क्या कोरोना वायरस चीन का जैविक हथियार है!
क्या वुहान की प्रयोगशालाओं में बन रहे हैं कोरोना वायरस?
अमेरिकी जांच एजेंसियों के हाथ चीन के 6 साल पुराने कुछ ऐसे दस्तावेज लगे हैं, जिनसे यह पता चलता है कि चीन काफी समय से खुद को तीसरे विश्व युद्ध के लिए तैयार कर रहा है, और उसका मानना है कि इस बार यह युद्ध ‘कोरोना वायरस’ सरीखे जैविक हथियारों (Genetic and Bioweapons) से लड़ा जाएगा. इन पेपर्स में कहा गया है कि जिस प्रकार परमाणु हथियारों ने दूसरे विश्व युद्ध मे जीत दिलाई थी, उसी प्रकार तीसरे विश्व युद्ध मे जैविक हथियार ही जीत की गारेंटी होंगे.
‘न्यू स्पीशीज ऑफ मैन मेड वायरसेस ऐज जेनेटिक बायो वेपन’ नामक 6 साल पुराना यह दस्तावेज बताता है कि चीन में ‘जैविक एजेंटों’ पर बहुत तेजी से काम हो रहा है. इस तरह की तकनीकि विकसित की जा चुकी है कि सूक्ष्म जीवाणुओं को फ्रीज कर के स्टोर रखा जाए और आवश्यकता के समय इनको हवा के माध्यम से प्रसारित कर दिया जाए.
चीन में बन रहे हैं घातक वायरस
‘ऑस्ट्रेलियन’, द मेल, समेत कई अंतरराष्ट्रीय अखबारों ने इस खबर को रिपोर्ट करते हुए लिखा है कि चीन के वैज्ञानिक अनेकों प्रकार के वायरस पर प्रयोग करके और उनकी संरचना में बदलाव कर के विनाशकारी बना रहे हैं जिसका असर इतना घातक हो सकता है, ‘जैसा कि इतिहास में कभी देखा न गया हो’.
इन दस्तावेजों मे कोरोना वायरस समेत ऐसे कई अति सूक्ष्म विषाणुओं का वर्णन है जिनकी संरचना को लैब में परिवर्तित कर के उनका उपयोग हथियार के रूप में किया जा सकता है. साथ ही वह योजनाएं भी लिखी गयी हैं कि ऐसे जैविक हथियारों को कहां से, कब और किन स्थितियों में लांच करना चाहिए जिससे दुश्मन को अधिकतम नुकसान हो.
वायरस से दुश्मन देश को ध्वस्त करने का विवरण
उदाहरण के लिए स्वच्छ आकाश में और दिन के समय इनका उपयोग सही नही रहता, क्योंकि सूर्य का तापमान वायरस को नष्ट कर सकता है. साथ ही बारिश भी इस काम के लिए मुफीद नही है. उससे हवा में फैलने वाले वायरस की गति नष्ट हो सकती है.
इसलिए ऐसे वायरस को फैलाने का सही समय, सुबह, शाम या रात को है जब हवा स्थिर हो और मनचाही दिशा में इन वायरस का फैलाव ज्यादा दूर तक, हवा द्वारा संभव हो सके. ऐसी दशा में दुश्मन के पास मरीजों की बाढ़ आ जायेगी और उनका मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर देखते ही देखते ढह जाएगा. ऐसा इन दस्तवेज़ों मे दर्ज है.
चीन की वायरस प्रयोगशालाएँ
कहा जा रहा है कि उक्त पेपर्स को 18 वैज्ञानिकों ने मिल कर लिखा था जो बहुत ही ‘हाई रिस्क’ लैबों में काम कर रहे थे. कोविड 19 वायरस को लेकर पूरी दुनिया मे बदनाम हो चुकी वुहान लैब के क्रियाकलापों पर यह पेपर फिर से प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं.
