कोरोना की तीसरी लहर में भी जान बचा सकता है आयुर्वेद
आयुर्वेद अपना कर हो सकता है कोरोना की तीसरी लहर से बचाव
कोरोना की तीसरी लहर आने वाली है, बल्कि, केरल और महाराष्ट्र में कोरोना के बढ़ते मामले इस बात कर स्पष्ट संकेत देते हैं कि कोरोना की तीसरी लहर अब अधिक दूर नहीं है। वैज्ञानिकों का मत है कि कोरोना की तीसरी लहर बच्चों भी प्रभावित करेगी क्योंकि अधिक संक्रमण बने रहने से वायरस के म्यूटेशन का खतरा बढ़ जाता है और नए स्वरूप में वह अधिक घातक हो सकता है।
कोरोना की दूसरी लहर की भयावहता, मौतों के ताण्डव नृत्य से आधुनिक चिकित्सा की सीमाएं तो उजागर हुईं ही, साथ ही भारत की जनता भी अभी तक कोरोना की दूसरी लहर से उबर नहीं पायी है। ऐसे में, कोरोना की तीसरी लहर की चर्चा वास्तव में चिंतित करने वाली है। अब जबकि यह भी स्पष्ट है कि कोरोना का विषाणु देश काल के अनुसार अपनी संरचना बदलते हुए जानलेवा बना हुआ है।
याद दिला दें कि केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने आयुर्वेद, सिद्ध एवं आयुष की अन्य विधाओं का प्रयोग करके कोरोना से मृत्यु दर को काफ़ी हैड तक नियंत्रित किया. कच्छ अन्य स्थानों पर भी लोगों ने निजी स्तर पर आयुर्वेद का इस्तेमाल करके काफ़ी राहत पायी. उत्तर प्रदेश जैसे जिन राज्यों ने आयुर्वेद का इस्तेमाल नहिं किया वहाँ हालात भयावह और बेक़ाबू हो गए यह किसी से छिपा नहीं है.
अब कोरोना की तीसरी लहर पर काबू पाने के लिए देश, काल के अनुसार प्रोटोकॉल तैयार किया जाना चाहिए परन्तु इसके लिए हजारों वर्षों की अनुभूत आयुर्वेद चिकित्सा को भरपूर उपयोग नहीं किया जा रहा।
मीडिया स्वराज ने भारतीय चिकित्सा परिषद् उ.प्र. के पूर्व उपाध्यक्ष एवं आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट के संस्थापक डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी के साथ कोरोना की तीसरी लहर में आयुर्वेद की प्रभावी भूमिका पर चर्चा की।
मीडिया स्वराज: कोरोना की संभावित तीसरी लहर की चर्चा ज़ोरों पर है। इससे बचाव के लिए आयुर्वेद क्या कर सकता है?
डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी: भारत में ऐसी तमाम महामारियों के दौर का लम्बा और पुराना इतिहास रहा है पर प्राचीन भारत ने अपने समृद्ध आयुर्वेद के बलबूते पर इन महामारियों का केवल मुकाबला ही नहीं किया बल्कि इसके मूल कारण को खोजकर मानव को इन महामारियों से उबारा भी है। भारतीय आयुर्विज्ञान की प्राचीन संहिताओं में इसके प्रमाण आज भी मिलते हैं। भारतीय चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद, चाहे कोरोना की तीसरी लहर हो या कोई अन्य बीमारी, इसके तीन मूलभूत कारण मानता है
(i) इन्द्रियों के विषयों का गलत उपयोग,
(ii) बुद्धि, विवेक, प्रज्ञा में दोष का आ जाना जिससे व्यक्ति पालनीय और अपालनीय तथ्यों को समझ नहीं पाता है और
(iii) काल विपर्यय यानी ऋतुओं का सही ढंग से उपस्थित न होना तो उधर व्यक्ति में ऋतु को मद्देनजर रखते हुए जीवनशैली का न जीना।
मीडिया स्वराज: कोरोना की तीसरी लहर में आयुर्वेद किस प्रकार सहायक हो सकता है?
डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी: भारत में जब कोरोना की दूसरी लहर का दौर आया उस समय भी वसंत ऋतु का संधिकाल, वसंतऋतु का विपर्यय काल था, परिणामत: कफ दोष का असंतुलन हुआ, जिससे इधर व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता, अग्निबल की कमजोरी तो उधर वायु का दूषित होना सामने आया। कोरोना की दूसरी लहर में भी आयुर्वेद की रसौषधियों और आशुचिकित्सा प्रणाली ने अपनी करामात दिखाई थी, अब, कोरोना की तीसरी लहर में भी आयुर्वेद लोगों के जीवन की रक्षा करने में पूरी तरह सक्षम है। यह समय वर्षा ऋतु और उसका संधिकाल का है। वर्षा ऋतु में होने वाले शरीर के वायु दोष की गड़बड़ी, शरीर की आन्तरिक अग्नि/ऊष्मा में उतार-चढ़ाव, पाचनतंत्र की गड़बड़ी, मानसिक अस्थिरता, विचलन ये सब उपस्थित रहेंगे और जिनमें ये समस्यायें और ऐसी असावधानी रहेंगी वे तीसरी लहर की चपेट में आयेंगे।
मीडिया स्वराज: कोरोना के बारे में आयुर्वेद क्या कहता है?
डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी: आयुर्वेद कहता है कि विषाणु, अग्नि, वायु आकस्मिक चोट आदि से जो पीड़ायें होती हैं उसका मूल कारण भी बुद्धि वैकल्य है जिसे आयुर्वेद की भाषा में ‘प्रज्ञापराध’ कहा जाता है। ईर्ष्या, शोक, भय, क्रोध, अहंकार और द्वेष आदि के कारण जो मनोविकार और मानसिक दुर्बलतायें आती हैं उन सबका कारण भी यही बुद्धि वैकल्य (प्रज्ञापराध) है।
आयुर्वेद ऋषियों ने बड़े दावे के साथ कहा है कि वसंत ऋतु में कफ को, वर्षा ऋतु में वात को और शरद ऋतु में पित्त को शरीर से बाहर कर दिया जाय फिर ऋतु अनुरूप ऐसी औषधियों का सेवन किया जाय जो शरीर में रस धातु की स्थिति ठीक रखे और शरीर में बल का आधान करे तो किसी भी तरह के रोगों का आक्रमण शरीर में नहीं होता। जिस समय कोरोना की तीसरी लहर की बात हो रही है वह समय शरीर में वात का प्रकोप तथा पित्त का संचय फिर पित्त के प्रकोप का शमन होगा।
मीडिया स्वराज: कोरोना की तीसरी लहर के प्रकोप से बचने के लिए जन सामान्य को क्या उपाय करना चाहिए?
डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी: यदि जन सामान्य में यह जागरूकता ला दी जाय कि वह उन कारणों को कतई न अपनायें जो इस मौसम में वात को कुपित, पित्त का संचय फिर उसका प्रकोप करे तो निश्चित रूप से कोरोना की तीसरी लहर से बचाव संभव होगा।
कड़वे, तीखे, कषैले, चटपटे, गरिष्ठ पदार्थों का सेवन, रात्रि जागरण या देर रात भोजन का बिल्कुल त्याग करें। मॉस्क का प्रयोग करें, ताजे और गुनगुने जल का सेवन करें। पानी का अति सेवन बिल्कुल न हो। अति जल सेवन से 100 व्याधियाँ होती हैं। ब्रह्मचर्य और सदाचार का पालन हो। ब्रह्म मुहूर्त का जागरण और उस समय की शुद्ध हवा का सेवन अवश्य हो। प्राणायाम, जप, ध्यान, ईश्वराराधन, प्रार्थना, आदि देवव्यापाश्रय, गुग्गुल, नीम पत्र, राई, घी, जौ, चावल से बने धूप का हवन, शुद्ध वस्त्रों का ही धारण किया जाना चाहिए।
मीडिया स्वराज: देवव्यापाश्रय चिकित्सा क्या है और आयुर्वेद में इसका क्या महत्व है?
डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी: आयुर्वेद चिकित्सा में एक चेप्टर देवव्यापाश्रय चिकित्सा का है, महर्षि चरक ने सबसे पहले देवव्यापाश्रय चिकित्सा का ही उल्लेख किया है। देवव्यापाश्रय के बाद युक्तिव्यापाश्रय चिकित्सा फिर सत्त्वावजय चिकित्सा को बताया गया है। देवव्यापाश्रय चिकित्सा में तो ईश्वर, दिव्यात्मा, गुरु, सात्विक पुरुषों का आश्रय लेने का विधान है तो गुरु मंत्र जप, यज्ञ, हवन के लिए भी निर्देश है किन्तु सत्त्वावजय चिकित्सा में तो ‘मन’ को अहितकर विषयों से निवृत्त करने के लिए बताया गया है।
इस बात के वैज्ञानिक शोध भी आ गये हैं कि जिस प्रकार गलत खान-पान से शरीर में टॉक्सिन्स बनते हैं वैसे ही गलत विचारों, मन को अहितकर कार्यों में लगाने से दुर्बल भावनाओं तथा मन में नकारात्मकता, अप्रसन्नता के कारणों की गाँठ बाँधने से भी शरीर में रोग कारक विष एकत्र होता है। हमारे भीतर उत्पन्न प्रत्येक भाव और विचार शरीर की कोशिका में ही रजिस्टर होता है फिर बना हुआ यह संस्कार एक कोशिका से दूसरी कोशिका में परिवर्तित होता है यहीं से हमारे स्वास्थ्य का अंतिम निर्धारण होता है। यदि मन में किसी भी प्रकार की कटुता, गाँठ, असुरक्षा और हीनभावना है तो चाहे आप जितने प्रकार के व्यायाम कर लें या स्वास्थ्यवर्धक कारण अपना लें कुछ नहीं हो सकता। आपकी इम्युनिटी कमजोर होगी ही।
मीडिया स्वराज: सत्त्वावजय चिकित्सा में जन सामान्य को क्या उपाय करना चाहिए?
डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी: इसके लिए आवश्यक है प्राणिमात्र के प्रति प्रेम, यदि कोई अज्ञानी आपका अपराध भी कर दे तो उसके प्रति भी यह समझ कर करुणा का भाव रखें कि यह व्यक्ति अज्ञानी है। यदि वह आपके संपर्क में है तो उसे प्रेम से समझाया जाय तो आपका भी कलुष धुल जाएगा और उसका भी। शांतिपूर्ण ध्यान, समर्पणपूर्वक साधना, मंत्र जप और लोककल्याण भावना अवश्य अपनायें। इससे चित्त की शुद्धि होगी। यदि आप अपने चित्त को शुद्ध मानते हैं तो भी इस मार्ग को अपनायें इससे चित्त की शुद्धता निरन्तर बढ़ती जाएगी, सहज भाव उत्पन्न होगा। इस प्रकार आप आनन्द के शिखर में पहुँचते जायेंगे और स्वास्थ्य में निरन्तर सुधार होगा।
कोरोना की तीसरी लहर से बचाव के लिए हर स्त्री-पुरुष, व्यक्ति को चाहिए कि अपनी आयु, प्रकृति, देश, काल का ध्यान रखते हुये आयुर्वेदिक जीवनशैली अपनाये। कोरोना की तीसरी लहर से बचाने और रोग से आयी कमजोरी को दूर करने में आयुर्वेदिक औषधियों में आरोग्यवर्धिनी वटी, चन्द्रप्रभा वटी, और रसराज सुन्दर या योगरत्नाकर की विधि से निर्मित त्रैलोक्यचिंतामणि रस का सेवन उपयोगी है।
सप्तपर्ण और नाय (एनिकोस्टेमा लिटोरेल) बूटी जो गाँवों में सहज मिल जाती है उसका सेवन स्थानीय वैद्य की सलाह से करने से कोरोना की तीसरी लहर से बचा जा सकता है। इसके अलावा कुटकी, चिरायता, कालमेघ, गिलोय और तुलसी के साथ सेवन भी कोरोना की तीसरी लहर से बचायेगा। जिसका सेवन भी स्थानीय वैद्य के परामर्श से हो। एक चम्मच गोघृत और 2 चुटकी कालीमिर्च चूर्ण का सेवन भी भोजन के पूर्व करने से इस ऋतु में रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ायेगा और कोरोना की तीसरी लहर से बचाव करेगा।
आयुर्वेद का सही तरीके से भरपूर उपयोग कर कोरोना की तीसरी लहर जैसी महामारी से बचा जा सकता है।
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