टीकाकरण की धीमी प्रक्रिया से संकट में भारत

वैक्सीन निर्यात की नीति अदूदर्शिता पूर्ण

                                       –                                               –                                     

डा अमिताभ शुक्ल
डॉ. अमिताभ शुक्ल

वर्तमान  परिदृश्य में संक्रमण के विस्तार एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में देश के नागरिकों का जीवन संकट में है. कोरोना संक्रमण की व्यापकता एवं उससे जीवन को होने वाली क्षति चिंतनीय है. 

इस तथ्य के अतिरिक्त कि ,  संक्रमण की दूसरी लहर की चुनौती से निपटने के लिए विगत एक  वर्ष में प्रभावशाली एवं आवश्यक उपाय अपनाने में हुई कोताही भी वर्तमान संकट के लिए उत्तरदाई है.

वर्तमान  वेक्सिनेशन की प्रक्रिया में भारी खामियां इस संकट को बड़ाने वाली साबित हो रहीं हैं।               

वैक्सीन निर्यात की अदूदर्शिता पूर्ण नीति      

इस संबंध में प्रथमत: भारत द्वारा भारी संख्या में अन्य देशों को वैक्सीन का निर्यात किया जाना एक  अदूरदर्शी कदम था,  क्योंकि यह हमें ज्ञात था कि , देश की विशाल जनसंख्या के लिए वैक्सीन के दो  – दो डोज  आवश्यक होंगे, अतः देश की आवश्यकता को नजरअंदाज करते हुए वेक्सिनो  का निर्यात अनुचित था.

यह देश के अनेकों राज्यो और वैक्सिनेशन सेंटर्स में हुए  टीको के अभाव से स्पष्ट है. दूसरा मुद्दा टीकों की कीमतों को लेकर उत्पन्न हुआ और इसमें केंद्र सरकार की प्रभावी एवं जनहितकारी भूमिका का अभाव भी स्पष्ट परिलक्षित हुआ है.

  तृतीय , विश्व के अन्य देशों यथा इजरायल ग्रेट ब्रिटेन अमेरिका इटली एवं संयुक्त अरब अमीरात के उदाहरण यह स्पष्ट करते हैं कि,  इन देशों ने व्यापक पैमाने पर वैक्सीनेशन के द्वारा संक्रमण को रोकने में सफलता प्राप्त की है. तत्पश्चात सामान्य जनजीवन की स्थिति को प्राप्त करने में भी उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है.विगत वर्ष यह महामारी प्रारंभ होते से ही स्पष्ट हो गया था कि  इस महामारी के संक्रमण से देश की जनता की  जीवन रक्षा का अंतिम अस्त्र वैक्सीनेशन ही है.

स्वास्थ विशेषज्ञों की उपेक्षा                                                                                                                      

इस वर्ष जनवरी माह में ही भारत के एक शीर्ष स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने संक्रमण की दूसरी लहर की चेतावनी दी थी . इसके अतिरिक्त ,  अमेरिका की मिशीगन यूनिवर्सिटी की स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉक्टर भ्रमर  मुखर्जी जो विगत एक वर्ष से भारत में संक्रमण एवं स्वास्थ्य से जुड़े हुए तथ्यों का गहन अध्ययन कर रही हैं उन्होंने संक्रमण  की रोकथाम के वर्तमान उपायों की स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की है .

उनका पूर्व का  अनुमान  मार्च माह में प्रतिदिन तीन लाख संक्रमण  सही साबित हुआ है. वर्तमान संक्रमण एवं स्वास्थ्य सुविधाओं की दशा में  आने वाले माहों  में उन्होंने प्रतिदिन 7-  8 लाख व्यक्तियों के संक्रमण ग्रसित  होने   की सम्भावना / आशंका व्यक्त की है.  उन्होंने भी संक्रमण की रोकथाम एवं जीवन रक्षा हेतु वैक्सीनेशन को ही सर्वोच्च प्राथमिकता देने की राय दी है. तथापि , वैक्सीनेशन की धीमी प्रक्रिया पर गहरी चिंता प्रकट की है.

टीकाकरण की धीमी प्रक्रिया                                                                                                                      

 केवल वैक्सीनेशन ही संक्रमण की रोकथाम करने का प्रभावी और एकमात्र उपाय होगा. इन स्थितियों में वर्तमान में भारत की केवल दो प्रतिशत जनसंख्या का वैक्सीन के निर्धारित दो डोज प्राप्त करना चिंतनीय है, जबकि , यह वैज्ञानिक दृष्टि से प्रमाणित हो चुका है कि,  अधिक से अधिक जनसंख्या का वैक्सीनेशन ही संक्रमण के फैलाव और जीवन पर आघात को रोकने में सक्षम हो सकता है. लेकिन ,इस के बावजूद ,और टीका महोत्सव और  फिर , एक मई से 18 से 45 वर्ष आयु के नागरिकों के टीकाकरण की घोषणा के बावजूद इसका समयबद्ध क्रियान्वयन नहीं हो पाना दुखद  है.

यह स्थिति सरकार के स्तर पर लापरवाही को स्पष्ट करती है और इसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है. आवश्यकता एवं पूर्ति के मध्य के  अंतर को दृष्टिगत रखकर रूस  से वैक्सीन  के  आयात  की घोषणा तो हुई है,लेकिन वैक्सिनेशन की प्रक्रिया में हुई लापरवाहियों की स्थिति में यह स्पष्ट नहीं है कि, वास्तव में यह कब तक उपलब्ध होगी ?                                   

इन स्थितियों में जब मई माह में संक्रमण का पीक  संभावित है ,   एक अनुमान के अनुसार मई के तीसरे अथवा अंतिम माह में यह स्थिति निर्मित हो सकती है , वैक्सीनेशन की प्रक्रिया का धीमा होना ,  इसमें त्रुटियां और राज्यों और निर्धारित केंद्रों में इनकी अनुपलब्धता अत्यंत भीषण स्थिति निर्मित करने के संकेत दे रही है.

आयुर्वेद की दृष्टि में कोरोना

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