अगर इन दावों में सच्चाई है तो चीन के वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में लगातार चलने वाले ऐसे अनुसंधान वाकई में चिंता का विषय हैं क्योंकि कोई नही जानता कि यह सिर्फ बीमारियों के उन्मूलन के लिए चल रहे प्रयास हैं या फिर वहां सेना के गठजोड़ के साथ कुछ विनाशकारी जैविक हथियार बनाये जा रहे हैं.
संदेहों के घेरे में वुहान शहर
वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलोजी (WIV) 2002 से ही कोरोना वायरस के सैंपल जमा कर रहा है जब दुनिया पर ‘सार्स’ विषाणुओं का प्रकोप हुआ था. वहां पर इस बात के भी प्रयोग किये गए कि चमगादड़ों से मनुष्यों में आये इन वायरस का मानव कोशिकाओ से मिलने पर क्या-क्या प्रभाव पड़ता है. इसी प्रकार वुहान सेन्टर फ़ॉर डिसीज एंड कंट्रोल (WHCDC) नामक लैब में विभिन्न बीमारियों से जूझ रहे कई जीवों पर शोध होता है जिनमे 605 तरह के चमगादड़ भी शामिल है.
तमाम तरह के आरोपों के बीच 2018 में अमेरिकी उच्चायोग ने इन प्रयोगशालाओं का का दौरा किया तो उन्होंने पाया कि उक्त लैबों में सुरक्षा के लिहाज से बहुत ढिलाई है जो कि खतरनाक है.
बहुत संभव है कोविड 19 का वायरस इन्ही दोनों में से किसी एक लैब से निकल कर वुहान पशु मंडी में फैला हो, जहां से यह जल्द ही पूरी दुनिया मे कहर बन कर टूट पड़ा. यह स्वतः स्फूर्त भी हो सकता है और संभवतः मानव द्वारा बनाया गया भी. यह गलती से भी बाहर आ सकता है और जान बूझ कर निकाला हुआ भी.
क्या वुहान की प्रयोगशालाओं में बन रहे हैं कोरोना वायरस?
वुहान की यह प्रयोगशालाएँ अपने कार्यों की वजह से हमेशा संदिग्ध रहती हैं. गत वर्ष साउथ चाइना यूनिवर्सिटी के एक लेख ने यह खुलासा कर के सनसनी फैला दी थी कि WHCDC में जब एक शोधार्थी की शर्ट के ऊपर लगे चमगादड़ के खून की जांच की गई तो यह एक विशेष प्रकार के चमगादड़, ‘हॉर्स शू बैट’ के खून से लगभग 90 प्रतिशत मिलता था, जिसमे कोरोना के विषाणु बहुतयात में मिलते हैं. ऐसे खतरनाक चमगादड़ इस लैब में क्या कर है थे यह कोई नही जानता. क्योंकि चमगादड़ों की यह प्रजाति उस जगह से करीब 800 किलोमीटर दूर युन्नान और शेझिआंग प्रान्तों में पाई जाती है और वहां से उनका उड़ कर आना लगभग असंभव है.
इसका सीधा मतलब है कि इन लैबों में दूर दूर से लाये गए विशेष चमगादड़ों पर कुछ विशेष प्रयोग होते रहते हैं और चीन द्वारा यह बयान कि नजदीकी पशु मंडी में किसी व्यक्ति ने गलती से संक्रमित चमगादड़ खा लिया था जिससे यह वायरस इंसानों में फैल गया, सरासर गलत लगता है. एक और बात ध्यान देने योग्य है कि ‘यूनियन हॉस्पिटल’ के डॉक्टरों का पहला ग्रुप जो कोविड 19 से संक्रमित हुआ था, WHCDC लैब से महज कुछ कदम ही दूर है.
