भाजपा ने उत्तराखण्ड को दिये नायाब ज्ञान देने वाले मुख्यमंत्री
भारतीय जनता पार्टी ने उत्तराखंड को अजब – ग़ज़ब ज्ञान देने वाले मुख्यमंत्री दिये . विधानसभा में प्रचंड के बावजूद प्रदेश को स्थिर सरकार नहीं मिली . देहरादून से वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत का विश्लेषण.
हमारे संसदीय लोकतंत्र में केन्द्र और राज्यों की सरकारों का चयन पूरे पांच साल के लिये किया जाता है। चूंकि हमारी सरकारें विधायिका से ही चुनी जाती हैं और वे विधायिका के प्रति ही जवाबदेह होती हैं इसलिये उनका कार्यकाल भी पांच साल ही होना स्वाभाविक ही है। मगर उत्तराखण्ड जैसे कई ऐसे राज्य हैं जहां किसी सरकार के लिये पांच साल की अवधि पूरी करना लगभग नामुमकिन हो गया है। ऐसी स्थिति में जब सरकारों का अपना ही भविष्य अनिश्चित और अन्धकारमय हो तो ऐसी चलायमान, अस्थिर, भयाक्रांत सरकारों से सुशासन और प्रदेश का भविष्य संवारने की उम्मीद कैसे की जा सकती है। खासकर ऐसे मुख्यमंत्रियों से आप क्या उम्मीद करेंगे जो कि मनुष्यों के लिये कम और कोरोना वायरस के जीवन के लिये ज्यादा चिन्तित हों। ऐसे मुख्यमंत्रियों से आप क्या उम्मीद करेंगे जो मानते हों कि धरती पर गाय अकेला पशु है जो आॅक्सीजन ही सांस में ग्रहण करता है और आॅक्सीजन ही सांस में छोउ़ता है।
9 नवम्बर 2000 को अस्तित्व में आने के बाद 21 सालों में उत्तराखण्ड में नित्यानन्द स्वामी से लेकर नवीनतम् पुष्कर सिंह धामी तक 11 मुख्यमंत्री बन गये हैं। मजेदार बात तो यह है कि उत्तराखण्ड में सरकारों को ख़तरा विपक्ष से नहीं बल्कि सत्ताधारी दलों के अंदर से उत्पन्न हुआ। राज्य में भुवनचन्द्र खण्डूड़ी दो बार मुख्यमंत्री बने जबकि हरीश रावत एक बार शपथ लेने के बाद 2 बार आये-गये हुये। जबकि समकालीन राज्य छत्तीसगढ़ में इन 21 सालों में केवल दो नेताओं ने प्रदेश की बागडोर संभाली है।
सवाल उठना स्वाभाविक ही है कि जब शासन ही स्थिर न हो तो उसका प्रशासन भी कैसे सुचारू रूप से चलेगा? इस साल राज्य में बजट त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने बनाया जिसे खर्च करने की जिम्मेदारी तीरथ रावत को सौंपी गयी लेकिन जब तक वह प्रदेश के विकास की जरूरतें समझते तब तक उन्हें हटा कर शतरंज की गोटी की तरह पुश्कर धामी को मोर्चे पर लगा दिया।
राज्य गठन के साथ ही पड़ी अस्थिरता की बुनियाद
दरअसल उत्तराखण्ड की राजनीति की जमीन पर अस्थिरता के बीज उसी दिन पड़ गये थे जबकि नित्यानन्द स्वामी ने पहली नवम्बर 2000 की पहली बेला पर नये राज्य की बागडोर संभालने के बाद 10 नवम्बर 2000 को अपने मंत्रिमण्डल का गठन किया था। उस दिन भागत सिंह कोश्यारी, नारायण रामदास और रमेश पोखरियाल निशंक जैसे वरिष्ठ नेताओं ने शपथग्रहण का वहिष्कार कर दिया था। हालांकि उन तीनों के लिये अलग से 11 नवम्बर को दूसरी बार शपथ ग्रहण समारोह आयोजित करना पड़ा। इन तीन नेताओं के अलावा टिहरी के विधायक लाखीराम जोशी भी मंत्रिमण्डल में उन्हें शामिल न किये जाने से मुख्यमंत्री का खुल कर विरोध कर रहे थे। यह असन्तोष नित्यानन्द स्वामी को पदच्युत कराने के बाद ही शांत हुआ था। हालांकि स्वामी ने जब 29 अक्टूबर 2001 को विधानसभा में जब अपने इस्तीफे की घोषणा की तो उन्होंने इस तख्ता पलट के लिये पार्टी नेताओं को परोक्ष तौर पर और शराब माफिया को अवश्य ही जिम्मेदार बताया। नित्यानन्द स्वामी केवल 354 दिन ही कुर्सी पर टिक पाये। उत्तराखण्ड में एक नेता दूसरे का नेता नहीं मान सकता और इसका अनुमान उत्तराखण्ड आन्दोलन में तब लगने लगा था जब नरसिम्हा राव ने आन्दोलनकारी नेताओं को बातचीत के लिये बुलाया तो वहां 65 संगठनों के नेता पहुंच गये।
