लॉक डाउन मज़दूरों के लिए बना काल
औरंगाबाद में दर्दनाक हादसा
भोपाल। कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए जिस लॉकडाउन का सहारा लिया गया था वह अब मजदूरों के लिए काल साबित होता जा रहा है। लॉकडाउन के चलते शहरों में रोजगार छीनने के बाद पाई-पाई के लिए मोहताज मजदूर जो अब अपने घर वापस लौट रहे है उनके असमय काल के गाल में समाने की तस्वीरें और खबरें लगातार सामने आ रही है।
शुक्रवार सुबह महाराष्ट्र के औरगांबाद से एक ऐसी ही दर्दनाक खबर सामने आई, जहां 16 मजदूर मालगाड़ी के चपेट में आकर अपनी जान गवां बैठे। मरने वाले सभी मजूदर मध्यप्रदेश से शहडोल और उसके आस पास के रहने वाले बताए जा रहे है। हादसे के शिकार हुए सभी मजदूर लॉकडाउन के चलते पैदल ही वापस लौट रहे थे। पैदल ही लौट रहे मजदूर अल सुबह थक हार कर जब आराम करने के लिए ट्रेन की पटरियों पर लेट गए थे तभी मालगाड़ी इनको रौंदते हुए आगे निकल गई। हादसा इतना भीषण था कि मजदूरों के शरीर के परखच्चे 200 मीटर तक उड़ गए,जिसके चलते अब उनकी पहचान भी नहीं हो पा रही है।
किस्मत के हारे मजबूर मजदूर शायद यह सोच के पटरियों पर सोए थे कि लॉकडाउन के चलते कोई ट्रेन नहीं चल रही है लेकिन उनको क्या पता था कि वह जिस थकान को मिटाने के लिए हल्की नींद लेने जा रहे है वह अब इस नींद से कभी नहीं उठ पाएंगे।
अभी चार दिन पहले ही उत्तरप्रदेश के मथुरा में मध्यप्रदेश के छतरपुर के 6 मजदूरों को बेकाबू ट्रक ने रौंद डाला था। यह सभी मजदूर भी वापस मध्यप्रदेश लौट रहे थे तभी मौत के मुंह में समा गए। इतना ही नहीं देश में लॉकडाउन के बाद जिस पहले प्रवासी मजदूर की मौत की खबर सामने आई थी वह भी मध्यप्रदेश से ही जुड़ा था। लॉकडाउन के तुरंत बाद 27 मार्च को दिल्ली से मध्यप्रदेश के मुरैना के लिए पैदल निकले 38 साल के रणवीर की आगरा में मौत हो गई थी। लगातार पैदल चलने के कारण रणवीर के सीने में तेज दुर्द हुआ और वह कुछ ही देर में अपनी प्राण गंवा बैठे।
लॉकडाउन के चलते शहरों में रोजगार छीनने के बाद मजदूरों के पास अपने घर लौटने के सिवाए कोई विकल्प भी शेष नहीं बचा है। 25 मार्च को हुए लॉकडाउन के बाद अब तक अपने घरों की ओर लौटने की जद्दोजहद में सैकड़ों मजदूर भुखमरी, बीमारी और हादसों में अपनी जान गंवा बैठे है। इसके साथ इन असहाय मजदूरों को पुलिस और प्रशासन की बर्बरता का शिकार भी होना पड़ा है। उत्तर प्रदेश के बरेली की वह तस्वीर आज लोगों के जेहन में ताजा है जहां मजूदरों को एक साथ बैठाकर उन पर केमिकल का छिड़काव कर दिया गया।
मजूदरों के लगातार हादसों के शिकार होने के बाद मन में यह सवाल भी उठता है कि आखिर क्यों ये प्रवासी मजदूर अपने घर की ओर जाने के लिए पैदल ही निकल पड़ते है जबकि उनको अच्छी तरह ये बात मालूम है कि राज्सों में न तो खाना मिलेगा और न ही कई साधन। सैकड़ों किलोमीटर का लंबा समय उनको पैदल ही पार करना होगा।
इस सवालों को जवाब तलाशने के लिए हमको खुद उनकी जगह अपने को रखकर सोचना पड़ेगा। मजदूर आज मजबूर है, मजदूर अपनी मेहनत के बल पर जिन शहरों को संवारता था उन्होंने आज उसको ठुकरा दिया है और वह अपने घर वापस लौटने के लिए मजबूर हो गया है।
कृपया सुनें चश्मदीद का बयान : https://www.youtube.com/watch?v=FgrdPbqaDt4
मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार भले ही अब तक एक लाख से अधिक मजदूरों की वापसी का दावा कर रही है लेकिन जमीनी हकीकत से इससे बहुत दूर है। अब भी हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूर देश के विभिन्न राज्यों में फंसे हुए है।
औरंगाबाद हादसे के प्रत्यक्षदर्शी और प्रवासी मजदूर धीरेंद्र का आरोप है कि उन्होंने एक हफ्ते पहले उमरिया में पास के लिए अप्लाई किया था लेकिन अब तक उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। मीडिया से बात में उसने कहा कि लॉकडाउन में रोजगार छीनने के बाद वह अपने सथियों के साथ गांव जा रहे थे। शाम सात बजे निकलने के बाद जब वह पैदल अपने घरों के लिए निकले तो उनके कुछ साथी आराम करने के लिए ट्रेन की पटरी पर बैठ गए तभी उनको झपकी आ गई और मालगाड़ी उनको रौंदते हुए निकल गई।
औरंगाबाद हादसे के बाद सरकार विपक्ष के निशाने पर आ गई है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने शिवराज सरकार के दावे पर सवाल उठा दिया है। दिग्विजय सिंह ने ट्वीट कर लिखा कि मध्यप्रदेश के 14 प्रवासी मजदूरों को मालगाड़ी ने महाराष्ट्र में कुचल दिया। मध्यप्रदेश सरकार की भार भरकम प्रवासी मजदूरों के हित की योजना का क्या हुआ। इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच होनी चाहि। मध्य प्रदेश सरकार ने क्या इन प्रवासी मजदूरों का पंजीयन किया था। यदि किया था तो उन्हें वापस लाने का किया इंतजाम किया गया।