कोरोना त्रासदी : समूचे तंत्र की सर्जरी की आवश्यकता
हाल की वैश्विक कोरोना त्रासदी में भारत की स्वास्थ्य सेवाओं की वास्तविकता से यह स्पष्ट हो चुका है कि, देश में स्वास्थ्य – सुविधाओं का ढांचा अत्यधिक कमजोर है .अतः देश के नीति निर्धारकों को देश के भावी विकास और उसमें आने वाली मुख्य बाधाओं के रूप में स्वास्थ्य समस्या को देखना चाहिए . एक अत्यंत सुदृढ़ सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत बनाए जाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए.
नोबेल पुरस्कार विजेता एंगस टीडन ने वर्ष 2013 में लिखी पुस्तक ” महान पलायन : स्वास्थ्य , धन और असमानता ” में 19वीं शताब्दी की कोलेरा महामारी और बीसवीं शताब्दी की फ्लू महामारी का विश्लेषण किया है , और यह प्रतिपादित प्रतिपादित किया है कि, इन महामारियों को अधिसंख्य यूरोपीय देशों ने आर्थिक विकास के लिए खतरे के रूप में देखा था. और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को विकसित करने पर निवेश प्रारंभ किया ,जिसके पश्चात के दशकों में यूरोप में तेजी से बढ़ी जीवन – प्रत्याशा और आर्थिक वृद्धि मजबूत स्वास्थ्य सेवाओं और स्वस्थ जनसंख्या का सुपरिणाम है .
शिक्षा – स्वास्थ्य की गुणवत्ता और आर्थिक विकास
अर्थशास्त्र के बुनियादी सिद्धांतों में यह स्पष्ट रूप से प्रतिपादित है कि , शिक्षा और स्वास्थ्य में किया गया निवेश आर्थिक विकास के लिए सकारात्मक परिणाम उत्पन्न करता है . लेकिन , भारत में उच्च शिक्षा और स्वास्थ्य पर राष्ट्रीय आय का दो प्रतिशत ही व्यय किया जाता है . सरकारी स्कूलों और शासकीय अस्पतालों के स्थान पर निजी शिक्षा और निजी स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा दिया जाना विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की दीर्घकालीन नीतियों के भारत सरकार पर दबाव का परिणाम है. इसके दुष्परिणाम आम जनता भोग रही है. आर्थिक विकास पर स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रभाव अत्यंत दीर्घ कालीन होते हैं. स्वास्थ्य पर निवेश के संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय आकलन है कि, स्वास्थ्य पर खर्च किया गया निवेश 10 से 20 गुना रिटर्न देता है अर्थात ₹ 1 व्यय करने पर उससे 20 गुना अधिक सार्थक परिणाम प्राप्त होते हैं . लगभग इस प्रकार के ही निष्कर्ष शिक्षा पर किए गए विनियोग और उनके दीर्घकालीन लाभों के हैं. जिनसे रोजगार, उत्पादन और राष्ट्रीय आय में वृद्धि होकर आर्थिक विकास का उच्च स्तर प्राप्त होता है . इसके बावजूद , वर्ष 2015-16 तक देश में स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च मात्र 1 .० से 1.8% तक था. स्वास्थ एवम् औसत आयु : – उपरोक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि आर्थिक विकास के स्तर और वैज्ञानिक एवं स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति में सुधार का परिणाम यह हुआ है कि , पिछले 30 वर्षों में भारत में औसत आयु में 10 वर्ष की वृद्धि हुई है जो कि 59.6 वर्ष से बढ़कर 70 वर्ष हो गई है.
रोजगार ,स्वास्थ एवं जीवन स्तर
आर्थिक विकास समुचित योजनाओं एवं उनके ईमानदार क्रियान्वयन का परिणाम होता है. जादुई छड़ी के माध्यम से प्राप्त नहीं होता है. आर्थिक विकास दूरदर्शिता पूर्ण नीतियों , संसाधनों के समुचित उपयोग , रोजगार एवं उत्पादकता में वृद्धि स्वास्थ्य एवं शिक्षा तथा अधिसंरचनात्मक सुविधाओं के विकास के द्वारा प्राप्त किया जाता है. लेकिन , आजादी के 74 वर्षों के बाद भी देश की अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति दुर्भाग्य जनक है. आम आदमी का जीवन केवल उसके परिश्रम के द्वारा संचालित हो रहा है . शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति बदतर है.
