गर्म नहीं कर रही है. इसलिए मई का तापमान पिछले कई सालों के मुकाबले कम है.
लेकिन यदि आप शहर और गांव का तुलनात्मक अध्ययन करें तो इस वक्त वातावरण के लिहाज से जो स्थिति शहरों की है वह गांव में मई के महीने में हमेशा रहती है. मई का महीना गर्मी से परेशान कर देने वाला होता है. इस बार गर्मी ना के बराबर है. तो क्या यह मौसम कोरोना वायरस के लिए मुफीद बनता जा रहा है.
न्यूज 18 समूह को दिए एक इंटरव्यू में सार्स वायरस की तलाश करने वाले हॉन्गकॉन्ग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जॉन निकोल्स का कहना है कि कोरोना पर गर्मी का प्रभाव पड़ सकता है. यह वायरस हीट सेंसिटिव है और गर्मी से इसके फैलाव में कमी आ सकती है. हालांकि अभी इस पर अध्ययन पूरा नहीं हो पाया है और विशेषज्ञ भी किसी एक नतीजे पर नहीं पहुंच पाए हैं.
वहीं यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन की एक रिसर्च टीम के अध्ययन को आधार मानें तो कोरोना वायरस के दूसरे प्रकार मुख्य रूप से सर्दियों के मौसम ही फैले. ब्रिटेन में करीब 2 हजार लोगों पर रिसर्च के दौरान पाया कि कोरोना वायरस का चरम भी ठंड और सामान्य फ्लू के सीजन में ही था. गर्मी का मौसम बढ़ने के साथ ही नए मामलों में कमी आई है. हालांकि शोधकर्ता पूरे विश्वास के साथ ये नहीं कह पा रहे हैं कि ये वायरस गर्मी के मौसम में समाप्त हो जाएगा.
कोरोना वायरस के संक्रमण से निपटने के लिए मेडिकल साइंस पूरी ताकत से काम तो कर ही रही है. हमारे विशेषज्ञ बढ़ी हुई गर्मी या ज्यादा तापमान में कोरोना कितना सक्रिय रहता है, इसके अध्ययन की तैयारी में थे. लेकिन जिस तरह से मई में बारिश हुई है और तापमान में इजाफा नहीं हुआ है तो इस उम्मीद पर भी पानी फिरता जा रहा है.
फ़ेस बुक वाल से साभार