हिमाचल में 50 साल में 6 मुख्यमंत्री
सन् 1971 से लेकर 2021 तक के 50 सालों में उत्तराखण्ड के पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश में केवल 6 मुख्यमंत्रियों का शासन रहा। इनमें डा0 यशवन्तसिंह परमार, ठाकुर राम लाल, शान्ता कुमार एवं प्रेम कुमार धूमल दो-दो बार तथा वीरभद्र सिंह 5 बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे। वर्तमान में जयराम ठाकुर हिमाचल के 13 वें मुख्यमंत्री अवश्य हैं, मगर वह यह पद सम्भालने वाले केवल छठे नेता हैं। जबकि उत्तराखण्ड में एक ही विधानसभा के पांच साल के कार्यकाल में तीन-तीन मुख्यमंत्रियों की सरकारें आ गयीं।
नारायण दत्त तिवारी के अलावा कोई भी मुख्यमंत्री अब तक पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। राष्ट्रीय दलों द्वारा निर्वाचित विधायकों के संवैधानिक अधिकारों का हनन कर शतरंज के मोहरों की तरह मुख्यमंत्री उतारे जा रहे हैं। राज्य में राजनीतिक अवसरवाद, पद लोलुपता तथा गिरगिट की तरह राजनीतिक सिद्धान्त और प्रतिबद्धता बदले जाने के कारण देवभूमि के नाम से भी पहचाने जाने वाला उत्तराखण्ड राजनीतिक अस्थिरता के दलदल में धंसता चला गया।
जैसे तैसे ही कर पाये तिवारी पांच साल
राज्य विधानसभा के पहले चुनाव के बाद देश के वरिष्ठतम् नेता नारायण दत्त तिवारी ने जब पहली निर्वाचित सरकार की कमान संभाली तो तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हरीश रावत ने उनको चैन से जीने नहीं दिया। उनके समर्थकों का तर्क था कि उत्तरांचल में पूरे 12 साल के बनवास के बाद कांग्रेस ने हरीश रावत के नेतृत्व में चुनाव जीता है और और उस जीत का फल भोगने के लिये दिल्ली से नारायण दत्त तिवारी को भेज दिया गया। हालांकि तिवारी ने ही इस प्रदेश के विकास की नींव रखी। उनके बाद कोई मुख्यमंत्री पांच साल तक नहीं टिक सका।
जनेच्छा पर थोपी गयी आला कमान की इच्छा
2007 में जब भगत सिंह कोश्यारी के नेतृत्व में भाजपा सत्ता में आयी तो ऐन वक्त पर पार्टी आला कमान ने नव निर्वाचित विधायकों के बहुमत के विपरीत पौड़ी गढ़वाल के सांसद एवं केन्द्रीय मंत्री भुवन चन्द्र खण्डूड़ी को विधायक दल का नेता चुनवा दिया। जबकि 34 सदस्यीय भाजपा विधायक दल में कम से कम 22 विधायक कोश्यारी के पक्ष में 7 रमेश पोखरियाल निशंक के तथा 4 विधायक खण्डूड़ी के पक्ष में माने जा रहे थे। भाजपा नेतृत्व की इस जोर जबरदस्ती का खामियाजा कोश्यारी समर्थकों के असन्तोष के कारण बना जो कि खण्डूड़ी को भुगतना पड़ा और अन्ततः उनको 26 जून 2009 को पद छोड़ना पड़ा। राज्य में 27 जून को रमेश पोखरियाल निशंक की ताजपोशी हुयी। निशंक को खण्डूड़ी और कोश्यारी गुटों का विरोध झेलना पड़ा और अन्ततः उनकी भी 2 साल 75 दिन के बाद विदाई हो गयी और भुवन चन्द्र खण्डूड़ी की 11 सितम्बर 2011 पुनः ताजपोशी हो गयी। सन् 2012 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के पक्ष में गया तो मुख्यमंत्री की कुर्सी विजय बहुगुणा के हाथ चली गयी और हरीश रावत हाथ मलते रह गये। हरीश रावत के