आयुर्वेद की उपेक्षा ने उत्तर भारत को कोविड से तबाह कर दिया

अविलम्ब आयुर्वेद को महामारी नियंत्रण,चिकित्सा में शामिल किया जाना चाहिए।

डा आर अचल
डा आर अचल

कोरोना काविड के शुरुआती दौर में ही यह स्पष्ट हो गया था कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान मे इस महामारी की कोई चिकित्सा नहीं है।इसलिए दैहिक दूरी, मास्क, सेनेटाईजर, पीपीई किट, लाकडाउन जैसे गैर चिकित्सकीय उपाय निकाले गये।इसके बाद चिकित्सा प्रबंधन में अनेक अनुमानित दवाओं के प्रयोग किये गये,आज भी किये जा रहे है।रोज प्रोटोकाल बदलता रहा है। इस उहापोह के बीच चीन,ताईवान, वियतनाम,जापान,कोरिया,सूडान,हंगरी,मेडागास्कर ने अपनी परम्परागत चिकित्सा का  प्रयोग कर कोविड नियंत्रण करने का प्रयास करते रहे,बहुत हद तक सफल भी रहे खेद जनक रूप से भारत इस प्रयोग में पिछड़ गया ।जिसके परिणाम स्वरूप कोरोना से तबाह होने की श्रेणी में शामिल हो गया । भारत में भी केरल,तमिलनाडु,महाराष्ट्र,छत्तीसगढ़ ने आयुर्वेद,यूनानी,होम्योपैथी,सिद्ध के संसाधनो का उपयोग कर अपने राज्यो में मृत्युदर कम करने में सफलता प्राप्त की है।

भारत ने शुरुआती दौर में पूर्ण रूपेण वैश्विक प्रोटोकाल का अनुपालन करते हुए,आयुर्वेद आदि सभी प्राचीन चिकित्सा विधाओं को महामारी नियंत्रण प्रक्रिया से बाहर रखा गया ।स्वास्थ्य मंत्री के अनुसार आयुष विधाओं की कोई भूमिका नही थी,परन्तु कुछ एक्टिवस्टो के प्रयास के पिछले साल अप्रैल में सेल्फ केयर के अन्तर्गत आयुष काढ़ा,हल्दी,दूध,च्यवनप्रास आदि को इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में जारी किया गया ।चिकित्सा प्रक्रिया से इस पूरे तंत्र को अलग रखा गया।

सरकारी सेवा में नियुक्त आयुषचिकित्सको को एलोपैथी चिकित्सा व्यवस्था में सहायक के रूप मे रखा गया।उनसे कागजी आँकड़े इकठ्ठा करने,टेम्प्रेचर देखने आदि काम लिया गया,इस साल दूसरी लहर में भी ऐसा ही हो रहा है। जबकि भारत के पास एक समृद्ध प्राचीन चिकित्सा विज्ञान व प्रयाप्त संख्या में उससे जुड़ी संस्थाओ- अस्पतालों का नेटवर्क सहित  मानव संसाधन उपलब्ध है। आयुष मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार पूरे देश में 3986 अस्पताल (आयुर्वेद 3186),27199 डिस्पेंसरीज (आयुर्वेद 17102),914 कालेज (आयुर्वेद 393) पंजीकृत चिकित्सक 1387539 (आयुर्वेद 677866)है।

आयुर्वेदिक प्रोटोकाल

दूसरी लहर के भयावह होने पर जब पुनःकुछ एक्टिविस्टो में बात उठायी तो केन्द्रीय आयुष मंत्रालय द्वारा एक आयुर्वेदिक प्रोटोकाल जारी किया गया तथा केन्द्र सरकार के अधीन संस्थाओं अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान दिल्ली,चौधरी ब्रह्मदत्त चरक संस्थान,आयुर्वेदिक,यूनानी तिब्बिया कालेज दिल्ली, आयुर्वेद विश्वविद्यालय जामनगर,एवं नेशनल इस्टिट्यूट आफ आयुर्वेद जयपुर में माइल्ड,माडरेट कोविड रोगीयों के चिकित्सा शुरु की गयी,परन्तु राजकीय संस्थाओं मे तालाबंदी बनी रही।यहाँ खेदजनक रूप से उत्तर प्रदेश जैसे भारी जनसंख्या वाले प्रदेश में केन्द्र सरकार के ही अधीन बीएचयू के आयुर्वेद संकाय एवं अलीगढ़ के यूनानी संकाय मे ताला लगा रहा,फैकल्टी मेम्बर्स व चिकित्सक एलोपैथिक कोविड सेन्टर में लगा दिये गये । आयुषमंत्रालय के प्रोटोकाल जारी करने के बाद, नीजी चिकित्सको ने कोविड संक्रमितो की चिकित्सा करने का साहस कर बहुतों जान बचायी है जिन्हें पिछले साल यह अधिकार भी नहीं था। ।