आर्थिक विकास के पैरामीटर्स निराशाजनक
देश के समूचे आर्थिक विकास और उनके वैश्विक स्तर पर तुलनात्मक अध्ययन से अर्थव्यवस्था की वास्तविक तस्वीर स्पष्ट होती है. लेकिन, विगत वर्षों में भारत के संदर्भ में इन अत्यंत महत्वपूर्ण पैरामीटर्स की स्थिति शोचनीय रही है. वर्ष 2018 में विश्व बैंक द्वारा 151 देशों के मानव पूंजी सूचकांक में भारत का स्थान 115 वां था . इसी प्रकार ही , वर्ष 2019 में ” संयुक्त राष्ट्र सस्टेनेबल विकास रिपोर्ट ” में 156 देशों में भारत का स्थान 140 वें क्रम पर था , एवं वर्ष 2020 के ” हैप्पीनेस इंडेक्स ” भी में 156 देशों में भारत का स्थान 140 वा था . वर्ष 2020 के ” वर्ल्ड हंगर इंडेक्स ” में भारत का स्थान 94 वा है , जबकि , पाकिस्तान 88 और और बांग्लादेश 75 वें के स्थान पर हैं . इस रिपोर्ट में भारत को ” भुखमरी की गंभीर श्रेणी ” में रखा गया है . स्थिति यह है कि, इस से 1 वर्ष पूर्व की तुलना में भारत की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो सका . निष्कर्ष यह बताते हैं कि भारत की 14 प्रतिशत जनसंख्या कुपोषित है.
रोजगार एवम जीवन स्तर
देश में रोजगार के अवसरों में निरंतर कमी होना चिंतनीय है. बेरोजगारी दर का 5% से ऊपर स्थित होना दर्शाता है कि, रोजगार वृद्धि के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं हुए हैं . जिस देश में युवा जनसंख्या का 50 % से अधिक हों , वहां बेरोजगारी की यह स्थिति चिंताजनक है . सहज रूप से इसका संबंध जनसंख्या के आर्थिक स्तर और जीवन स्तर पर होना स्वाभाविक है. देश में प्रत्येक नागरिक के लिए स्वास्थ्य – बीमा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं की गारंटी अथवा मौलिक अधिकार नहीं है . फिर , जब शासकीय स्वास्थ सुविधाओ की स्थिति निराशाजनक हो ,तब निजी स्वास्थ्य सुविधाओ तक कमजोर आर्थिक स्थिति के आम नागरिक की पहुंच संभव नहीं है.
श्रम शक्ति का ढांचा
देश की श्रम – शक्ति का 48.7 करोड़ का 94 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र में है , और असंगठित क्षेत्र में वेतन और दिहाड़ी के निम्न स्तर के फल स्वरुप जीवन स्तर का स्वरूप संतोषजनक नहीं है . वेतन से गुणवत्ता पूर्ण जीवन का लाभ मह ज 15 % जनसंख्या को प्राप्त होता है.
वर्तमान त्रासदी से सबक
देश के अत्यंत कमजोर शासकीय स्वास्थ ढांचे पर प्रथम बार इतनी तीव्रता के साथ ध्यान आकर्षित हुआ है. रोजगार ,आय ,जीवन स्तर , शिक्षा एवं स्वास्थ्य में निवेश के द्वारा इनकी गुणवत्तापूर्ण स्थिति विकास को उच्च बनाने के लिए अनिवार्य पूर्व शर्त है. आर्थिक विकास इन तत्वों का कार्य – कारण परिणाम होता है. वर्तमान त्रासदी समूचे तंत्र की सर्जरी की आवश्यकता प्रतिपादित करती है. उत्तम ,सुलभ और अनिवार्य स्वास्थ सुविधा के अभाव में ” सबका साथ ,सबका विकास” दिवा स्वप्न है. ठोस ,वास्तविक और सबका विकास आर्थिक विकास के समस्त पक्षों के समन्वित विकास से ही प्राप्त हो सकेगा .
( वैश्विक कोरोना त्रासदी : भारत पर आर्थिक एवं सामाजिक प्रभाव” , जनवरी 2021 ) में लेखक की प्रकाशित किताब के नवम अध्याय ” कोरो ना के दुष्प्रभाव: भारत के लिए चेतावनी और सुधार की आवश्यकताएं ” ( पृष्ठ 56 -62 के चुने हुए अंश )