विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में सरकार की दख़लंदाज़ी का मक़सद क्या है !
इस निर्णय लागू करने में अनेक व्यावहारिक कठिनाइयॉं आयेंगी
उच्च शिक्षा ज्ञानार्जन के केंद्र हैं. इसीलिए विश्वविद्यालयों को अपना पाठ्यक्रम बनाने और परीक्षा लेने की स्वायत्तता होती है. किंतु उत्तर प्रदेश सरकार ने सभी राज्य विश्व विद्यालयों को एक जैसा कोर्स लागू करने का निर्देश दिया है. माना जा रहा है कि सरकार का यह कदम विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता के सिद्धांत के प्रतिकूल है और क़ानून भी इसकी अनुमति नहीं देता .
सभी विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में एक समान पाठ्यक्रम का यह यह निर्देश व्यावहारिक रूप से भी उचित नहीं माना जाता है. आशंका है कि इससे आगे चलकर अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा .
राज्य विश्वविद्यालय पहले से आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं , सरकार वेतन का भी पूरा पैसा नहीं देती . अब सब जगह एक जैसा पाठ्यक्रम लागू करने से विश्वविद्यालयों की स्थिति हाईस्कूल बोर्ड जैसी हो जायेगी .इससे छात्रों और युवाओं के भविष्य पर प्रतिकूल असर पड़ेगा.
इन्हीं सब कारणों से लखनऊ विश्वविद्यालय के शिक्षक समुदाय ने एक समान पाठ्यक्रम का सरकार का निर्देश स्वीकार नहीं किया है. लखनऊ विश्वविद्यालय के अध्यापकों ने नई शिक्षा नीति के अनुरूप अपना नया पाठ्यक्रम तैयार किया है.
छात्रों – युवाओं के भविष्य से जुड़े इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर मीडिया स्वराज ने एक परिचर्चा आयोजित की . इस चर्चा में शामिल हैं लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर राकेश चंद्रा , अवध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति मनोज दीक्षित और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर राम किशोर शास्त्री.
चर्चा में पूर्व बीबीसी संवाददाता राम दत्त त्रिपाठी एवं अमर उजाला के पूर्व सम्पादक कुमार भवेश चंद्र भी शामिल थे