स्वामी सदानंद ब्रह्मलीन हो गये

प्रयागराज के सिद्ध योगी हण्डिया बाबा के शिष्य स्वामी सदानन्द ब्रह्मलीन हो गये । स्वामी जी ने सन् 1979-84 के बीच मुझे योगासन, प्रणायाम और आत्मानंद-विहार की प्रविधियां सिखायीं थीं । स्वामी जी को संतों की जबरदस्त पहचान थी और मुझे हमेशा कौओं-हंसों की पहचान करने में सहायक होते थे ।उनकी प्रेरणा से ही मैं प्रयागराज के मिन्टो पार्क में भारतीय सेना के संरक्षण में कुंभ कर रहे एक महान सिद्ध योगी का दर्शन और निकटता का अवसर पा सका था । वे वैसे तो पिण्डारी ग्लेशियर के पास रहते थे और 1979-80 में 120 वर्ष के हो चुके थे फिर भी घंटों पद्मासन में निस्पन्द, कुम्भक करके बैठे रहते थे । मैं 63 वर्ष का हूं और वर्षों से पद्मासन का अभ्यास करके मात्र 20 मिनट सहजता से बैठ पाता हूं और आसन खोलने के बाद पैर कूछ समय अकडे रहते हैं पर पिण्डारी ग्लेसियर वाले बाबा घण्टों बाद पद्मासन से उठते तो लगता कि वह सुखासन से उठ रहे हैं । पिण्डारी वाले बाबा पहले ग्वालियर स्टेट आर्मी के जनरल थे फिर प्रथम विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश आर्मी में विलय होने पर वे मेसोपोटामिया में युद्ध का नेतृत्व करने गये थे । यही हाल स्वामी सदानंद का भी था । वे बहुत छोटी उम्र में अपने गांव के समवयस्क शांतानन्द के साथ प्रयागराज आये और हण्डिया बाबा के शिष्य विष्णुदेवानन्द जी के सान्निध्य में योग और ध्यान करते करते देश के बडे योगियों की पांत में शामिल हो गये । शांतानन्द जी ने अपने अमरीकी शिष्यों की मदद से बान्ध पर हण्डिया बाबा की समाधि भवन योगालय का निर्माण कराया और गुरूभाई सदानन्द को उसकी जिम्मेदारी दे अमरीका चले गये । वही गत वर्ष उनका देहावसान हुआ।
स्वामी सदानन्द का अपरिग्रह, निर्लोभिता, सन्त समागम प्रेम, सरलता , योग और ध्यान में अनुराग और मुझसे पुत्रवत स्नेह मेरी स्मृति में अटल हैं ।
वह हमेशा मेरी सुरक्षा के लिए चिन्तित रहते थे और इसी कारण जब किसी जंगल में उन्हे
पीपल का बान्दा मिला तो उसे मुझे लाकर दिया इस निर्देश के साथ कि तुम इसे धारण कर लो दुष्ट तुम्हारा कुछ न बिगाड़ पायेंगे । वह समय था सन् 2002 का और पिता जी का देहावसान हो चुका था और मैं शोक से उबरा भी नहीं था कि तभी रोड ऐक्सीडेण्ट में पत्नी-बच्चे सहित मरते-मरते बचा था । इसी सब के बीच उन्होंने मुझे अभय दिया और कहा इसे धारण कर रखो , सब ठीक हो जायेगा । क्या ठीक हो जायेगा ? मैंने पूछा तो कहा मैं ज्योतिषी नहीं , मुस्कराये और कहा जा.. जा.. । सन् 2004 में छोटे भाई पप्पू को मुंह के कैन्सर की शिकायत हुई तो उसको भी ले गया स्वामी जी के पास प्रार्थना के साथ कि बाबा कृपा करो । स्वामी जी ने कहा कि कह दो आते रहें । हण्डिया बाबा से प्रार्थना करते रहें , बच सकते हैं । पर पप्पू को भरोसा न हुआ ,पप्पू दुबारा न गये और अन्त में नहीं रहे । पर मैने देखा कि उने सम्पर्क में रहने वाले मेरे कई परिचितों को स्वास्थ्य और श्री लाभ हुआ।
उनके साथ बहुत अनुभव हैं , सब कहे नहीं जा सकते । अब सब आज स्मृति में उमड़-घुमड़ रहे हैं । मेरे लिए वे सदैव जीवित है अशरीरी होकर।

Leave a Reply

Your email address will not be published.

seventeen − 15 =

Related Articles

Back to top button