लिये यह दूसरा झटका था इसलिये उनके समर्थक चैन से नहीं बैठ सके और अन्ततः 31 जनवरी 2014 को 1 साल 324 दिन के शासन के बाद बहुगुणा भी चलते बने। विजय बहुगुणा केवल 690 दिन ही कुर्सी थाम सके। बहुगुणा के बाद हरीश रावत मुख्यमंत्री बन लेकिन विजय बहुगुणा गुट भी कहा चैन से बैठने वाला था। इस गुट के 9 विधायकों ने 18 मार्च 2016 को बजट पास होते समय विद्रोह कर हरीश रावत सरकार को संकट में डाल दिया। ऐसा राजनीतिक संकट भारत के संसदीय इतिहास में किसी अन्य के साथ नहीं हुआ था।
जन प्रतिनिधित्व कानून को लेकर भाजपा की गफलत
राज्य विधानसभा के 2017 में हुये चुनाव में भाजपा को 70 में से 57 सीटों पर असाधारण जीत मिली मगर इतने प्रचण्ड बहुमत के बाद भी भाजपा प्रदेश को स्थिर सरकार नहीं दे पायी। भाजपा ने त्रिवेन्द्र को चार साल के कार्यकाल का जश्न मनाने से ठीक एक सप्ताह पहले उनको चलता कर दिया। उनकी जगर 10 मार्च 2021 को तीरथ सिंह रावत को कुर्सी मिली तो संवैधानिक संकट से बचने के लिये उन्हें भी ठीक 115 दिन बाद हटा दिया गया। मजेदार बात यह है कि राज्य में किसी भी सरकार के लिये विपक्ष नहीं बल्कि सत्ताधारी दल ही जिम्म्ेदार रहा है। 2 जुलाइ 2021 को तीरथ सिंह रावत का राजभवन जा कर इस्तीफा देना ही था कि देहरादून की डिफेंस कालोनी आतिशबाजी से गूंज उठी। पटाखों के ये धमाके कहीं और से नहीं बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के आवास से गूंज रहे थे। वास्तव में यहां जिनको कुर्सी नहीं मिली वे अपने ही दल के लोगों की कुर्सियां हिलाने में जुटे रहे। तीरथसिंह रावत की लंका तो पार्टी नेतृत्व ने समय से उपचुनाव न करा कर संवैधानिक संकट के बहाने स्वयं ही ढहा दी। कैसे हो सकता है कि भाजपा नेतृत्च का संविधान के अनुच्छेद 164 (4) और जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 151 ए की जानकारी न हो । अगर जानकारी नहीं थी तो निर्वाचन आयोग की विज्ञप्तियां जरूर पढ़ ली होती। लेकिन मामला ममता बनर्जी का भी था।
मुख्यमंत्रियों के रूप में उत्तराखण्ड को नायाब तोहफे मिले
वर्ष 2017 में जब 57 विधायकों के प्रचण्ड बहुमत के साथ भाजपा सत्ता में आयी तो उम्मीद बंधी कि राज्य को इस बार अवश्य ही पांच साल तक चलने वाली सरकार मिलेगी, लेकिन राज्यवासियों का वह सपना भी चकनाचूर हो गया। हाइकमान द्वारा थोपे गये मुख्यमंत्री ऊलजलूल बयानों से उत्तराखण्ड की जगहंसाई करते रहे। त्रिवेन्द्र रावत ने कुर्सी संभालते ही अनर्गल ज्ञान बांटना शुरू कर दिया। उन्होंने सबसे पहले जगहंसाई कराई जब ये कह दिया कि धरती पर गाय अकेला पशु है जो सांस में आक्सीजन ही छोड़ता है। यही नहीं उनकी नजरों में भारत संसार क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे बड़ा देश होता था। हद तो तब हो गयी जब उन्होंने कह दिया कि कोरोना भी एक जीव है और उसे भी आदमी की तरह जीने का पूरा अधिकार है। हम अनावश्यक उसके पीछे पड़े हैं और वह जान बचाने के लिये वेश बदल रहा है।
त्रिवेन्द्र के उत्तराधिकारी तीरथ भी ज्ञान बांटने में कहां पीछे रहने वाले थे। उन्होंने नया ज्ञान यह दिया कि भारत दो सौ सालों तक अमेरिका का गुलाम रहा। यही नहीं उन्होंने कुंभ के दौरान सनातन धर्मावलम्बियों को आश्वस्त किया कि गंगा नहाने से कोरोना वायरस भी समाप्त हो जाता है। अब पुष्कर धामी के भी रोचक वीडियो वायरल हो रहे हैं।