विज्ञान, सेना और राजनीति का घातक गठजोड़
प्रबल संभावना है कि कोविड वायरस इसी लैब से निकल कर महामारी बना हो, किंतु इसको साबित करने के लिए अभी भी पुख्ता सबूत नही हैं. अभी यह स्पष्ट नही है कि कोविड 19 वायरस को चीन ने हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है अथवा नही. जानकारों के अनुसार चूंकि उक्त दस्तावेज वैज्ञानिकों द्वारा लिखे गए हैं, इसलिए वह सिर्फ निर्माण प्रक्रिया तक ही लिख सकते थे. उपयोग कैसे और कहां करना है इसका फैसला राजनीतिक नेतृत्व या सेना लेती है. और यह भी निश्चित तौर पर नही कहा जा सकता कि यह योजनाएं और नीतियां सिर्फ सुरक्षा के लिए बनाई गईं हैं या फिर इनका उद्देश्य दुश्मन पर हमला करना है.
हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अभी तक आंख मूंद रखी है. संगठन के प्रमुख कहते हैं कि इन दावों में कोई दम नही दिखता जिसके अनुसार कोविड वुहान की वायरस लैब से निकला हो. उनके इस निष्कर्ष निकलने के पीछे चीन का दबाव हो सकता है. WHO पर कोविड19 महामारी की शुरुआत से ही अस्पष्ट रूख रखने और चीन का पक्ष लेने के आरोप लगते रहे हैं.
जैविक हथियार और विश्व समुदाय
वैसे तो जैविक हथियारों का इस्तेमाल पहले विश्व युद्ध के समय ही शुरू हो गया था, किंतु तब इनकी मारक क्षमता बहुत सीमित थी. दूसरे विश्व युद्ध के समय नाज़ियों और जापानी सेना द्वारा दुश्मन के खिलाफ इन अस्त्रों के उपयोग की जानकारी भी मिलती है. मानवता के संभावित विनाश को देखते हुए ऐसे जैविक हथियारों पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाने के प्रयास 1929 और 1972 में हो चुके हैं किंतु अब भी विश्व के कई कोनों से इनके विकास की खबरें आती रहती हैं. परमाणु हथियारों की तरह ऐसे जैविक हथियारों का होना मात्र ही मानवता के लिए खतरे की घंटी है.
दुनिया भर में कोरोना से रोजाना बढ़ती मृतकों की संख्या ने बड़े बड़ों को चिंता में डाल रखा है. ब्राजील के राष्ट्रपति बोलसोनारो ने इसी हफ्ते एक सम्मेलन में बिना चीन का नाम लिए साफ इशारा किया है कोरोना महामारी एक जैविक या रासायनिक युद्ध भी हो सकता है.
‘यह एक अनजाना वायरस है. कोई नही जानता कि यह स्वतः आया है या लैब में मानव द्वारा बनाया गया है. किंतु हकीकत यही है कि आज यह है. क्या आज हम एक युद्ध नही लड़ रहे हैं? यह तो मिलिट्री ही बता पाएगी कि यह रासायनिक युद्ध है, जैविक या फिर विकिरण से उपजा? और इस वैश्विक युद्ध मे जहाँ सारे देश मर रहे हैं, सिर्फ एक देश है जिसका सकल घरेलू उत्पाद तेजी से बढ़ रहा है. नाम लेने की आवश्यकता नही है.’ ब्राजील के राष्ट्रपति ने कहा.
इतना तो तय है कि अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट द्वारा जारी किए गए इन दस्तावेजों से एक बार फिर उस आशंका को बल मिला है कि ”सार्स कोरोना वायरस’ का दुश्मन के विरुद्ध सैन्य इस्तेमाल भी किया जा सकता है. साथ ही इस बात को भी सिरे से नकारा नही जा सकता कि हो न हो कोविड19 का यह वायरस जो भारत समेत विश्व के तमाम मुल्कों में अनसुनी अनदेखी तबाही मचा रहा है, वह चीन की किसी लैब से ही निकला हो. अब देखना यह होगा कि चीन और इन कुख्यात लैबों पर जिम्मेदारी कब और कौन तय करेगा.
(लेखक वायुसेना से सेवानिवृत्त अधिकारी एवं रक्षा एवं सामरिक मामलों के जानकार हैं)