यहाँ एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि स्वास्थ्य या महामारी नियंत्रण का मामला राज्य सरकारो के अधीन होता है।जिसका लाभ उठाते हुए केरल,तमिलनाडु,आन्ध्र,तेलंगाना,छत्तीसगढ़,महाराष्ट्र सरकार ने पिछले ही साल आयुष चिकित्सा तंत्र को महामारी नियंत्रण में शामिल कर लिया। बचाव,माइल्ड,माडरेट संक्रमित रोगियों की चिकित्सा के लिए आयुर्वेद,सिद्धा के कालेज अस्पतालो,राजकीय आयुष अस्पतालो,डिस्पेंसरियों,के नीजी आयुष चिकित्सको को भी अधिकृत कर तात्कालिक प्रभावकारी रसौषधियों से युक्त राज्य स्तरीय प्रोटोकाल जारी किया गया।  जिसका परिणाम यह हुआ कि बड़े एलोपैथिक अस्पतालों का बोझ खत्म हो गया,बहुत कम संख्या में मरीजो को आक्सीजन की जरूरत पड़ी,जिससे यहाँ संक्रमितो की अधिक संख्या के बावजूद मृत्युदर कम हो गयी।यहाँ तेलंगाना सरकार सबसे आगे निकलते हुए फंगल इन्फेक्शन की चिकित्सा के लिए भी आयुर्वेद चिकित्सा को अधिकृत कर दिया है,जिसका उत्साह जनक परिणाम प्राप्त हो रहे है।

गाँवों की हालत तो लावारिस बनी रही

इसके विपरीत उत्तर भारत के राज्यो खासकर उत्तर प्रदेश-विहार में अन्तर्राष्ट्रीय प्रोटोकाल के आधार पर चिकित्सा की जाती रही,आक्सीजन व दवाओं के लिए अफरा तफरी का महौल बना रहा ।नदियों मे लाशे तैरती रही,रेत में कफन उड़ते रहे है। गाँवो की हालत तो लावारिस बनी रही,जहाँ के संक्रमितो और मरने वालो का कोई आंकड़ा ही नही है,जबकि इस वीभत्स हालात से बचने में आयुर्वेद की बड़ी भूमिका हो सकती थी। आयुर्वेद के इन्फ्रास्टक्चर की दृष्टि से देखे तो केवल उत्तर प्रदेश मे  7 राजकीय आयुर्वेद कालेज जिसमे 950 बेड,2114 आयुर्वेद अस्पतालों के 10597 बेड है,जिसमें 58 नीजी आयुर्वेद कालेजो के अस्पतालो के लगभग 10 हजार बेड है।लाखों की संख्या में आयुर्वेद चिकित्सक जिसमें एक बड़ी संख्या मे आधुनिक चिकित्सलयों में संविदा पर नियुक्त चिकित्सक एलौपैथिक अस्पतालों में सहायक की भूमिका ने लगे हुए है। उत्तर प्रदेश में राजकीय औषधालयो द्वारा केवल आयुष काढ़ा आदि बाँटने का कार्य दिया गया। दक्षिण

भारतीय राज्यो की तरह यदि यहाँ भी कोविड नियंत्रण में आयुर्वेद को शामिल किया गया होता निश्चित ही आक्सीजन  व बेड के हाहाकार एवं नदियों में तैरते शवो के दारुण दृश्य से बचा जा सकता था । इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि केन्द्रीय आयुष मंत्रालय द्वारा प्रोटोकाल जारी होने के बाद नीजी प्रेक्टिश करने वाले चिकित्सको ने हजारो लोगो की जान बचायी है। अनेक चिकित्सको ने निःशुल्क टेली मेडिसिन द्वारा भी संक्रमित रोगियों की सहायता कर रहे है।जिसके परिणाम को टेलीमेडिकेशन सुविधा के स्वस्थ हुए इंदौर के एक रोगी के अभिभावक के ह्वाटएप संदेश को देखा जा सकता है।

रोगिनी के पति खण्डेवाल लिखते है-“17 तारीख को मेरी वाइफ को बुखार आया और खाँसी शुरू हो गई चूंकि वो 5 माह के गर्भ से है इसीलिए हम थोड़े ज्यादा चिंतित हो गए,जनरल पैरासिटामोल देने से हल्का आराम हुआ । जाँच करने के बाद कोविड पाजिटिव आया,सीआरपी 30 तथा आक्सीजन लेबल 70 हो गया ।इसी तरह से 24 तारीख तक स्तिथि बदतर होती चली गई,सीआरपी 86 चला गया,अपने गायनेकोलाजिस्ट की राय पर हमे एडमिट करना पड़ा ।

26 तारीख तक जब आराम नही लगा तो मैं हताश हुआ,परन्तु एक मित्र से डा.अचल सर का नम्बर मिला मै तत्काल फोन किया,उन्होंने एक दिल्ली केआयुर्वेदिक स्त्री रोग विशेषज्ञ से कनेक्ट कराया ।जिनके परामर्श से आयुर्वेदिक दवाइया 26 की रात को शुरू हुई और 27 को चमत्कार हो गया,सीआरपी घट के 52 और सांस लेने में होने वाली तकलीफ में भी आराम हुआ,दिनोदिन फायदा होता गया और 29 तारीख को डॉक्टर ने अस्पताल से ये कहते हुए छुट्टी दे दी की सारे पैरामीटर्स कंट्रोल में है..अब आप घर जा सकते है…आयुर्वेद न होता तो आज स्तिथि कुछ और होती..अचल सर एवं मैडम का आजीवन आभारी रहूँगा ।”

इस तरह मेसेज आयुर्वेद चिकित्सकों के लिए आम हो गये है,रोज आते रहते है।

इसे देखते हुए अब भी समय है,अविलम्ब आयुर्वेद को महामारी नियंत्रण,चिकित्सा में शामिल किया जाना चाहिए।

 डॉ. आर अचल,

संपादक-ईस्टर्न साइंटिस्ट जर्नल एवं

सदस्य आयोजन समिति-वर्ल्ड आयुर्वेद कांग्रेस

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